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जस्टिस वर्मा के घर से नकदी मिली- SC, फुटेज में जले रुपयों के ढेर दिखे

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी बरामदगी की घटना की जांच रिपोर्ट शनिवार देर रात जारी कर दी। इस रिपोर्ट के साथ-साथ दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की चिट्ठी और जस्टिस वर्मा का जवाब भी सामने आया है। इसमें आग बुझाने के बाद जली हुई नकदी के ढेर की तस्वीरें भी शामिल हैं। इस घटना ने पारदर्शिता और नैतिकता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

दिल्ली पुलिस आयुक्त की रिपोर्ट का हवाला देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से इस मामले में विस्तृत जाँच शुरू करने का आग्रह किया है। 25 पन्नों की जाँच रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है और इसे उनकी छवि खराब करने की साज़िश क़रार दिया है। उन्होंने दावा किया कि जिस कमरे में नकदी मिली, वहां उनके कर्मचारियों सहित सभी की पहुंच थी। सुप्रीम कोर्ट ने जो वीडियो फुटेज सार्वजनिक किया है उसे एक्स पर लोग साझा कर रहे हैं।

दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, 'पुलिस आयुक्त की 16 मार्च 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा के आवास पर तैनात गार्ड ने बताया कि 15 मार्च 2025 की सुबह आग लगने वाले कमरे से मलबा और आंशिक रूप से जले हुए सामान को हटाया गया था। मेरी प्रारंभिक जांच में यह संभावना नहीं दिखती कि उस कमरे में बंगले में रहने वालों, नौकरों, माली और सीपीडब्ल्यूडी कर्मियों के अलावा किसी और की पहुंच थी। ...इसलिए, मेरा प्रारंभिक मत है कि इस पूरे मामले की गहन जांच जरूरी है।'

जस्टिस वर्मा ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि वह वीडियो के कंटेंट को देखकर पूरी तरह से स्तब्ध थे। उन्होंने इसे 'उन्हें फंसाने और बदनाम करने की साज़िश' करार दिया। उनका कहना है कि नकदी को उनके घर के स्टोररूम में न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य ने रखा था। उन्होंने इस आरोप को भी सख्ती से नकारा कि यह कथित नकदी उनकी थी। जस्टिस वर्मा ने कहा, 'मैंने उस जगह को जिस रूप में देखा था, वहां ऐसा कुछ नहीं था जैसा वीडियो में दिखाया गया। यही कारण था कि मुझे यह साफ़ तौर पर एक साज़िश लगी।'

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इस बीच, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने शनिवार को जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की इन-हाउस जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। यह कदम दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट के बाद उठाया गया। समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल हैं।
यह कथित नकदी बरामदगी की घटना तब सामने आई जब होली की रात यानी 14 मार्च को लगभग 11:35 बजे जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास पर आग लग गई।

आग की सूचना मिलते ही दमकल विभाग के कर्मचारी मौके पर पहुंचे और आग पर काबू पाया। इसके बाद जले हुए नोटों के ढेर की तस्वीरें सामने आईं, जिसने इस मामले को और रहस्यमयी बना दिया।

इन घटनाक्रमों के बाद शुक्रवार को जस्टिस वर्मा का तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिए किया गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बाद में साफ़ किया कि उनका तबादला नकदी बरामदगी से जुड़ा नहीं है। फिर भी, इस समय पर यह तबादला सवालों के घेरे में आ गया है।

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यह घटना भारतीय न्यायिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करती है। एक तरफ़ जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ गंभीर आरोप हैं तो दूसरी तरफ़ उनका दावा है कि यह उनकी छवि को धूमिल करने की साज़िश है। जांच समिति के गठन से इस मामले में पारदर्शिता की उम्मीद की जा रही है, लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या यह जांच निष्पक्ष और समयबद्ध होगी। साथ ही, यह घटना न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और जवाबदेही के मुद्दे को फिर से उजागर करती है।

अगर जस्टिस वर्मा के दावे सही हैं, तो यह एक सुनियोजित साज़िश हो सकती है। लेकिन अगर जांच में नकदी का संबंध उनसे पाया जाता है, तो यह न्यायिक व्यवस्था की साख पर बड़ा धब्बा होगा।

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क़मर वहीद नक़वी
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