भारत में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बीच केंद्र सरकार ने कुछ ऐसी दलील दे दी कि सुप्रीम कोर्ट ने उसकी तीखी आलोचना की। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने न्यायिक शक्तियों को सीमित करने के लिए दलील के रूप में एक अमेरिकी अदालत के फ़ैसले का ज़िक्र किया।
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने डॉब्स बनाम एक्स में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के विवादास्पद फ़ैसले का ज़िक्र किया था। इस फ़ैसले में वहाँ की अदालत ने यह कहा था कि गर्भपात का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले की आलोचना की गई।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने डॉब्स बनाम एक्स मामले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के विवादास्पद फ़ैसले का हवाला दिए जाने पर आपत्ति जताई। जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपने तर्क का समर्थन करने के लिए अमेरिकी कोर्ट के फ़ैसले का हवाला दिया, तो सीजेआई ने तुरंत टिप्पणी की, 'डॉब्स का हवाला न दें, हम इससे बहुत आगे हैं और सौभाग्य से ऐसा है।'
लाइल लॉ की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल उन याचिकाओं का विरोध कर रहे थे जिनमें समलैंगिक विवाहों को क़ानूनी मान्यता देने की मांग की गई है। इस संबंध में उन्होंने अमेरिका के 'रो बनाम वेड' के फैसले का हवाला दिया। यह 50 साल पुराना ऐतिहासिक निर्णय था जिसने 1973 में अमेरिका में गर्भपात के संवैधानिक अधिकार को स्थापित किया था। इसको हाल ही में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाने में न्यायपालिका की अक्षमता का हवाला देते हुए पलट दिया था और यह कहा था कि 'गर्भपात को विनियमित करने का अधिकार लोगों और उनके चुने हुए प्रतिनिधियों को वापस किया जाता है।' इसका मतलब है कि गर्भपात पर सरकार जो भी क़ानून बनाना चाहे बना सकती है।
सीजेआई ने कहा, '...लेकिन अगर आप उस सिद्धांत का समर्थन करने के लिए डॉब्स पर भरोसा कर रहे हैं तो हम भारत में डॉब्स से कहीं आगे निकल गए हैं... क्योंकि डॉब्स अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के इस विचार का प्रतिनिधित्व करते हैं कि एक महिला का अपने शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं है। इस सिद्धांत को हमारे देश में बहुत पहले खारिज कर दिया गया है... इसलिए आप सिद्धांतों के समर्थन में ग़लत फ़ैसले का हवाला दे रहे हैं... डॉब्स का हवाला न दें।'
सीजेआई की आपत्ति के बाद सॉलिसिटर जनरल ने सफ़ाई दी कि वह उस विषय वस्तु के लिए डॉब्स पर निर्भर नहीं हैं जो उसने तय किया था, लेकिन सिद्धांत यही है कि न्यायपालिका कानून नहीं बना सकती। उन्होंने सफ़ाई में कहा कि गर्भपात एक महिला की स्वायत्तता का अधिकार है, मैं उस बिंदु पर बिल्कुल नहीं हूँ।
बता दें कि याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने मंगलवार को केंद्र के इस दावे का जोरदार विरोध किया था कि समलैंगिक विवाह के मामले में क़ानून बनाने का अधिकार संसद के पास है। उन्होंने कहा था कि यह मूल अधिकार से जुड़ा मामला है और यह संविधान का मामला बनता है। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान की व्याख्या का अधिकार दिया गया है और इसलिए वह यह तय कर सकता है कि मूल अधिकार से संसद छेड़छाड़ नहीं करे।
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उन्होंने केंद्र सरकार के तर्क को लेकर कहा था कि वे संसद के ब्रिटिश स्वरूप पर भरोसा कर रहे हैं, जबकि हमारी संसद संविधान के प्रति बाध्य है और संविधान की व्याख्या न्यायालय द्वारा की जाती है।
गुरुस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष तर्क दिया कि कुछ बुनियादी अधिकार विधायिका या बहुमत के ऊपर नहीं छोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इन अधिकारों को बहुमत के शासन की कवायद से अलग किया गया है।
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