पहले आँध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने ज़्यादा बच्चे पैदा करने की बात कही तो अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा है कि जब लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में कमी आ रही है तो कम बच्चे पैदा करने तक सीमित क्यों रहें?
आज़ादी के बाद से 2011 के बीच जनसंख्या पर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएम-ईएसी) के एक नए विश्लेषण के बाद विवाद क्यों हो रहा है? जानिए, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने आगाह क्यों किया।
भारत में अब जनसंख्या विस्फोट की समस्या नहीं है, बल्कि इसके उलट जनसंख्या कम होने का ख़तरा पैदा होने लगा है। जानिए लांसेट के शोध में क्यों कहा गया कि भारत की आबादी कम हो जाएगी।
मोहन भागवत ने 20 अगस्त 2016 को आगरा में आरएसएस से जुड़े शिक्षकों के सम्मेलन में कहा था कि हिंदुओं को अपनी आबादी बढ़ाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे पैदा करना चाहिए। बीजेपी और संघ का क्या रहा है रुख?
देश के ज़्यादातर पढ़े-लिखे, शहरी और ऊँची जातियों के लोग स्वेच्छया ‘हम दो और हमारे दो’ की नीति पर चल रहे हैं लेकिन ग़रीब, ग्रामीण, अशिक्षित, मज़दूर आदि वर्गों के लोगों में अभी भी यह आत्म-चेतना जागृत नहीं हुई है।
भारत की जनसंख्या को लेकर एक ऐसा आँकड़ा आया है जिससे सवाल उठता है कि कहीं भारत में भी चीन की तरह ही युवाओं की अपेक्षा बुजुर्गों की आबादी ज़्यादा तो नहीं हो जाएगी?
अगर मौजूदा कामकाजी आबादी का सही उपयोग न हुआ तो देश जनसांख्यिकीय लाभांश गँवा देगा। क्योंकि देश के शहरी इलाक़े और कई राज्य चीन की तरह ही बूढ़े होने की ओर बढ़ रहे हैं।
जिस विशाल जनसंख्या को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल तक डेमोग्राफ़िक डिविडेंड बता रहे थे, अब उसे वे डेमोग्राफ़िक डिजास्टर बता रहे हैं। ऐसा क्यों? क्या कुछ महीने या साल में स्थिति इतनी बदल गई?