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मोदी सरकार की 10 बड़ी भूलें-  वैक्सीन में ‘महाबली’ नहीं रहा भारत

दुनिया में वैक्सीन की ज़रूरत का 60 फ़ीसदी पूरा करने वाला भारत महामारी के समय अपनी ही ज़रूरतों के लिए तरस गया। जब विश्व में 2.25 अरब लोग वैक्सीन ले चुके हैं तो भारत में यह संख्या 23 करोड़ है। यह आँकड़ा दुनिया में वैक्सीन ले चुके लोगों का 11 फ़ीसदी है जो महामारी में वैश्विक मौत में भारत की हिस्सेदारी 9.33 फ़ीसदी से थोड़ा बेहतर है। आख़िर वैक्सीन उत्पादन का महाबली कोरोना से लड़ाई के दंगल में क्यों फिसड्डी साबित हुआ? क्यों आँकड़ों के आईने में माना जा रहा है कि साल के अंत तक वैक्सीन उत्पादन में भारत वैश्विक उत्पादन का 12.5 फ़ीसदी ही उत्पादन कर रहा होगा? 

मोदी सरकार ने कम से कम 10 ऐसी गंभीर भूलें की हैं जिसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ा है।

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इन भूलों पर विचार करने से पहले इस सच्चाई को स्वीकार करें कि भारत के लोगों को बेहद ज़रूरी वक़्त में वैक्सीन नहीं मिली। वैक्सीन के लिए हम तरस गए। क्या इसलिए कि उत्पादन नहीं हो पाया? क्या इसलिए कि भारतीय वैज्ञानिकों ने वैक्सीन नहीं बनाई? ये दोनों बातें हुईं जो हिन्दुस्तान के लिए गौरवपूर्ण है। मगर, शर्मनाक है ऐसी गौरवपूर्ण उपलब्धियों के बीच कोरोना के कारण दूसरी लहर में हिन्दुस्तान में सबसे ज़्यादा मौत हुई। जो लाशें गिनी नहीं जा सकीं उन्हें जोड़ दें तो आँकड़ा बहुत भयावह हो जाए। इन मौतों को रोका जा सकता था। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका क्योंकि भारत सरकार ने कई बड़ी लापरवाहियाँ कर दिखलाईं।

10 भूलों का कबूलनामा है राष्ट्र के नाम संबोधन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महामारी के बीच 9वाँ राष्ट्र के नाम संबोधन भारत सरकार की लापरवाही का कबूलनामा है। वैक्सीन की खरीद से लेकर वितरण तक की ज़िम्मेदारी अब केंद्र सरकार के पास है। 1 मई से पहले भी यह केंद्र सरकार के पास ही थी। इस तरह यह ‘भूल-सुधार’ जैसा है। इसे हम भूल नंबर 10 कह सकते हैं। 

अब 50 फ़ीसदी वैक्सीन के बजाए 75 फ़ीसदी वैक्सीन केंद्र सरकार सीधे उत्पादकों से खरीदेगी। शेष 25 फ़ीसदी की खरीदारी निजी अस्पताल अपने स्तर पर करेंगे।

भूल नंबर एक : जब आत्मग्लानि में डूबे प्रदेश 

मोदी सरकार ने वैक्सीन वितरण का ज़िम्मा तो प्रदेशों को दिया लेकिन खरीद का रास्ता तैयार नहीं किया। उत्पादन बढ़ाने की चिंता से भी प्रदेशों को नहीं जोड़ा गया। यह भूल नंबर एक ऐसी भूल रही कि हरेक प्रदेश उत्पादकों के समक्ष पड़ोसी प्रदेशों से होड़ करने और उसमें सफल या असफल होने को ज़िम्मेदारी या ग़ैर ज़िम्मेदारी समझने लगे। भारत सरकार की नीति से निराश होकर लौट चुकी वैक्सीन कंपनियों से ग्लोबल टेंडर मंगवाए जा रहे थे। इसमें असफलता भी राज्य सरकार की ग़ैर ज़िम्मेदारी बन चुकी थी। नतीजे के तौर पर 18 से 44 साल की उम्र के लिए वैक्सीन अभियान बुरी तरह पिटा और यह राज्य सरकारों की असफलता के तौर पर देखी-दिखायी गयी। वैक्सीन के लिए हाहाकार मच गया। लोग सेंटर से लौट रहे थे। अब प्रधानमंत्रीजी ने प्रदेशों को इस ‘ग्लानि’ से उबार लिया है।

