कोरोना वैक्सीन की कमी की दिल्ली और तमिलनाडु जैसे राज्यों की शिकायतों के बाद नए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया बिफर पड़े हैं। उन्होंने बुधवार को कहा कि ऐसे राज्य वैक्सीन के स्टॉक की कमी की बात कहकर 'बेकार बयान' दे रहे हैं और लोगों के बीच घबराहट पैदा कर रहे हैं।
एक दिन पहले ही मंगलवार को दिल्ली सरकार ने कहा था कि सरकार द्वारा संचालित कई टीकाकरण केंद्रों को बंद करना पड़ा है क्योंकि इसका कोविशील्ड का स्टॉक ख़त्म हो गया है। टीके की कमी की बात महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, झारखंड और पंजाब ने भी कही थी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने हाल ही प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर सचेत किया था कि राज्य में कई केंद्रों पर वैक्सीन ख़त्म होने को हैं। उन्होंने एक करोड़ खुराक की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि हर 1000 जनसंख्या पर राज्य को 302 वैक्सीन की खुराक मिली है जबकि गुजरात को 533, कर्नाटक को 493 और राजस्थान को 446 खुराक मिली।
ऐसी ही शिकायतों के बीच नये स्वास्थ्य मंत्री मंडाविया का यह बयान आया है। उन्होंने वैक्सीन की कमी की शिकायतें करने वाले राज्यों पर 'अव्यवस्था' का आरोप लगाया है। मंडाविया ने कहा है कि उन्होंने कोरोना वैक्सीन की उपलब्ध आपूर्ति के बारे में राज्यों को पहले ही बता दिया था, लेकिन वे राज्य उसके अनुसार योजना बनाने में विफल रहे।
इसको लेकर मंडाविया ने एक के बाद एक छह ट्वीट किए। उन्होंने ट्वीट किया, 'वैक्सीन की उपलब्धता के संदर्भ में मुझे विभिन्न राज्य सरकारों और नेताओं के बयान एवं पत्रों से जानकारी मिली है। तथ्यों के वास्तविक विश्लेषण से इस स्थिति को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। निरर्थक बयान सिर्फ़ लोगों में घबराहट पैदा करने के लिए किए जा रहे हैं।'
उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा, 'केंद्र ने 19 जून को राज्यों को सूचित किया था... जुलाई में वैक्सीन की कितनी खुराक उपलब्ध होगी। इसके बाद 27 जून और 13 जुलाई को राज्यों को जुलाई के पहले और दूसरे पखवाड़े तक हर दिन टीकों की उपलब्धता के बारे में बताया गया।'
सरकारी और निजी अस्पतालों के जरिए टीकाकरण हो सके, इसलिए जून महीने में 11.46 करोड़ वैक्सीन की डोज राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को उपलब्ध कराए गए और जुलाई के महीने में इस उपलब्धता को बढ़ाकर 13.50 करोड़ किया गया है। (2/6)
— Mansukh Mandaviya (@mansukhmandviya) July 14, 2021
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भले ही राज्यों पर कुछ भी आरोप लगाएँ, लेकिन सच्चाई यह है कि कोरोना टीकाकरण धीमा पड़ता जा रहा है। चाहे इसके पीछे टीके की कमी का कारण हो या वैक्सीन हेजिटेंसी यानी वैक्सीन के प्रति झिझक का।
इसको ऐसे समझा जा सकता है कि देश में 21 जून को एक दिन में 91 लाख कोरोना टीके लग गए थे, लेकिन 13 जुलाई को क़रीब 37 लाख टीके ही लगाए जा सके हैं। 11 जुलाई को तो 13 लाख से भी कम टीके लगाए जा सके थे। पिछले सात दिन का औसत निकाला जाए तो हर रोज़ 35 लाख से भी कम टीके लगाए जा रहे हैं।
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केंद्र सरकार ने तय कर रखा है कि वह इस साल के आख़िर तक वैक्सीन के लिए योग्य पूरी आबादी को टीका लगवा देगी। लेकिन इसके लिए हर रोज़ औसत रूप से 80-90 लाख टीके लगाए जाने की ज़रूरत है। पर सरकार इतनी संख्या में टीके नहीं लगवा पा रही है। अब तो औसत रूप से क़रीब 33 लाख ही हर रोज़ टीके लगा जा रहे हैं। सरकार की ओर से कहा गया था कि जुलाई से टीके की उपलब्धता और बढ़ जाएगी। इस मामले में सरकार ने पहले तो कहा था कि अगस्त से लेकर दिसंबर तक पाँच महीने में 216 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध करा देगी, लेकिन बाद में उसने इस आँकड़े को संशोधित किया था। सरकार ने कहा था कि वह 135 करोड़ वैक्सीन ही उपलब्ध करा पाएगी। हालाँकि, मौजूदा हालात में तो यह लक्ष्य भी काफ़ी दूर नज़र आ रहा है।
टीकाकरण के ऐसे हालात तब हैं जब कोरोना संकट से निपटने के लिए अभी कोरोना वैक्सीन पर ही निर्भर रहा जा सकता है। जब तक टीका नहीं आया था तो लॉकडाउन ही एकमात्र उपाय था। लेकिन क़रीब डेढ़ साल से कोरोना और लॉकडाउन की मार झेल रही अर्थव्यवस्था भी लॉकडाउन को ज़्यादा झेलने की स्थिति में नहीं है। यानी संक्रमण के तेज़ी से फैलने या संभावित तीसरी लहर से लड़ने का एकमात्र उपाय टीकाकरण ही नज़र आता है।
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