क्या कृषि क़ानूनों को रद्द किए जाने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को धक्का पहुँचा है? क्या अपराजेय और हर मुद्दे पर एकदम सही समझे जाने वाले प्रधानमंत्री पर उनके ही समर्थकों का यकीन कम हो रहा है? क्या उनके अपने कट्टर समर्थकों और ठोस वोट बैंक को यह संकेत गया है कि नरेंद्र मोदी भी ग़लत हो सकते हैं? क्या उच्च शिखर पर बनाई गई मूर्ति कहीं से दरक गई है?
कृषि क़ानून रद्द होने से मोदी की 'महामानव' की छवि को धक्का लगा?
- देश
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- 20 Nov, 2021
कृषि क़ानूनों को वापस लेने से क्या नरेंद्र मोदी की छवि पहले से बेहतर हुई है या उनकी छवि को चोट पहुँची है? ऐसा क्यों लगता है कि उनके समर्थक खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं?

ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि अपार लोकप्रियता वाले नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थक मोटे तौर पर कृषि क़ानूनों पर भी उनके साथ खड़े थे। मध्यवर्ग और खाते-पीते पृष्ठभूमि के मोदी भक्त इस नैरेटिव पर यकीन करते थे कि किसानों का यह आन्दोलन विदेश से मिलने वाले पैसों से चल रहा है जो भारत को कमज़ोर करने के लिए खड़ा किया गया है।
मोटे तौर पर मोटी समर्थक यह मानते थे कि इन कृषि क़ानूनों से मोदी को व्यक्तिगत रूप से कुछ हासिल होने वाला नहीं है, इससे किसानों को फ़ायदा होगा, लेकिन विपक्ष के चालाक लोग किसानों को बरगलाने में कामयाब हैं।