बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने देश को कितना बड़ा नुक़सान पहुँचाया, यह आज सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से तो साफ़ हो ही गया, इसके साथ यह भी साफ़ हो गया कि इस मामले में उनके ख़िलाफ़ पुलिस ने कार्रवाई ठीक से नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस के रवैये पर बड़ा सवाल खड़ा किया है।
इस मामले में सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूछा कि दिल्ली पुलिस ने क्या किया है? मामले में पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए अदालत ने कहा, 'जब आप (नूपुर) दूसरों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराते हैं तो उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है, लेकिन जब यह आपके ख़िलाफ़ होता है तो किसी ने भी आपको छूने की हिम्मत नहीं की।'
हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे मामलों का ज़िक्र नहीं किया, लेकिन हाल में ऐसी गिरफ़्तारियाँ हुई हैं जिसके लिए पुलिस और सरकार की आलोचना की जा रही है। एक तो गिरफ़्तारी ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की है जिनपर 4 साल पहले फ़िल्म के एक दृश्य को ट्वीट करने पर नफ़रत फैलाने का आरोप लगा। दूसरा मामला सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ का है जो गुजरात दंगों में पीड़ितों की पैरवी करती रही हैं और दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग करती रही हैं।
नूपुर शर्मा के मामले में अदालत की यह टिप्पणी काफी अहम इसलिए है कि 1983 की फ़िल्म के दृश्य को 2018 में ट्वीट करने पर 2022 में मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी हुई। ऑल्ट न्यूज़ के ही एक और सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर बयान जारी कर कहा था कि ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने 2020 के एक मामले में जाँच के लिए बुलाया था जिसमें हाई कोर्ट से उन्हें गिरफ्तारी से राहत मिली हुई है।
प्रतीक सिन्हा ने बयान में आगे कहा कि हालाँकि हमें बताया गया था कि उन्हें कुछ दूसरी एफ़आईआर में गिरफ़्तार कर लिया गया है जिसके लिए उन्हें कोई नोटिस भी नहीं दिया गया जो कि क़ानून की धाराओं के तहत ज़रूरी है। बता दें कि ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने धारा 153 यानी दंगा भड़काने के इरादे से उकसाने और 295ए यानी धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने के आरोप में गिरफ्तार किया है।
नूपुर शर्मा के मामले में मोहम्मद ज़ुबैर की तरह पुलिस की तरफ़ से कार्रवाई नहीं की गई। जबकि इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दबाव बना।
मध्य पूर्व और दूसरे कई मुसलिम देशों ने जब आपत्ति जताई तो बीजेपी ने नूपुर को प्रवक्ता पद से हटा दिया। लेकिन पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। नूपुर शर्मा के उस आपत्तिजनक बयान को लेकर देश भर में कई जगहों पर प्रदर्शन हुए। कई जगहों पर हिंसा हुई। इसमें आगजनी तोड़फोड़ और कुछ लोगों की मौत भी हुई। अब जो उदयपुर में एक दर्जी की जघन्य हत्या का मामला सामने आया है उसको भी नूपुर शर्मा के मामले से ही जोड़कर देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस दौरान उदयपुर कांड का ज़िक्र किया। इशारा यही है कि नफ़रत घोलने वाले बयान का असर हो रहा है। प्रदर्शन करने वालों के ख़िलाफ़ भी कई जगहों पर सख़्त कार्रवाई किए जाने की ख़बरें आईं। इतना ही नहीं, नूपुर शर्मा के पक्ष में बजरंग दल वालों ने तो प्रदर्शन भी किया।
तो सवाल है कि नूपुर शर्मा का बयान कितना आपत्तिजनक था? क्या यह इतना हल्का मामला था कि उनकी गिरफ़्तारी की ज़रूरत नहीं है? इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आज के बयान से भी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। नूपुर शर्मा को फटकार लगाते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, 'नूपुर को धमकियों का सामना करना पड़ रहा है या वह सुरक्षा के लिए ख़तरा बन गई हैं? देश में जो हो रहा है उसके लिए यह महिला अकेले ज़िम्मेदार है।'
उन्होंने कहा, 'हमने इस बात पर बहस देखी कि उन्हें कैसे उकसाया गया। लेकिन जिस तरह से उन्होंने यह सब कहा और बाद में वह कहती हैं कि वह एक वकील थीं। यह शर्मनाक है। उन्हें पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए।'
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, 'क्या हो यदि वह किसी पार्टी की प्रवक्ता हों। उन्हें लगता है कि उनके पास सत्ता का साथ है और देश के क़ानून का सम्मान किए बिना कोई भी बयान दे सकती हैं।' बेंच ने एक अन्य दलील पर आगे यह भी कहा, 'हमें मुंह मत खुलवाएँ, टीवी पर बहस किस बारे में थी? केवल एक एजेंडा को बढ़ावा देने के लिए? उन्होंने एक ऐसा विषय क्यों चुना जो मामला अदालत में था?'
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