एक ज़माना था जब कहा जाता था कि जिसका कोई नहीं, उसका सहारा है सुप्रीम कोर्ट। जिसे कहीं इंसाफ़ न मिले, उसे सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ़ मिलता था। भारत के सुप्रीम कोर्ट की मिसाल दुनिया भर में दी जाती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों से सुप्रीम कोर्ट और देश के मुख्य न्यायाधीशों की छवि को तगड़ा धक्का लगा है। यह कहा जाने लगा है कि सुप्रीम कोर्ट अब इंसाफ़ का मंदिर नहीं रह गया है, वह सरकार का दफ़्तर बन गया लगता है।
प्रशांत भूषण: 5 साल में 4 चीफ जस्टिस के समय सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के सामने घुटने टेक दिये
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- 24 Apr, 2021

पिछले कुछ सालों से सुप्रीम कोर्ट और देश के मुख्य न्यायाधीशों की छवि को तगड़ा धक्का लगा है। यह कहा जाने लगा है कि सुप्रीम कोर्ट अब इंसाफ़ का मंदिर नहीं रह गया है, वह सरकार का दफ़्तर बन गया लगता है। सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने मशहूर वकील प्रशांत भूषण से बात की। पढ़ें वह इंटरव्यू।
पिछले दिनों जब कोरोना के मसले पर कई हाई कोर्टो ने सरकारों को फटकारा और फिर अचानक सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना मामले का स्वतः संज्ञान लिया तो सवाल खड़ा हो गया कि क्या ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बचाने के लिये किया? सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने मशहूर वकील प्रशांत भूषण से बात की। प्रशान्त को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मामले में खुद सुप्रीम कोर्ट दोषी ठहरा चुकी है।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।