हालांकि टीएमसी ने आधिकारिक तौर पर अपने फैसले की घोषणा नहीं की है, लेकिन बनर्जी के करीबी पार्टी सूत्रों ने माना कि पार्टी सत्तारूढ़ भाजपा के राजनीतिक नेरेटिव में शामिल होने को लेकर सावधान है। उनका मानना है कि भाजपा अपने 2024 के लोकसभा अभियान के लिए राम मंदिर उद्घाटन को एक स्प्रिंगबोर्ड के रूप में उपयोग करना चाह रही है, और टीएमसी दूसरी भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं है।
यह घटनाक्रम राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा समारोह के लिए सभी मुख्यमंत्रियों और प्रमुख विपक्षी हस्तियों को निमंत्रण देने की पृष्ठभूमि में आया है। टीएमसी सांसद और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी लंबे समय से कहते रहे हैं कि भाजपा और आरएसएस अपने चुनावी फायदे के लिए राम मंदिर और अयोध्या को भुना रहे हैं।
टीएमसी ने अयोध्या न जाने का फैसला पूरी तरह से अपने वोट आधार और पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि के हिसाब से लिया है। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाता लंबे समय से ममता बनर्जी की टीएमसी को वोट दे रहे हैं। यहां पर एआईएमआईएम प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी ने बहुत कोशिश की लेकिन मुस्लिमों ने उनकी दाल नहीं गलने दी। ममता बनर्जी भी मुस्लिम संगठनों के कार्यक्रमों में खुलकर शामिल होती हैं। इसी रणनीति के तहत टीएमसी ने अयोध्या इवेंट से किनारा किया है। इधर, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बार-बार सीएए-एनआरसी का मुद्दा उठा रहे हैं। इसको लेकर बंगाल के मुस्लिम चौकन्ने हैं।
भाजपा, आरएसएस और जुड़े संगठनों ने 22 जनवरी के कार्यक्रम को लेकर योजनाबद्ध तरीके से निमंत्रण भेजने के नाम पर जनता का अभी से पूरा फोकस इस पर करा दिया है। इस समय भाजपा के सामने सिर्फ 22 जनवरी का कार्यक्रम है। लेकिन 22 जनवरी को भव्य बनाने के लिए भाजपा कई कार्यक्रम कर रही है। सरकार भी अपने तरीके से जुटी है। 30 दिसंबर को पीएम मोदी अयोध्या में एयरपोर्ट का उद्घाटन करने जा रहे हैं, वे वहां एक रोड शो भी कर सकते हैं।
सीपीएम ने कहा- यह "सबसे दुर्भाग्यपूर्ण" है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने एक धार्मिक समारोह को राज्य प्रायोजित (state sponsored) कार्यक्रम में बदल दिया है जिसमें सीधे प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और अन्य सरकारी अधिकारी शामिल हैं। सीपीएम ने सुप्रीम कोर्ट और संविधान का हवाला देते हुए कहा- भारत में शासन का एक बुनियादी सिद्धांत, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है, यह है कि संविधान के तहत भारत में राज्य का कोई धार्मिक जुड़ाव नहीं होना चाहिए। अयोध्या में कार्यक्रम के आयोजन में सत्तारूढ़ शासन द्वारा इसका उल्लंघन किया जा रहा है।
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