महाकुंभ प्रयागराज में बुधवार को हुई भगदड़ की खबर अब मध्यम पड़ने लगी है। भारत का गोदी मीडिया महाकुंभ की बदइंतजामी और योगी आदित्यनाथ की हठधर्मी पर बात नहीं करना चाहता। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ घटना की सूचना देते समय भगदड़ में मरने वालों की सूचना तक नहीं देते हैं। वो सिर्फ घायलों का जिक्र करते हैं। हालांकि मरने वालों की तादाद 10 से 15 बताई जा रही है लेकिन प्रत्यक्षदर्शी बता रहे हैं कि आंकड़ा इससे बड़ा है। जिस तरह कोरोना से हुई मौतों को छिपाया गया, उसी तरह महाकुंभ भगदड़ में मौतों की तादाद छिपाई जा रही है। लेकिन हमारी रिपोर्ट का विषय बुधवार की भगदड़ नहीं है। यहां पर बात उस भगदड़ की हो रही है जो 3 फरवरी 1954 को हुई थी। उस घटना में इलाहाबाद में 800 लोगों की मौत हुई थी।
1954 की घटना की बात इतिहास में दर्ज होकर रह गई थी। लेकिन 2019 में पीएम मोदी ने इसे विवादास्पद बनाना चाहा। यहां तक कि मई 2019 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के कौशांबी में एक रैली में इस घटना को उठाया था। मोदी ने इस बात की तुलना उस रैली में की थी कि भाजपा और कांग्रेस सरकारें कैसे कुंभ को संभालती हैं। उन्होंने 1954 की भगदड़ का जिक्र करते हुए 2019 के कुंभ मेले के लिए यूपी सरकार के इंतजाम की तारीफ की थी। क्या मोदी को 2019 की अपनी विवादित बातें याद हैं।.
मई 2019 में मोदी और बीजेपी ने आरोप लगाया था कि 1954 की घटना की खबर "दबा दी गई।" राज्यसभा में उस समय प्रधानमंत्री नेहरू से सवाल हुए थे। उन्होंने गहरा दुख जताया था, सदन ने एक मिनट का मौन भी रखा। लेकिन उससे पहले नेहरू ने तर्क दिया कि यह "अनिवार्य रूप से उत्तर प्रदेश सरकार का मामला है।" हालाँकि, नेहरू ने कहा था, "निस्संदेह, दूसरे अर्थ में, यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मामला है, एक राष्ट्रीय त्रासदी है...।" नेहरू से सवाल इसलिए हुए थे कि तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और पीएम नेहरू एक ही दिन इलाहाबाद पहुंच गये थे। राजेंद्र प्रसाद ने तो स्नान भी किया था।
बीजेपी ने कौशांबी में दिये गए मोदी के भाषण के अंशों को ट्वीट किया था। मोदी ने 1 मई 2019 को कहा था- जब पंडित नेहरु प्रधानमंत्री थे तो वो एक बार कुंभ मेले में आये थे। तब पंचायत से पार्लियामेंट तक कांग्रेस की सरकार थी।
तब अव्यवस्था के कारण कुंभ में भगदड़ मच गई थी, हजारों लोग मारे गए थे।
लेकिन पंडित नेहरु पर कोई दाग न लग जाए, उसके लिए ये खबर दबा दी गई: पीएम। बीजेपी के उस ट्वीट को नीचे दिया जा रहा है, ताकि मोदी को उनका भाषण याद दिलाया जा सके।
क्या नेहरू उस भगदड़ के लिए जिम्मेदार थे, क्या वो कुंभ में गये थे
3 फरवरी 1954 को नेहरू कहां थे, इस पर नेहरू ने राज्यसभा में सवालों के जवाब में कहा था: “मैं उस स्थान पर मौजूद नहीं था। जहां त्रासदी हुई थी, लेकिन उससे बहुत दूर भी नहीं था। मैं उस अवसर पर नदी (गंगा) के दोनों किनारों पर शायद 40 लाख लोगों की जबरदस्त भीड़ को कभी नहीं भूल सकता।" दस्तावेज बताते हैं कि बाद में यूपी सरकार के जांच पैनल ने इसकी जांच की। उसने 3 फरवरी 1954 को इलाहाबाद में वीआईपी मौजूदगी और भगदड़ के बीच कोई सीधा संबंध नहीं पाया।
