लोकसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपने पद से इस्तीफ़े की पेशकश पर अड़े हुए हैं। राहुल गाँधी को अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए मनाने की वरिष्ठ नेताओं की तमाम कोशिशें फिलहाल नाकाम हो गई हैं। सोमवार को राहुल गाँधी से मिलने गए कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल और संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से राहुल गाँधी ने साफ़-साफ़ कह दिया कि वह किसी भी सूरत में पार्टी अध्यक्ष के पद पर नहीं रहेंगे लिहाज़ा पार्टी जल्द ही उनका विकल्प चुन ले।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों ने ‘सत्य हिंदी’ को बताया कि अगले चार दिनों में कांग्रेस कार्यसमिति की एक और बैठक बुलाई जाएगी। सूत्रों ने बताया कि राहुल गाँधी पद छोड़ने के अपने फ़ैसले से बिल्कुल पीछे नहीं हट रहे हैं। कार्यसमिति की बैठक में राहुल गाँधी को आख़िरी बार मनाने की पुरज़ोर कोशिश की जाएगी। अगर राहुल नहीं मानते हैं तो वैकल्पिक व्यवस्था पर भी विचार किया जाएगा।
वैकल्पिक व्यवस्था में दो या तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी बाँटी जा सकती है। अगर राहुल इस पर भी राज़ी नहीं हुए तो फिर उनके परिवार के बाहर से किसी व्यक्ति को पार्टी का नया अध्यक्ष बनाने के सिवा कोई चारा नहीं रहेगा।
कार्यकारी अध्यक्ष कौन हो सकते हैं या फिर नया अध्यक्ष कौन हो सकता है? इस सवाल पर सूत्र ख़ामोश हैं। कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता इस पर मुँह नहीं खोल रहा है। कोई भी नेता आगे बढ़कर कांग्रेस अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी लेने की पहल नहीं कर रहा है। बता दें कि शनिवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गाँधी ने अपने पद से इस्तीफ़ा देने की पेशकश की थी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उनकी माँ सोनिया गाँधी और बहन प्रियंका का नाम भी आगे न बढ़ाया जाए। उन्होंने पार्टी नेताओं से साफ़ कहा था कि पार्टी हमारे परिवार के बाहर से किसी नेता को पार्टी का अध्यक्ष चुने।
राहुल गाँधी अपनी ज़िद पर इस हद तक अड़े हैं कि उन्होंने पार्टी के नवनिर्वाचित सांसदों को मिलने का समय दिए जाने के बावजूद उनसे मुलाक़ात नहीं की।
केसी वेणुगोपाल और अहमद पटेल ने राहुल गाँधी से मुलाक़ात के दौरान उनसे ज़िद छोड़ने की अपील की। लेकिन राहुल गाँधी ने अपना मन नहीं बदला। राहुल ने उनसे साफ़ कहा, ‘आप मेरा विकल्प ढूंढ लीजिए, क्योंकि मैं इस्तीफ़ा वापस नहीं लूंगा।’ राहुल के इस तरह ज़िद पर अड़ने से पार्टी सन्न रह गई है।
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को उम्मीद थी कि कार्यसमिति की बैठक में इस्तीफ़े का प्रस्ताव ठुकरा दिए जाने के बाद राहुल मान जाएँगे। लेकिन उनके पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने की ज़िद से पार्टी के तमाम बड़े नेता सकते में हैं।
इस्तीफ़े की पेशकश के बाद राहुल गाँधी ने सोमवार को पहली बार ट्वीट किया। उन्होंने अपने ट्वीट में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी। राहुल गाँधी ने लिखा, 'कई लोकतांत्रिक देशों ने भारत के समय ही आज़ादी पाई लेकिन जल्द ही तानाशाही में तब्दील हो गए। हम नेहरू जी की पुण्य तिथि पर मजबूत, स्वतंत्र आधुनिक संस्थाएँ बनाने में उनके योगदान को याद करते हैं जिनसे भारत में पिछले 70 वर्षों से लोकतंत्र के बने रहने में मदद मिली।‘
