लोकसभा में बृहस्पतिवार को तीन तलाक़ बिल पारित तो हो गया, पर यह सवाल बचा हुआ है कि इसके पीछे सरकार की मंशा क्या है। यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या वह वाकई इसे क़ानून बनाना चाहती है या उसके नाम पर सिर्फ़ दिखावा कर रही है। यह सवाल लाज़िमी इसलिए है कि बिल को पारित कराने लायक बहुमत राज्यसभा में सरकार के पास नहीं है। वह वहाँ पहले से ही अल्पमत में है, सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड ने लोकसभा में इसका विरोध कर सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इसे राज्यसभा में पास कराना लगभग नामुमकिन है। फिर सवाल उठता है कि सरकार ने बिल का विरोध करने वालों की बात क्यों नहीं सुनी, उसने क्यों उनकी आपत्तियों को बिल में शामिल करने की बात नहीं सोची। ये ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर सिर्फ़ सत्तारूढ़ दल ही दे सकता है, पर यह साफ़ है कि सरकार की नीयत में खोट देखने वालों का शक बेबुनियाद नहीं है।