हिंडनबर्ग रिसर्च के ताज़ा आरोपों को सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने खारिज कर दिया है। उन्होंने इसको लेकर रविवार को एक विस्तृत बयान साझा किया। बुच ने कहा कि फंड में उनका निवेश, जिसके बारे में हिंडनबर्ग ने दावा किया था कि यह कथित 'अडानी स्टॉक हेरफेर' से जुड़ा है, माधबी के सेबी में शामिल होने से दो साल पहले किया गया था।
उनकी यह सफ़ाई तब आई है जब अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर फर्म ने शनिवार को दावा किया कि व्हिसलब्लोअर दस्तावेजों से पता चलता है कि सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच की अडानी मनी साइफनिंग स्कैंडल में इस्तेमाल की गई संदिग्ध ऑफशोर संस्थाओं में हिस्सेदारी थी। इसने आरोप लगाया है कि इसीलिए उन्होंने अडानी को लेकर पहले किए गए खुलासे के मामले में कार्रवाई नहीं की। हिंडनबर्ग रिसर्च ने बाजार नियामक सेबी से जुड़े हितों के टकराव का सवाल उठाया है।
हिंडनबर्ग अमेरिका आधारित निवेश रिसर्च फर्म है जो एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलिंग में एक्सपर्ट है। इसकी ताज़ा रिपोर्ट जनवरी 2023 में पहली बार राजनीतिक तूफ़ान खड़ा करने के क़रीब 18 महीने बाद आई है। पिछले साल 24 जनवरी की एक रिपोर्ट में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप पर स्टॉक में हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि उसने अपनी रिसर्च में अडानी समूह के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों सहित दर्जनों व्यक्तियों से बात की, हजारों दस्तावेजों की जांच की और इसकी जांच के लिए लगभग आधा दर्जन देशों में जाकर साइट का दौरा किया।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कैरेबियाई देशों, मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात तक फैले टैक्स हैवन देशों में अडानी परिवार के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियों का कथित नेक्सस बताया गया था। तब से अडानी समूह ने लगातार इन आरोपों का खंडन किया है। पिछले साल हिंडनबर्ग रिसर्च के उस आरोप पर अडानी समूह ने कहा था कि दुर्भावनापूर्ण, निराधार, एकतरफा और उनके शेयर बिक्री को बर्बाद करने के इरादे से ऐसा आरोप लगाया गया था।
उन्होंने बयान में कहा है, '2010 से 2019 तक, धवल लंदन और सिंगापुर में रहते थे और काम करते थे - दोनों ही जगह यूनिलीवर के साथ। 2011 से मार्च 2017 तक, माधबी सिंगापुर में रहती थीं और काम करती थीं। शुरू में एक निजी इक्विटी फर्म के कर्मचारी के रूप में और बाद में एक सलाहकार के रूप में। हिंडनबर्ग रिपोर्ट में संदर्भित फंड में निवेश 2015 में किया गया था जब वे दोनों सिंगापुर में रहने वाले निजी नागरिक थे और यहां तक कि एक पूर्णकालिक सदस्य के रूप में माधबी के सेबी में शामिल होने से लगभग 2 साल पहले।' उन्होंने कहा है कि 'किसी भी समय फंड ने किसी भी अडानी समूह की कंपनी के किसी भी बॉन्ड, इक्विटी या डेरिवेटिव में निवेश नहीं किया'।
बयान में कहा गया है कि उस फंड में निवेश करने का निर्णय एक बचपन के दोस्त की सलाह पर लिया गया था। बयान में आगे कहा गया कि 2017 में सेबी में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में उनकी नियुक्ति के बाद माधबी की दो परामर्श कंपनियाँ तुरंत निष्क्रिय हो गईं।
माधबी और धवल ने हिंडनबर्ग रिसर्च पर सेबी की विश्वसनीयता पर हमला करने और इसके अध्यक्ष के चरित्र हनन में लिप्त होने का भी आरोप लगाया।
बयान में कहा गया कि 'भारत में कई तरह के उल्लंघनों के लिए हिंडनबर्ग को कारण बताओ नोटिस दिया गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कारण बताओ नोटिस का जवाब देने के बजाय, उन्होंने सेबी की विश्वसनीयता पर हमला करने और सेबी अध्यक्ष के चरित्र हनन का प्रयास करने का विकल्प चुना है।'
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार एसेट मैनेजमेंट कंपनी 360 वन ने भी कहा कि उसके आईपीई-प्लस फंड 1 ने कभी भी अडानी ग्रुप के शेयरों में कोई निवेश नहीं किया है। एक बयान में उन्होंने कहा कि बुच की होल्डिंग फंड में कुल निवेश का 1.5 प्रतिशत से भी कम थी और इस बात पर जोर दिया कि फंड के संचालन या निवेश निर्णयों में किसी भी निवेशक की कोई भागीदारी नहीं थी।
अडानी समूह ने भी आरोपों को नकारा
हिंडनबर्ग रिसर्च के दावे को अडानी समूह ने दुर्भावनापूर्ण, शरारती और छेड़छाड़ वाला क़रार दिया है। अडानी ने यह बयान तब दिया है जब हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में उसका नाम आया है।
एक बयान में अडानी समूह ने रविवार को कहा कि ताज़ा आरोप बदनाम दावों को फिर से लगाया गया है जो अदालत में निराधार साबित हुए हैं। इसने एक्सचेंज फाइलिंग में कहा, 'हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए ताज़ा आरोप सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचनाओं का दुर्भावनापूर्ण, शरारती और तोड़-मरोड़ कर लगाए गए हैं। ये तथ्यों और कानून को तोड़ते मरोड़ते हुए व्यक्तिगत मुनाफाखोरी के लिए पूर्व-निर्धारित निष्कर्षों पर पहुँचने के लिए लगाए गए हैं। हम अडानी समूह के खिलाफ इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज करते हैं। ये बदनाम दावों को फिर से लगाए गए हैं, जिनकी गहन जांच की गई है, जो निराधार साबित हुए हैं और जिन्हें जनवरी 2024 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पहले ही खारिज कर दिया गया है।'
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