ग़ौरतलब है कि टि्वटर पर राहुल गाँधी का बायो अभी भी उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष ही बता रहा है। इस्तीफ़े की पेशकश के बाद भी राहुल के टि्वटर का बायो पार्टी नेताओं को सुकून देने के साथ ही यह उम्मीद बंधा रहा है कि वह अध्यक्ष बने रहेंगे।
बता दें कि राहुल की माँ और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी और उनकी बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने के पक्ष में हैं। सूत्रों के मुताबिक़, कार्यसमिति की बैठक से पहले जब राहुल ने इन दोनों के सामने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने का अपना फ़ैसला सुनाया तो सोनिया गाँधी अवाक रह गईं और कुछ नहीं बोल सकीं लेकिन प्रियंका ने भावुक होकर उनके इस फ़ैसले का विरोध किया। प्रियंका ने राहुल को ढांढस बंधाते हुए कहा कि पार्टी के सामने इतने मुश्किल दौर में उन्हें ज़िम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए बल्कि डट कर मुश्किलों का सामना करना चाहिए। लेकिन राहुल अपने फ़ैसले पर अड़े रहे। माँ-बेटी दोनों चाहती हैं कि राहुल अध्यक्ष बने रहें और पार्टी संगठन में बुनियादी बदलाव करके उसे अगले लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता में लाएँ।
राहुल ने दिखाई थी नाराजगी
शनिवार को हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में राहुल गाँधी ने चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेताओं के ढीलेपन को लेकर उन पर निशाना साधा था। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी के कई नेताओं ने पार्टी से आगे अपने बेटों को रखा और उन्हें टिकट दिलाने के लिए उन पर दबाव बनाया। हालांकि राहुल गाँधी ने किसी का नाम नहीं लिया था। लेकिन उनका इशारा अशोक गहलोत, कमलनाथ और पी. चिदंबरम की तरफ़ था। बताया जाता है कि इन तीनों ही नेताओं ने राहुल पर अपने बेटों को टिकट देने का दबाव बनाया था। हालाँकि कमलनाथ और पी. चिदंबरम तो अपने बेटों के जितवाने में कामयाब रहे लोकिन अशोक गहलोत पूरी ताक़त झोंकने के बाद भी अपने बेटे को नहीं जितवा पाए।सूत्रों के मुताबिक़, कार्यसमिति की बैठक में जब राहुल गाँधी ने इस्तीफ़े की पेशकश की थी तो पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम भावुक हो गए थे और उन्होंने कहा था कि अगर वह इस्तीफ़ा देते हैं दक्षिण में कई कांग्रेस कार्यकर्ता सुसाइड कर सकते हैं।
राहुल गाँधी से मुलाक़ात के दौरान अहमद पटेल ने उनसे यह भी कहा है कि उनके अध्यक्ष पद छोड़ने से पार्टी टूट सकती है। लिहाज़ा पार्टी को एकजुट रखने के लिए उनका अध्यक्ष बने रहना ज़रूरी है। इसके बावजूद अगर राहुल अपने फ़ैसले से टस से मस नहीं हो रहे हैं तो कांग्रेस में उनके इस्तीफ़े पर बवाल मचना तय है।
यह बवाल 1999 में मचे उस बवाल की तरह हो सकता है जब सोनिया गाँधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए शरद पवार, तारिक़ अनवर और पी. संगमा ने बग़ावत की थी। इन नेताओं की बग़ावत के बाद सोनिया गाँधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और पार्टी नेताओं से नया अध्यक्ष चुनने को कहा था। तब देशभर से कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दिल्ली आकर सोनिया गाँधी के घर दस जनपथ और कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड पर डेरा डाल दिया था। कांग्रेस कार्यकर्ता तब तक नहीं हटे थे जब तक सोनिया गाँधी पार्टी अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए राज़ी नहीं हो गईं थी। ऐसा ही कुछ इस बार राहुल के लिए हो सकता है।
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