modi government 10 mistakes on vaccine policy  - Satya Hindi

भूल नंबर दो, तीन, चार

दुनिया में पहली वैक्सीन 8 दिसंबर को दी गयी। भारत में यह तारीख़ 16 जनवरी है। दुनिया के बड़े-बड़े देशों ने वैक्सीन बनाने के लिए निर्माता कंपनियों में निवेश किए। समय रहते ऑर्डर दिए। यह काम बीते वर्ष जुलाई महीने से शुरू हो चुका था। मगर, मोदी सरकार ने न तो निवेश किया और न ही समय रहते ऑर्डर ही दिया। इन्हें हम भूल नंबर दो और तीन कहते हैं। तीसरी भूल थी कि जब सीरम इंस्टीट्यूट मार्च महीने में 3000 करोड़ की मदद मांग रहा था तब भी केंद्र ने मदद का हाथ नहीं बढ़ाया। चौथी भूल रही कि सभी भारतीयों को वैक्सीन लगाने की नीति की ज़रूरत नहीं समझी गयी। इस बाबत समय रहते ऑर्डर नहीं दिए गये।

भूल नंबर 5: विदेश से वैक्सीन पाने की नहीं की कोशिश 

पाँचवीं बड़ी भूल रही कि भारत ने जब यह महसूस कर लिया था कि अपने देश में वैक्सीन का उत्पादन हमारी ज़रूरत को पूरा नहीं कर पाएगा तो विदेश से वैक्सीन हासिल करने के लिए प्रयास नहीं किए गये। जो विदेशी वैक्सीन दुनिया के कई देशों में ट्रायल के बाद उपयोग में लायी गयी, उनके लिए भी ट्रायल की अनिवार्यता से छूट का नियम भारत में मई महीने में बना। यह छूट पहले भी दी जा सकती थी। कई कंपनियों ने ऐसे ही नियमों के कारण भारत में वैक्सीन बेचने की पहल वापस ले ली थी।

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भूल नंबर 6: वैक्सीन थी नहीं तय करने लगे प्राथमिकता

वैक्सीन का इंतज़ाम किए बगैर इसकी प्राथमिकता तय करना सरकार की छठी भूल रही। पहले सिर्फ़ कोरोना वारियर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स और फिर सीनियर सिटिज़न के लिए वैक्सीन लगाने की नीति बनी। जब मार्च-अप्रैल में कोरोना से होने वाली मौत ने तांडव दिखाया तो आख़िर में 18 से 44 साल की उम्र के लोगों के लिए 1 मई से वैक्सीन देने का अभियान शुरू हुआ जो वैक्सीन की कमी के कारण सफल नहीं रहा। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों पर और राज्य सरकारों ने वैक्सीन उत्पादकों पर ज़िम्मेदारी डाल दी।

भूल नंबर 7: उत्पादन की चिंता नहीं की

स्वदेशी वैक्सीन का शोर तो ख़ूब हुआ लेकिन जोर दिखाया जाए इस पर भारत सरकार ने कोई क़दम नहीं बढ़ाया। अगर सार्वजनिक क्षेत्र की वैक्सीन बनाने वाली बंद पड़ी इकाइयों को ही जीवित करने पर काम कर लिया जाता तो स्वदेशी कोवैक्सीन का उत्पादन बढ़ाया जा सकता था। इस दिशा में निष्क्रियता या शिथिलता सातवीं बड़ी भूल है। यह पहल मई महीने में देखने को मिली जब सेंट्रल ड्रग कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने देश की तीन कंपनियों को कोवैक्सीन बनाने का काम सौंपा। इनमें से एक भारत इम्यूनोलॉजिकल्स एंड बायोलॉजिकल्स कॉरपोरेशन (BIBCOL) है। निर्णय बहुत देर से लिए गये। 

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भूल नंबर 8: ऐसे बढ़ा सकते थे उत्पादन 

वैक्सीन की कमी से निपटने का उपाय था उत्पादन बढ़ाना। सीरम इंस्टीट्यूट से भी तकनीक का हस्तांतरण कर उचित मुआवजा देते हुए उत्पादन बढ़ाने का विकल्प पैदा हो सकता था। मगर, इस दिशा में सोचा ही नहीं गया। यह आठवीं बड़ी भूल कही जा सकती है।

