जिस तरह 'एक बच्चे की नीति' को त्यागकर चीन अब जनसंख्या बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहा है क्या वही समस्या भारत के गले पड़ने वाली है? कम से कम दो शोध इसी ओर इशारा करते हैं। प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल लांसेट के अनुसार, 2020 में भारत की जनसंख्या क़रीब 1.38 अरब थी जो 2040-48 के बीच तक बढ़कर 1.5-1.6 अरब के आसपास पहुंच जाएगी। लेकिन 2100 में इसके कम होकर क़रीब एक अरब के आसपास पहुँच जाने का अनुमान है। एक और शोध में अनुमान लगाया गया है कि यह जनसंख्या कम होकर 72 करोड़ ही रह जाएगी जो कि भारत की मौजूदा जनसंख्या की क़रीब आधी है। तो सवाल है कि क्या यह महज एक परिकल्पना है या इसमें कुछ सचाई भी है?
इसे समझने के लिए टीएफ़आर को समझना होगा। टीएफ़आर यानी कुल प्रजनन क्षमता दर। भारत में 1950 में जो टीएफ़आर 5.9 था वह अब घटकर 2.0 हो गया है। अब आगे के वर्षों में इसमें और भी गिरावट का अनुमान लगाया गया है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस-5 दिखाता है कि भारत का टीएफ़आर पिछली बार के 2.2 से घटकर 2.0 हो गया है। प्रजनन क्षमता से मतलब है कि देश में एक महिला अपने जीवन काल में औसत रूप से कितने बच्चे पैदा करती है। किसी देश में सामान्य तौर पर टीएफ़आर 2.1 रहे तो उस देश की आबादी स्थिर रहती है। इसका मतलब है कि इससे आबादी न तो बढ़ती है और न ही घटती है। लेकिन टीएफ़आर इससे कम होने का मतलब है कि जनसंख्या घटने लगेगी।
तो सवाल है कि जब जनसंख्या घटने लगी है तो फिर देश में कई राज्य सरकारें जनसंख्या नियंत्रण की बात क्यों कह रही हैं?
पिछले महीने यानी दिसंबर में राज्यसभा में बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने चीन की 'एक-बच्चा नीति' की तर्ज पर 'जनसंख्या नियंत्रण क़ानून लाने पर जोर दिया था। उन्होंने दावा किया कि इससे खाद्य महंगाई से निपटा जा सकेगा और महिलाओं के लिए बराबरी का मौक़ा बढ़ेगा। बीजेपी के नेता सीटी रवि ने पिछले साल जुलाई में कहा था कि असम और उत्तर प्रदेश की तर्ज पर कर्नाटक में जनसंख्या नियंत्रण क़ानून लाया जाना चाहिए। तब यूपी में जनसंख्या नियंत्रण क़ानून का मसौदा तैयार किया गया था।
यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने नयी जनसंख्या नीति की घोषणा की थी। इस नीति में दो या इससे कम बच्चे रखने वालों को प्रोत्साहन तो दिया ही जाएगा, इसके साथ ही 2026 तक जनसंख्या वृद्धि दर को कम कर 2.1 और 2030 तक इसे 1.9 पर लाने का लक्ष्य रखा गया है।
उत्तर प्रदेश में फ़िलहाल कुल प्रजनन क्षमता यानी टीएफ़आर 2.7 है। बीजेपी शासित असम में भी ऐसे ही जनसंख्या नियंत्रण की बात की जा रही है। कर्नाटक में भी ऐसी मांग बीजेपी नेता उठा ही रहे हैं। आरोप लगाया जाता है कि बीजेपी ध्रुवीकरण के मक़सद से ऐसा कर रही है। वैसे, क़रीब दो साल पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 15 अगस्त 2019 को स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर लाल किले की प्राचीर से भाषण देते हुए जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताई थी। उन्होंने सीधे इसे देशभक्ति से जोड़ दिया था और कहा था कि छोटा परिवार रखना भी देशभक्ति है।
हमारे यहां जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये आने वाली पीढ़ी के लिए संकट पैदा करता है।
— BJP (@BJP4India) August 15, 2019
लेकिन ये भी मानना होगा कि देश में एक जागरूक वर्ग भी है जो इस बात को अच्छे से समझता है।
ये लोग अभिनंदन के पात्र हैं। ये लोग एक तरह से देश भक्ति का ही प्रदर्शन करते हैं: पीएम #स्वतंत्रतादिवस pic.twitter.com/MLX0KR8Sr9
लेकिन क्या सच में अब भारत में जनसंख्या विस्फोट की समस्या है? जानकार तो अब जनसंख्या कम होने के प्रति आगाह कर रहे हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक लेख में रोहित सरण ने लिखा है जल्द ही ऐसा वक़्त आएगा जब बुजुर्गों की आबादी ज़्यादा हो जाएगी और काम करने वाली आबादी कम हो जाएगी। ऐसी ही समस्या फ़िलहाल चीन के सामने आई है। यह समस्या इसलिए आई क्योंकि चीन ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक बच्चे की नीति अपनाई थी।
नीति में यह बदलाव इसलिए किया गया है क्योंकि चीन में वहाँ की बड़ी आबादी अब बुजुर्ग हो गई है।
क़रीब 40 साल पहले जब चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने फ़रमान जारी किया था कि सिर्फ़ एक बच्चा पैदा करने की अनुमति होगी तो इसके दुष्प्रभाव का अंदाज़ा नहीं था। अब वहाँ बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और इस बुज़ुर्ग पीढ़ी को सहारा देने के लिए नौजवान आबादी की कमी हो रही है। काम करने वाले लोगों की संख्या कम होने लगी है।
जब स्थिति ख़राब होने लगी तो 2015 में वन चाइल्ड पॉलिसी को ख़त्म करने का फ़ैसला लिया गया और 2016 में उस क़ानून को ख़त्म कर दिया गया। चीनी अधिकारी क़रीब चार साल से कोशिश कर रहे हैं कि एक बच्चा की नीति के विनाशकारी असंतुलन को ख़त्म किया जाए और अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
इसके लिए उन्होंने दंपतियों से कहा था कि दो बच्चों को पालना उनकी देशभक्ति का कर्तव्य है। उन्होंने टैक्स ब्रेक और हाउसिंग सब्सिडी दी। उन्होंने शिक्षा को सस्ता किया और पैतृक अवकाश लंबा करने की पेशकश की। उन्होंने गर्भपात या तलाक़ लेने को और अधिक कठिन बनाने की कोशिश की। लेकिन यह उतना कारगर नहीं रहा।
तो भारत के बारे में ताज़ा शोध क्या चीन की तरह हालात पैदा होने के संकेत दे रहे हैं? क्या ऐसे में भारत को सचेत हो जाना चाहिए? क्या ऐसे हालात में भी जनसंख्या नियंत्रण क़ानून लाया जाना चाहिए?
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