2014 के मुक़ाबले 2021 में आज भारत कहाँ खड़ा है, आम भारतीय किस स्थिति में हैं- इसका आकलन ही मोदी सरकार के 7 साल के कामकाज का मूल्यांकन हो सकता है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले बीजेपी के शासनकाल में जहाँ जीडीपी की विकास दर घटती चली गयी, वहीं देशवासियों पर कर्ज बढ़ता चला गया। रोज़गार देने के मामले में भी यह फिसड्डी साबित हुई। बात रोज़गार छिन जाने तक जा पहुँची। स्थिति यह है कि बीते 7 साल में बेरोज़गारी दर दोगुनी हो चुकी है।
नोटबंदी के बाद उल्टा घूमने लगा पहिया
नरेंद्र मोदी के शासनकाल के शुरुआती दो साल में आर्थिक विकास दर सकारात्मक रही, लेकिन बाद के वर्षों में यह लगातार गिरती चली गयी। 2014 में आर्थिक विकास दर 7.4 प्रतिशत थी जो 2016 में बढ़कर 8.25 प्रतिशत हो गयी। लेकिन, नोटबंदी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था का चक्का उल्टा घूमने लगा। आर्थिक विकास दर में लगातार गिरावट जारी है और यह 2018 में 7.04%, 2019 में 6.11% और 2020 में 4.18% के स्तर पर लुढ़क चुकी है।
प्रति व्यक्ति जीडीपी में भारत
जीडीपी के आकार के मामले में भारत 2014 में 10वें नंबर पर था और अब इससे आगे बढ़कर छठे नंबर पहुँच चुका है। मगर, प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत 147वें स्थान पर है। इसका मतलब यह है कि आम भारतीय पहले से अधिक ग़रीब हुए हैं। भारत की रैंकिंग 22 स्थान नीचे लुढ़क गयी है। 2016 में भारत 125वें स्थान पर था और 2017 में 126वें स्थान पर।
भुखमरी की ओर बढ़ा देश
किसी देश की स्थिति का आकलन जिन आधारों पर होता है उनमें अहम है भुखमरी का सूचकांक जिसे ग्लोबल हंगर इंडेक्स कहते हैं। 2014 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान 76 देशों के बीच 55वाँ था। 2020 में 107 देशों के बीच भारत का स्थान 94वाँ हो गया। एक साल बाद 2021 में इसमें और गिरावट आ गयी है। अब 2021 में 117 देशों के बीच भारत 102वें स्थान पर पहुँच चुका है।
मानव विकास सूचकांक में भारत
किसी देश की सेहत को समझने के लिए एक अन्य पैमाना मानव विकास सूचकांक यानी एचडीआई का होता है। इस पैमाने पर भारत आज वर्ष 2021 में 189 देशों के बीच 131वें स्थान पर है।
2014 में भारत का स्थान 188 देशों के बीच 130वाँ था। इसका मतलब साफ़ है कि स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। उल्टे स्थिति बिगड़ी है।
5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का सपना
भारत ने जहाँ जीडीपी के मामले में एक ट्रिलियन का पड़ाव 60 साल में पूरा किया। 2007 में यह 1.23 ट्रिलियन के मुकाम पर पहुँचा। वहीं, इसे दोगुना होने में महज 7 साल लगे। 2014 में भारत की जीडीपी का आकार 2.03 ट्रिलियन डॉलर हो गया। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी तक ले जाने का लक्ष्य रखा। यह लक्ष्य बीते 7 साल के रिकॉर्ड को देखते हुए कठिन लक्ष्य नहीं था। लेकिन 2014 से 7 साल बाद इस लक्ष्य के आसपास पहुँचना तो दूर हम 1 ट्रिलियन डॉलर भी अपनी इकोनॉमी में नहीं जोड़ पाए हैं। अब 2021 में भारत की जीडीपी 2.7 ट्रिलियन डॉलर की रह गयी है।
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7 साल में दोगुना हुआ देश पर कर्ज
भारत पर राष्ट्रीय कर्ज आज 2.62 ट्रिलियन डॉलर है (स्रोत-statista.com)। यह आँकड़ा भारत की जीडीपी (2.7 ट्रिलियन डॉलर) के लगभग बराबर पहुँच चुका है। 2015 में यही कर्ज 1.28 ट्रिलियन डॉलर था। इसका मतलब साफ़ है कि जिस गति से क़र्ज़ में बढ़ोतरी हुई है वह जीडीपी में बढ़ोतरी से कहीं अधिक तेज़ है। जीडीपी और क़र्ज़ का अनुपात 89.56 हो चुका है।