भूल नंबर 9: भारत वैक्सीन उत्पादन में फिसड्डी

महामारी के समय सबसे बड़ी ताक़त थी भारत का वैक्सीन उत्पादन में महाबली होना। मगर, इस ताक़त का इस्तेमाल दिखा ही नहीं। हालत यह है कि महामारी के बीच 2021 के अंत तक भारत वैक्सीन का बमुश्किल 12 फीसदी उत्पादन कर रहा होगा। इससे जुड़ी गलती मोदी सरकार की 9वीं बड़ी भूल है। इसे आंकड़ों से समझते हैं।

लांच एंड स्केल स्पीडोमीटर ने वैक्सीन उत्पादक कंपनियों के उत्पादन लक्ष्य को आधार बनाकर बताया है कि 2021 के अंत तक दुनिया में 12 अरब वैक्सीन का उत्पादन होगा।

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की 2 अरब 10 करोड़ खुराक इस साल तैयार हो जाएगी। इनमें से 88 करोड़ 62 लाख 50 हजार वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट बनाएगा। उसके पास कुल 96 करोड़ से ज़्यादा वैक्सीन का ऑर्डर है। यानी उत्पादन कम, मांग ज़्यादा।

भारत बायोटेक की ओर से कोवैक्सीन की 59 करोड़ खुराक इस साल के अंत तक बनाने का लक्ष्य है। इसमें से जो हिस्सा भारत सरकार विदेश में देना चाहे या बेचना चाहे उसे छोड़कर सभी वैक्सीन भारतीयों के लिए उपलब्ध है। अगर सीरम इंस्टीच्यूट और भारत बायोटेक से बनने वाले वैक्सीन उत्पादन के लक्ष्य पर नज़र डालें तो साल के अंत तक यह संख्या 1.47 अरब होगी। दुनिया में साल के अंत तक बनने वाली 12 अरब वैक्सीन की डोज का यह 12.25 फीसदी है। 

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थोड़ी चर्चा स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन की भी कर लेते हैं। भारत बायोटेक ने 59 करोड़ वैक्सीन उत्पादन का लक्ष्य 2021 के लिए घोषित किया है। इनमें से 50 करोड़ 15 लाख वैक्सीन का उत्पादन अभी होना बाकी है। मतलब यह कि वह 8.85 करोड़ वैक्सीन बना चुका है। यह बहुत छोटी संख्या है मगर वैक्सीनेशन के आरंभिक दौर में अगर वैक्सीन विदेश को निर्यात नहीं की गयी होती तो यह संख्या भी उपयोगी होती।
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भूल नंबर 10: वैक्सीन के बदले ‘कोरोनिल’ का प्रचार

सरकार से सवालों के बीच सरकार का एक रवैया भी खासा बेचैन करने वाला रहा। एक तरफ आम लोगों को वैक्सीन नहीं मिल पा रही थी और दूसरी तरफ भारत सरकार कोरोनिल अपनाने की अपील कर रही थी। दवा बताकर कोरोनिल बेचने की कोशिशों को प्रोत्साहित करना मोदी सरकार की दसवीं बड़ी भूल कही जा सकती है। हरियाणा जैसे राज्य तो कोरोनिल को एलोपैथ दवाओं के साथ किट के तौर पर बांटना शुरू कर चुके थे। इसका इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने विरोध किया। 

वैक्सीन पर अपनी पॉलिसी बदल चुके हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। इस बदलाव के बावजूद क्या मोदी सरकार कोरोना से हुई साढ़े तीन लाख से ज़्यादा मौतों के लिए अपनी ज़िम्मेदारी से बच सकेगी? कोरोना की पहली लहर के मुक़ाबले न दैनिक संक्रमण के आंकड़े कम हुए हैं और न ही मौत के आंकड़ों में कमी आयी है। नये वैरिएंट, फंगस जैसी बीमारी, ऑक्सीजन की कमी और दवाओं की कमी से मौत के बीच वैक्सीन उपलब्ध नहीं करा पाना मोदी सरकार की बड़ी कमजोरी सामने दिखी है। इस वजह से कोरोना की महामारी में पूरा देश फेल हुआ है। इसके लिए सबसे बड़े ज़िम्मेदार हैं ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

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प्रेम कुमार
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