क्या कृषि क़ानूनों को रद्द किए जाने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को धक्का पहुँचा है? क्या अपराजेय और हर मुद्दे पर एकदम सही समझे जाने वाले प्रधानमंत्री पर उनके ही समर्थकों का यकीन कम हो रहा है? क्या उनके अपने कट्टर समर्थकों और ठोस वोट बैंक को यह संकेत गया है कि नरेंद्र मोदी भी ग़लत हो सकते हैं? क्या उच्च शिखर पर बनाई गई मूर्ति कहीं से दरक गई है?