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खाद पर जीएसटी की छूट नहीं मिली, हॉस्टल किराये, प्लेटफॉर्म टिकट पर राहत

जीएसटी काउंसिल ने शनिवार को कई उत्पादों और सेवाओं पर राहत की घोषणा की। जीएसटी काउंसिल ने कॉलेज परिसर के बाहर 20 हजार रुपये महीना किराये तक पर हॉस्टलों में रहने वाले छात्र-छात्राओं, रेलवे स्टेशनों पर प्लेटफार्म टिकट, वेटिंग और क्लॉकरूम जैसी सेवाओं में जीएसटी की छूट दी है। लेकिन जीएसटी काउंसिल ने किसानों को फर्टिलाइजर पर लगने वाली जीएसटी और मध्यम वर्ग को इंश्योरेंस राशि पर लगने वाली जीएसटी पर कोई विचार नहीं किया। न ही इस वर्ग को कोई राहत नहीं दी।

पत्रकारों से बातचीत में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ किया कि हॉस्टल आवास पर जीएसटी छूट छात्रों या कामकाजी वर्ग के लिए है और इसका लाभ सिर्फ 90 दिनों तक रहने पर ही लिया जा सकता है। यानी अगर कोई उस हॉस्टल में लगातार 90 दिनों या उससे ज्यादा दिनों तक रहता है, तो ही उसे जीएसटी पर छूट मिलेगी। इससे पहले, कॉलेज कैंपस के बाहर हॉस्टल के किराए पर 12 फीसदी जीएसटी लग रहा था।

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सेब उत्पादकों को राहतजीएसटी काउंसिल ने हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में सेब उत्पादकों को राहत देने के लिए कार्टन पर जीएसटी भी कम कर दिया। जबकि नालीदार और गैर-नालीदार कागज दोनों के डिब्बों पर शुल्क पहले 18 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया था। बता दें कि सरकार के इस राहत का फायदा उन बड़ी कंपनियों को मिलेगा, जो सेब उत्पादन के क्षेत्र में कदम रख चुकी हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों ने सेब के बाग खरीद लिए हैं और वे वहीं पर अपनी पैकिंग करते हैं। छोटे सेब उत्पादकों को इससे कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि वो अपना सेब इन कंपनियों को बेच देते हैं।

जीएसटी काउंसिल ने फैसला किया कि सभी दूध के डिब्बे और सोलर कुकर पर 12 प्रतिशत की जीएसटी दर लगेगी। खाद पर जीएसटी हटाने या कम करने पर भी विचार नहीं किया गया। इस मामले को मंत्रियों की कमेटी को भेजा गया है। जबकि खाद पर जीएसटी हटने से देश के करोड़ों किसानों को फायदा होगा।


हालांकि कारोबारी वर्ग फ्यूल उत्पादों पर जीएसटी, ऑनलाइन गेमिंग और बीमा प्रीमियम पर दरों को तर्कसंगत बनाने के लंबित मुद्दों पर जीएसटी दरों में एकरुपता की उम्मीद कर रहा था। लेकिन वित्त मंत्री ने कहा कि ये मुद्दे काउंसिल की बैठक के दौरान एजेंडे का हिस्सा नहीं थे।

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा- “हमने पेट्रोल और डीजल पर जीएसटी पर चर्चा नहीं की। इसका प्रावधान पहले से ही है। जीएसटी लागू होने के बाद भी केंद्र सरकार की मंशा पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की थी। दरों पर निर्णय लेना अब राज्यों पर निर्भर है।” हालांकि सरकार की यह नीति टालमटोल वाली है। जब सारे वस्तुओं पर जीएसटी में एकरूपता लाई जा चुकी है तो फिर पेट्रोल-डीजल पर केंद्र सरकार क्यों नहीं निर्णय ले रही है। तमाम राज्यों की राय इस पर अलग-अलग होगी लेकिन केंद्र सरकार एक समान दर लागू करेगी तो राज्यों को आपत्ति नहीं होगी।

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क़मर वहीद नक़वी
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