तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या सिर्फ़ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया के और भी कई देशों के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। क्योंकि जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, उसके लिए जीवन की बुनियादी सुविधाएँ और संसाधन जुटाना सरकारों के लिए चुनौती साबित हो रहा है। इसीलिए जब स्वाधीनता दिवस पर लाल क़िले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताई तो उसका आमतौर पर स्वागत ही हुआ। उन्होंने कहा कि हमारे देश में जो बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, वह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए कई तरह के संकट पैदा करेगा। यह संभवत: पहला मौक़ा रहा जब लंबे समय बाद किसी प्रधानमंत्री ने लाल क़िले से अपने भाषण में बढ़ती जनसंख्या की समस्या पर चिंता जताई हो। लेकिन सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी इस चिंता को लेकर क्या वाक़ई गंभीर हैं?

जिस विशाल जनसंख्या को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल तक डेमोग्राफ़िक डिविडेंड बता रहे थे, अब उसे वे डेमोग्राफ़िक डिजास्टर बता रहे हैं। ऐसा क्यों? क्या कुछ महीने या साल में स्थिति इतनी बदल गई?
यह सवाल इसलिए उठता है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल में एक बार भी कभी बढ़ती जनसंख्या से जुड़ी चुनौतियों या चिंताओं का ज़िक्र नहीं किया। बल्कि इसके ठीक उलट उन्होंने देश में और देश के बाहर भी कई बार डेमोग्राफ़िक डिविडेंड यानी देश की विशाल युवा आबादी के फ़ायदे गिनाए। सवाल यही है कि आख़िर अब अचानक ऐसा क्या हो गया कि बढ़ती जनसंख्या राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गई?