पिछले साल बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने संसद में एक विधेयक पेश किया और माँग की कि दो बच्चों का क़ानून बनाया जाए यानी दो से ज़्यादा बच्चे पैदा करने को हतोत्साहित किया जाए। इस मुद्दे पर अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भी लगा दी। उस पर सरकार ने साफ़-साफ़ कह दिया है कि वह परिवारों पर दो बच्चों का प्रतिबंध नहीं लगाना चाहती है, क्योंकि ऐसा करना लोगों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करना होगा और यों भी लोग स्वेच्छा से जनसंख्या-नियंत्रण कर ही रहे हैं।
अब से 20 साल पहले देश में जनसंख्या की बढ़त प्रति परिवार 3.2 थी जबकि अब वह घटकर 2.2 रह गई है। अब पति-पत्नी स्वयं सजग हो गए हैं। अब 36 में से 25 राज्यों में जनसंख्या-वृद्धि की दर 2.1 हो गई है।
सरकार का यह तर्क तो ठीक है लेकिन भारत की जनसंख्या लगभग 150 करोड़ को छू रही है। शायद हम चीन को भी पीछे छोड़नेवाले हैं। हम दुनिया के सबसे बड़ी जनसंख्यावाले देश बननेवाले हैं।
सरकार का लक्ष्य है- प्रति परिवार 1.8 बच्चों का! यदि डेढ़ अरब लोगों के इस देश में सब लोगों को भरपेट खाना मिले, उनके कपड़े-लत्ते और रहने का इंतज़ाम हो तो कोई बात नहीं। उन्हें शिक्षा और चिकित्सा भी थोड़ी-बहुत मिलती रहे तो भी कोई बात नहीं लेकिन असलियत क्या है?
देश में ग़रीबी, अशिक्षा, बीमारी, बेरोज़गारी और भुखमरी भी बढ़ती ही जा रही है। उससे निपटने की भरपूर कोशिश हमारी सरकारें कर रही हैं लेकिन यदि आबादी की बढ़त रुक जाए तो ये कोशिशें ज़रूर सफल हो सकती हैं।
यह ठीक है कि रुस, जापान, रोमानिया जैसे कुछ देश आबादी की बढ़त पर रोक लगाकर अब परेशान हैं। उनकी आबादी काफ़ी तेज़ी से घट रही है। यदि भारत में भी 10-15 साल बाद ऐसा ही होगा तो उस क़ानून को हम वापस क्यों नहीं ले लेंगे?
अपनी राय बतायें