कमजोर होता गया रुपया
भारतीय मुद्रा में लगातार गिरावट को देखते हुए यह कर्ज बहुत बड़ा सिरदर्द है। डॉलर के मुकाबले रुपया बीते सात साल में 13.11 रुपये कमजोर हुआ है। 2014 में एक डॉलर की कीमत 62.33 रुपये थी। आज यह 75.44 रुपये है। मुद्रा के कमजोर होने का मतलब है कि विदेश से लिया हुआ लोन महंगा हो जाता है।
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बढ़ने के बजाए घट गया निर्यात
किसी देश की व्यापारिक सेहत को जानने के लिए उसके आयात-निर्यात और व्यापार संतुलन को देखा जाता है। 2014 में भारत का निर्यात कुल 317.545 अरब डॉलर का था। यह आगे बढ़ने के बजाए मोदी के शासनकाल में घटने लगा। 2020 में यह नीचे घटकर 275 अरब डॉलर का हो गया। 2019 के मुकाबले 2020 में अकेले एक साल में 14.7 प्रतिशत की गिरावट आयी।
आयात में मामूली सुधार
अगर आयात पर नज़र डालें तो 2014 में 459.369 अरब डॉलर मूल्य का आयात हुआ था। 2019-20 में आयात बढ़कर 474.71 अरब डॉलर का हो गया। आयात का बढ़ना किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं माना जाता। कोशिश इसे घटाने की होती है। 2020-21 में अवश्य इसमें कमी आयी जो घटकर 389.18 अरब डॉलर का रह गया है।
जाहिर है कि महामारी वाले वर्ष में आयात में दिख रही मामूली कमी किसी उपलब्धि की ओर इशारा नहीं करती। मगर, पूरे 7 साल का मूल्यांकन करें तो निर्यात घटा है और आयात में मामूली कमी आयी है।
दोगुनी हुई बेरोज़गारी की दर
जब नरेंद्र मोदी ने देश की शासन व्यवस्था की बागडोर संभाली थी तब 2014 में भारत में बेरोज़गारी की दर 5.61 प्रतिशत थी। 2019 में इसमें मामूली सुधार हुआ और यह 5.36 प्रतिशत पर पहुँच गयी। लेकिन, उसके बाद स्थिति बिगड़ती चली गयी। पकौड़े वाले रोज़गार की सोच भी आंकड़े को नहीं संभाल सकी। 2020 और 2021 में बेरोजगारी का प्रतिशत दोहरे अंक को पार कर चुका है। मतलब यह कि बेरोज़गारी के मामले में जो स्थिति 2014 में थी उससे दोगुनी बुरी 2021 में हो चुकी है। बेरोज़गारी के मामले में भयावह स्थिति है।
21.93 रुपये महंगा हुआ पेट्रोल
पेट्रोल की कीमत में 21.93 रुपये प्रति लीटर का उछाल बीते 7 साल में देखने को मिला है। डीजल में यह उछाल 27.04 रुपये प्रति लीटर का है। जहां 2014 में कार की टंकी 2500 रुपये में भरा करती थी वह 4500 रुपये में भरी जाने लगी है। 2014 में राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत थी 71.51 रुपये प्रति लीटर (जून में)। 2021 में यह 93.44 रुपये प्रति लीटर है। इसी तरह 2014 में डीजल की कीमत थी 57.28 रुपये प्रति लीटर। 2021 में यह 84.32 रुपये प्रति लीटर है।
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पेट्रोल-डीजल की मार जनता पर तब पड़ी है जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत लगातार घटती गयी है। मई 2014 में कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में 106.85 डॉलर प्रति बैरल था। जबकि, आज यह 68.32 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है।
मोदी शासनकाल में आम आदमी की जेब हल्की हुई। जीना मुश्किल हुआ। समाज गुणवत्तापूर्ण जीवन से दूर हुआ। ग़रीब वर्ग में करोड़ों मध्यमवर्ग के लोग शामिल होने को विवश हुए। इस तरह मध्यमवर्ग का आकार छोटा हुआ। अमीर और अमीर हुए, जबकि ग़रीब और ग़रीब। ‘सबका साथ सबका विकास’ के सपने दिखाती सरकार खुद इस मक़सद से दूर होती चली गयी। सामाजिक समरसता भी देखने को नहीं मिली। महामारी ने हर मोर्चे पर मोदी सरकार की पोल खोल दी।
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