भारत में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने केंद्र के इस दावे का जोरदार विरोध किया कि समलैंगिक विवाह के मामले में क़ानून बनाने का अधिकार संसद के पास है। उन्होंने कहा कि यह मूल अधिकार से जुड़ा मामला है और यह संविधान का मामला बनता है। उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान की व्याख्या का अधिकार दिया गया है और इसलिए वह यह तय कर सकता है कि मूल अधिकार से संसद छेड़छाड़ नहीं करे।
समलैंगिक शादी: 'मूलभूत अधिकार पर संसद नहीं, कोर्ट दखल दे'
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- 25 Apr, 2023
समलैंगिक विवाह के मामले में केंद्र की उस दलील का आज याचिकाकर्ताओं की ओर से जवाब दिया गया जिसमें उसने कहा था कि क़ानून संसद बना सकती है, कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। जानिए उन्होंने क्या तर्क दिया।

उन्होंने केंद्र सरकार के तर्क को लेकर कहा कि वे संसद के ब्रिटिश स्वरूप पर भरोसा कर रहे हैं, जबकि हमारी संसद संविधान के प्रति बाध्य है और संविधान की व्याख्या न्यायालय द्वारा की जाती है।