सैन्य ही नहीं, राजनीतिक स्तर पर भी कई दौर की बातचीत के बाद भारत-चीन संबंधों में जो थोड़ा बहुत सुधार हुआ था और दोनों देश पिछले साल की कड़वाहट को भूलने की कोशिश कर रहे थे, उसे धक्का पहुँचा है।
चीन की ओर से लगातार भड़काऊ कार्रवाइयों और बयानों के बाद भारत ने चीन को दो टूक जवाब दिया है। ऐसे लगता है कि दोनों देशों के बीच की गर्माहट ख़त्म हो रही है और एक बार फिर इनके बीच तनाव बढ़ सकता है।
इसे इससे समझा जा सकता है कि भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कड़े शब्दों नें बीजिंग को फटकार लगाते हुए कहा है कि चीनी सेना ने भारत-चीन सीमा पर स्थिति को बदलने के लिए एकतरफा और उकसावे वाली कार्रवाइयाँ की है, जिससे तनाव बढ़ने की आशंका है।
एलएसी पर जमावड़ा
उन्होंने कहा कि चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर सैनिकों और साजो-सामान का बहुत बड़ा जखीरा इकट्ठा कर रखा है, मजबूरन भारत को भी ऐसा करना पड़ा है।
भारत का यह जवाब चीन के उस बयान पर था, जिसमें कहा गया था कि भारत-चीन सीमा पर तनाव की मूल वजह दिल्ली की 'फॉरवर्ड लाइन' है, जिसके तहत उसने चीनी इलाक़े पर 'ग़ैरक़ानूनी क़ब्ज़ा' कर रखा है।
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चीन का दावा खारिज
विदेश मंत्रालय ने चीन के दावे को खारिज करते हुए उम्मीद जताई है कि बीजिंग जल्द ही सीमा विवाद को निपटाने के लिए ठोस कदम उठाएगा और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बाकी मुद्दों का निपटारा करने के लिए पहले से तय सिद्धान्तों का पालन करेगा।
अमेरिका का चिंता
बीजिंग के आक्रामक रवैए को इससे समझा जा सकता है कि अेमरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने गुरुवार को बीजिंग की इसी मुद्दे पर आलोचना की। उन्होंने कहा,
“
हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन जो कुछ कर रहा है, वह जिस तरह की आक्रामकता कई देशों के साथ दिखा रहा है, उस पर हमने अपने सहयोगियों के साथ कई बार बातचीत की है।
जॉन किर्बी, प्रेस सचिव, पेंटागन
क्वैड
याद दिला दें कि पिछले हफ़्ते ही अमेरिका में चार देशों जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका के राष्ट्र प्रमुखों की शिखर बैठक हुई। इन चार देशों का समूह क्वैडिलैटरल स्ट्रैटजिक डायलॉग यानी क्वैड कहा जाता है।
मोटे तौर पर यह समझा जाता है कि क्वैड का गठन चीन को उसके ही इलाक़े दक्षिण चीन सागर में रोकने की है और अमेरिका व जापान इस मामले में भारत और ऑस्ट्रेलिया का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कूटनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन क्वैड से चिढ़ कर ही भारत को परेशान कर रहा है और उस रणनीति के तहत ही सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसे उलझाए रखना चाहता है।
चीन की आक्रमकता
भारत की चिंता और चीन की आक्रमकता को इससे समझा जा सकता है कि चीन ने उत्तराखंड राज्य में पिछले हफ़्ते ही घुसपैठ की।
पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी चीनी सेना के सैनिक सीमा पार कर उत्तराखंड में घुस आए और कई जगह सड़कों व पुलों को ढहा दिया। भारतीय सेना के अधिकारियों का कहना है कि पीछे लौटने से पहले चीनी सैनिकों ने एक पुल को भी तोड़ दिया।
'इकनॉमिक टाइम्स' के अनुसार, इसके पहले तुन जुन ला दर्रा पार कर 55 घोड़े और 100 से ज्यादा सैनिक भारतीय क्षेत्र में 5 किमी से ज्यादा अंदर आ गए थे।
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चीन की तैयारी
बात सिर्फ घुसपैठ तक सीमित नहीं है। पीपल्स लिबरेशन आर्मी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थायी रूप से बसने की तैयारी कर रही है।
चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपने इलाके में सैनिकों के रहने के लिए अस्थायी घर बनाए हैं। ये घर कंटेनरों में बनाए गए हैं, जिन्हें आसानी से और बहुत ही कम समय में जोड़ कर तैयार किया गया है।
लेकिन आपातकालीन स्थिति में इन्हें सामान्य सैनिक क्वार्टर की तरह काम में लाया जा सकता है।
चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी के उस पार कराकोरम दर्रा में वहाब ज़िल्गा से लेकर उत्तर में हॉट स्प्रिंग्स, पिऊ, चांग ला, ताशीगांग, मान्ज़ा और चुरुप तक ये कंटेनर लगा रखे हैं।
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चीनी सेना के अख़बार 'पीएलए डेली' ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि पाँच हज़ार मीटर यानी लगभग 16,400 फीट की ऊँचाई पर ये नाइट ड्रिल किए गए हैं।
इसने यांग यांग नामक कंपनी कमांडर के हवाले से कहा है कि पीएलए ने वहां तैनात अपने सैनिकों से कहा है कि वे अधिक ऊँचाई पर टिके रहने लायक खुद को बनाएं, वैसा खुद को ढालें, फिट रहें और रात में युद्ध करने का अभ्यास डालें।
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