क्या हुआ था 3 फरवरी 1954 को
1954 का इलाहाबाद कुंभ मेला आज़ादी के बाद अपनी तरह का पहला मेला था। इसीलिए आने वालों में नेहरू और तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी थे।
राजेंद्र प्रसाद ने गंगा घाट पर पवित्र स्नान किया। फ़ोटोग्राफ़र एनएन मुखर्जी ने 1989 में एक पत्रिका में एक प्रत्यक्षदर्शी विवरण साझा किया था। मुखर्जी ने लिखा था- “मुझे आज भी यह याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि कैसे मैंने मरते हुए या मृत पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के शरीरों पर आड़े-तिरछे तस्वीरें लीं, जो टक्कर के बाद जमीन पर गिर गए थे।" उन्होंने बताया कि मौनी अमावस्या पर सुबह 9 से 10 बजे के बीच जब भगदड़ मची तो नेहरू मेले के प्रबंधन की निगरानी के लिए वहां मौजूद थे। नेहरू राहत कार्य का निर्देश दे रहे थे।
मुखर्जी, जो उस समय अमृत बाजार पत्रिका अखबार के साथ काम कर रहे थे, जो इलाहाबाद से निकलता था। उन्होंने लिखा कि वीआईपी कारों को गुजरने के लिए एक बैरियर लगाया गया था और दोनों तरफ भीड़ खड़ी थी। नेहरू और राजेंद्र प्रसाद के आगे बढ़ने के बाद, "बड़ी संख्या में दर्शक, जिन्हें बैरियर के दोनों ओर रोक दिया गया था, वे बैरियर को तोड़ते हुए नीचे घाट की ओर जाने लगे थे।"
घटना की जांच में कई कारण बताए गए, जैसे गंगा का अपना मार्ग बदलना और एक घाट पर बहुत अधिक श्रद्धालुओं का जमा होना। लेकिन उस समय नेहरू और राजनीतिक व्यवस्था पर कम आरोप लगे थे। बेशक 2025 के महाकुंभ में भीड़ उस समय के मुकाबले कई गुना ज्यादा थी लेकिन तब (1954) राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के जाने का वहां प्रचार नहीं किया गया था। इस बार तो मात्र यूपी सरकार के मंत्रियों के जाने को बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जा रहा है। इलाहाबाद के चप्पे चप्पे पर मोदी-योगी के पोस्टर हैं।
मुखर्जी ने उस दिन के बारे में लिखा था- “बैरियर के दूसरी ओर साधुओं का एक जुलूस चल रहा था। भारी भीड़ उमड़ने से जुलूस में खलल पड़ गया। जब भीड़ बैरिकेड की ढलान पर हादसे का शिकार हो गई, तो ऐसा लगा जैसे खड़ी फसलों के गिरने से ठीक पहले तूफान आने पर लहरें उठती हैं। जो गिरे वे फिर उठ नहीं सके। उन्होंने लिखा, 'मुझे बचाओ, मुझे बचाओ' की आवाजें गूंजने लगीं। उन्होंने लिखा कि अधिकारी शाम करीब 4 बजे तक इस त्रासदी के पैमाने के बारे में काफी हद तक अनजान थे।
2025 से पहले प्रयाग कुंभ में फरवरी 2013 में आखिरी बार भगदड़ की सूचना मिली थी, जिसमें इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर एक फुट ओवरब्रिज गिरने से 42 लोग मारे गए थे, जिससे दहशत फैल गई थी।
(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)
अपनी राय बतायें