किसान आंदोलन पर अमेरिकी प्रतिक्रिया के एक दिन बाद अब भारत ने उस पर जवाब दिया तो ऐसा नपा-तुला कि अमेरिका शायद बुरा नहीं ही मानेगा। इसने लाल क़िला और अमेरिकी संसद कैपिटल हिल हिंसा की तुलना की और कहा कि 'इनसे हमारे अपने-अपने देशों में स्थानीय क़ानूनों के अनुसार निपटा जा रहा है'। भारत का इशारा साफ़ था कि अमेरिका कैपिटल बिल्डिंग हिंसा में अपने नियम क़ायदों से निपट रहा है तो भारत लाल क़िला हिंसा में अपने तरीक़े से।
इससे पहले किसान आंदोलन पर पॉप सिंगर रियाना (रिहाना) और ग्रेटा तनबर्ग (थनबर्ग) के ट्वीट और इस आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिले समर्थन के बाद सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। उस प्रतिक्रिया को ज़रूरत से ज़्यादा माना गया यह कहकर कि व्यक्तिगत प्रतिक्रियाओं पर सरकार की ओर से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। सभी मंत्री बचाव में आ गए। माना जाता है कि इसके बाद भारत की हस्तियों की ओर से भी सरकार के समर्थन में ट्वीट किया गया।
अब भारत के विदेश मंत्रालय की यह ताज़ा प्रतिक्रिया इसलिए आई है क्योंकि भारत में किसान आंदोलन पर अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन लोकतंत्र की पहचान है। इसने इंटरनेट बंद किए जाने पर भी चिंता जताई थी और कहा था कि बिना रुकावट के इंटरनेट की पहुँच होनी चाहिए।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था, 'हम मानते हैं कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किसी भी संपन्न लोकतंत्र की पहचान है और भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी यही कहा है। अमेरिका प्रोत्साहित करता है कि बातचीत के माध्यम से पार्टियों के बीच किसी भी मतभेद को हल किया जाए।'
हालाँकि, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कृषि क़ानूनों के सुधार का स्वागत भी किया। उन्होंने कहा था, 'सामान्य तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका ऐसे क़दमों का स्वागत करता है जो भारत के बाज़ारों की दक्षता में सुधार करेंगे और निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करेंगे।' उन्होंने संकेत दिया कि बाइडन प्रशासन कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए भारत सरकार के क़दम का समर्थन करता है। किसानों के लिए निजी निवेश और बाज़ार के अधिक पहुँच को आकर्षित करता है।
भारत के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका द्वारा कृषि क़ानूनों का समर्थन और इसकी तारीफ़ किये जाने को हाथों हाथ लिया है।
दिल्ली सीमा के पास किसानों के प्रदर्शन स्थलों पर इंटरनेट पर प्रतिबंधों पर अमेरिकी प्रशासन ने कहा कि यह मानता है कि 'इंटरनेट सहित सभी जानकारी तक बिना रुकावट की पहुँच अभिव्यक्ति की आज़ादी और एक संपन्न लोकतंत्र की पहचान है।' जो बाइडन प्रशासन से पहले ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में भी जम्मू कश्मीर में इंटरनेट पर पाबंदी लगाए जाने का मुद्दा उठाया गया था।
अमेरिका की इन्हीं प्रतिक्रियाओं पर भारत की ओर से लाल क़िला हिंसा और अमेरिकी संसद कैपिटल हिंसा का ज़िक्र किया गया है। भारत के विदेश मंत्रालय अनुराग श्रीवास्तव की ओर से कहा गया, 'भारत और अमेरिका में साझा मूल्य हैं और वहाँ जीवंत लोकतंत्र हैं। 26 जनवरी को ऐतिहासिक लाल क़िले पर हिंसा और बर्बरता की घटनाओं पर बिल्कुल वैसी ही भावनाएँ और प्रतिक्रियाएँ आईं जैसी 6 जनवरी को कैपिटल हिल पर घटनाओं के बाद आई थीं। इनसे हमारे अपने-अपने स्थानीय क़ानूनों के अनुसार निपटा जा रहा है।'
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि एनसीआर क्षेत्र के कुछ हिस्सों में इंटरनेट पर पाबंदी के संबंध में अस्थायी उपाय इस समझदारी से किए गए ताकि आगे की हिंसा को रोका जा सके।
खालिस्तानी समूह की जाँच में सहयोग मांगा
भारत ने एक खालिस्तानी समूह सिख फॉर जस्टिस और उनके अलगाववादी अभियान रेफरेंडम 2020 की जाँच में अमेरिकी मदद की माँग की है। 'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार, विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह अनुरोध अमेरिकी न्याय विभाग को भेजा गया है। इसने यह बात तब कही है जब किसानों के विरोध प्रदर्शन का कथित तौर पर खालिस्तान से लिंक बताया जा रहा है और इसकी जाँच की जा रही है। सरकार ने कोर्ट में भी खालिस्तान मामले की जाँच किए जाने की बात कही है। दिल्ली पुलिस ने भी गणतंत्र दिवस ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा के पीछे 'विदेशी' साज़िश का हवाला देते हुए मामला दर्ज किया है।
बता दें कि बीजेपी की मोदी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि सरकार इस शांतिपूर्ण आंदोलन को जारी नहीं रहने देना चाहती है और इसलिए वह सड़क पर कई स्तर के बैरिकेड लगा रही है, दीवारें खड़ी कर रही है, कंटीले तार और कीलें लगा कर घेरेबंदी कर रही है। वह इंटरनेट पर पाबंदी लगा रही है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ युद्ध की तैयारी करती हुई दिख रही है।
किसान प्रदर्शन से जुड़े एक हैशटैग चलाने वाले ट्विटर खातों व ट्वीट पर सरकार ने कार्रवाई करने का आदेश निकाला है। विरोध प्रदर्शन को कवर करने वाले पत्रकार मनदीप पूनिया को गिरफ़्तार किया गया था जिन्हें अब कोर्ट से ज़मानत मिल चुकी है।
इन्हीं घटनाक्रमों को लेकर मंगलवार को अमेरिकी पॉप सिंगर रियाना ने ट्वीट कर पूछा था कि "हम इस पर चर्चा क्यों नहीं कर रहे हैं?" उन्होंने उसके साथ भारत में चल रहे किसान आन्दोलन पर सीएनएन में छपी ख़बर को शेयर किया था। इसके बाद कई लोगों ने उनका समर्थन किया था।
पर्यावरणविद ग्रेटा थनबर्ग ने ट्वीट कर किसान आंदोलन का समर्थन किया है।
अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस ने पिछले महीने अमेरिकी संसद में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के समर्थकों के जबरन घुस जाने और तोड़फोड़ करने की वारदात को भारत में किसान आन्दोलन से जोड़ा। उन्होंने कहा, "यह महज संयोग नहीं है कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में एक महीने पहले हमला हुआ था और हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकंतत्र पर हमला देख रहे हैं। हमें किसान आन्दोलन पर हो रहे अर्द्धसैनिक हिंसा और इंटरनेट बंद किए जाने पर गुस्सा होना चाहिए।"
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