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नेता विपक्ष राहुल गांधी ने बैंक कर्मचारी संगठन के लोगों से मुलाकात की।

राहुल गांधी का बैंकिंग सेक्टर को लेकर सरकार पर बार-बार हमला क्यों

नेता विपक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर तीखा हमला बोला है। शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक विस्तृत पोस्ट में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने अपने "अरबपति मित्रों" के 16 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिए हैं, जबकि देश का बैंकिंग सेक्टर संकट में डूबता जा रहा है। उन्होंने इसे "क्रोनी कैपिटलिज्म" (आवारा पूंजीवाद) का उदाहरण बताते हुए कहा कि इसका सबसे बड़ा नुकसान बैंकिंग सेक्टर के जूनियर कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा है।

राहुल गांधी ने अपनी X पोस्ट में लिखा, "भाजपा सरकार ने अपने अरबपति मित्रों के लिए 16 लाख करोड़ रुपये के ऋण माफ कर दिए हैं। रेगुलेटरी कुप्रबंधन के साथ-साथ भाई-भतीजावाद ने भारत के बैंकिंग सेक्टर को संकट में डाल दिया है। इसका बोझ अंततः जूनियर कर्मचारियों पर पड़ता है, जो तनाव और खराब कार्य स्थितियों को झेलते हैं।" उन्होंने आगे कहा कि जब अरबपतियों का इतना बड़ा कर्ज माफ हो सकता है, तो आम कर्मचारियों और किसानों को न्याय क्यों नहीं मिलता? कांग्रेस इस अन्याय के खिलाफ मजबूती से लड़ने का वादा करती है।

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इस पोस्ट के साथ राहुल गांधी ने एक वीडियो भी साझा किया, जिसमें बैंक कर्मचारियों की परेशानियों और बैंकिंग सेक्टर की बदहाली को दिखाया गया है। यह दावा उन्होंने पिछले कई सालों से दोहराया है, जिसमें वो मोदी सरकार पर बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हैं।

राहुल गांधी का यह दावा पिछले कुछ समय से चर्चा में रहा है। उनके मुताबिक, पिछले 10 साल में मोदी सरकार ने बड़े उद्योगपतियों और कॉरपोरेट घरानों के 16 लाख करोड़ रुपये के बैंक कर्ज को माफ कर दिया। यह आंकड़ा वो अक्सर अपने भाषणों और सोशल मीडिया पोस्ट में इस्तेमाल करते हैं। उनके अनुसार, यह पैसा अगर सही जगह लगाया जाता, तो 16 करोड़ युवाओं को नौकरियां मिल सकती थीं, 10 करोड़ किसानों का कर्ज माफ हो सकता था, और देश को 20 साल तक 400 रुपये में गैस सिलेंडर मिल सकता था।

हालांकि सरकार और कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह 16 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा बैंकों द्वारा "राइट-ऑफ" किए गए नॉन-परफॉर्मिंग असेट्स (NPA) का है, न कि सीधे सरकार द्वारा माफ किया गया कर्ज। राइट-ऑफ एक तकनीकी प्रक्रिया है, जिसमें बैंक अपने खातों से खराब कर्ज को हटाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कर्जदार को पूरी तरह माफी मिल गई। फिर भी, राहुल गांधी इसे "मोदी सरकार की नीति" बताकर बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हैं।

राहुल गांधी ने अपनी पोस्ट में बैंकिंग सेक्टर के संकट पर भी जोर दिया। पिछले कुछ सालों में भारतीय बैंकों के NPA (नॉन-परफॉर्मिंग असेट्स) में भारी बढ़ोतरी हुई है। 2014 से पहले जहां NPAs का स्तर 2-3% था, वहीं 2018 तक यह 11% से ऊपर पहुंच गया था। इसके पीछे बड़े कॉरपोरेट कर्ज, खराब नियामक नीतियां, और आर्थिक मंदी जैसे कारण बताए जाते हैं। राहुल का कहना है कि इस संकट का बोझ बैंक कर्मचारियों पर पड़ रहा है, खासकर जूनियर स्तर के कर्मचारियों पर, जो तनाव, ओवरवर्क, और नौकरी की असुरक्षा से जूझ रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की नीतियों ने बैंकों को कमजोर किया है, जिससे आम जनता का भरोसा भी डगमगाया है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि सरकार ने बैंकों को मजबूत करने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं दी, और बड़े कर्जदारों को बचाने के लिए नियमों को ढीला किया गया।

राहुल के दावे का आधार क्या है

यह आंकड़ा भारतीय बैंकों द्वारा पिछले एक दशक में "राइट-ऑफ" किए गए नॉन-परफॉर्मिंग असेट्स (NPA) से लिया गया है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) और वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार: 2014 से 2024 के बीच बैंकों ने लगभग 16.11 लाख करोड़ रुपये के खराब कर्ज को राइट-ऑफ किया। यह वह कर्ज है जो कर्जदार (ज्यादातर बड़े कॉरपोरेट और उद्योगपति) चुका नहीं पाए।

राइट-ऑफ का मतलब यह नहीं है कि कर्ज पूरी तरह माफ हो गया। यह एक लेखा प्रक्रिया है, जिसमें बैंक अपने खातों से खराब कर्ज को हटाते हैं, लेकिन रिकवरी की कोशिश जारी रखते हैं। सरकार का कहना है कि इससे बैंकों के बैलेंस शीट को साफ करने में मदद मिलती है।

राहुल गांधी ने कभी भी उन "अरबपति मित्रों" के नाम स्पष्ट रूप से नहीं बताए हैं। हालांकि, विपक्षी नेता अक्सर कुछ बड़े उद्योगपतियों जैसे अनिल अंबानी, गौतम अडानी, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, और विजय माल्या का जिक्र करते हैं, जो बड़े डिफॉल्टर रहे हैं। अडानी तो और भी कई विवादों में हैं।

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    राहुल गांधी का यह बयान न सिर्फ बैंकिंग सेक्टर के संकट को उजागर करता है, बल्कि देश में आर्थिक असमानता के सवाल को भी उठाता है। हालांकि, उनके 16 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफी के दावे की सच्चाई तकनीकी और राजनीतिक बहस का विषय बनी हुई है। 

    रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी
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