स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) की सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वार्षिक सैन्य खर्च के मामले में अमेरिका दुनिया में पहले नंबर पर है। उसके बाद चीन दूसरे, रूस तीसरे और भारत चौथे स्थान पर है।
समाचार वेबसाइट द प्रिंट में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन ने 2023 में अपने सैन्य खर्च को अनुमानित रूप से 296 बिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया है, जिससे यह अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला देश बन गया। बीजिंग ने 2022 के मुकाबले अपना सैन्य खर्च 6 प्रतिशत बढ़ा दिया है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) की सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने बीते वर्ष 916 अरब डॉलर सैन्य खर्च किए, जो इस क्षेत्र में कुल वैश्विक खर्च का 37 प्रतिशत है। एक ओर यूक्रेन और दूसरी ओर इजराइल को सीधे समर्थन देने के कारण अमेरिकी सैन्य खर्च में वृद्धि देखी गई है।
अमेरिका और उसके बाद चीन का सैन्य खर्च कितना अधिक है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि पिछले वर्ष कुल वैश्विक सैन्य खर्च का करीब आधा हिस्सा अमेरिका और चीन ने मिलकर खर्च किया है।
सैन्य खर्च करने वाले शीर्ण पांच देशों में रूस, भारत और सऊदी अरब शामिल हैं। जिनका दुनिया के सैन्य खर्च में 61 प्रतिशत हिस्सा था। सूची में चौथे स्थान पर, भारत का सैन्य खर्च 2023 में 83.6 बिलियन डॉलर था, जो वैश्विक रक्षा खर्च का 3.7 प्रतिशत था।
रिपोर्ट कहती है कि चीन द्वारा सैन्य खर्च में की जा रही बढ़ोतरी भविष्य में होने वाले युद्धों या संघर्षों, यदि कोई हो, के लिए उसकी तैयारियों की तरफ इशारा करती है। बीजिंग का दक्षिण चीन सागर में अपने पड़ोसियों सहित भारत के साथ क्षेत्रीय विवाद है।
रूस का सैन्य खर्च 24 प्रतिशत बढ़कर अनुमानित 109 बिलियन डॉलर हो गया। इसका कारण है कि वह यूक्रेन के साथ 2022 में शुरू हुए युद्ध में अब भी बना हुआ है।
द प्रिंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल मिलाकर, विश्व सैन्य व्यय 2023 में लगातार नौवें वर्ष बढ़कर कुल 2,443 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। इसमें 6.8 प्रतिशत की हुई वृद्धि 2009 के बाद से साल-दर-साल सबसे तेज वृद्धि थी। एसआईपीआरआई के अनुसार, इसने वैश्विक सैन्य खर्च को उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया है।
वैश्विक सैन्य खर्च में वृद्धि का प्रमुख कारण दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चल रहे भू-राजनैतिक तनाव, यूक्रेन युद्ध आदि शामिल हैं।
वहीं भारत का सैन्य खर्च 2022 से 4.2 प्रतिशत और 2014 से 44 प्रतिशत तक बढ़ गया था। रिपोर्ट के अनुसार, यह वृद्धि मुख्य रूप से सैन्य कर्मियों के वेतन, पेंशन और संचालन लागत का परिणाम थी।
इसमें कहा गया है कि भारत के रक्षा बजट में यह बढ़ोतरी चीन और पाकिस्तान के साथ चल रहे तनाव के बीच सशस्त्र बलों की परिचालन तत्परता को मजबूत करने की सरकार की प्राथमिकता के अनुरूप है।
इसकी तुलना में, सैन्य खरीद के लिए पूंजी परिव्यय अपेक्षाकृत स्थिर रहा है। 2023 में बजट का लगभग 22 प्रतिशत, यह रहा है। पूंजीगत परिव्यय वह धनराशि है जिसका उपयोग भौतिक संपत्तियों को प्राप्त करने या उन्नत करने के लिए किया जाता है।
एसआईपीआरआई के अनुसार, इन परिव्ययों का कुल 75 प्रतिशत घरेलू स्तर पर उत्पादित उपकरणों पर खर्च किया गया, जो कि अब तक का उच्चतम स्तर था और पिछले वर्ष के 68 प्रतिशत से अधिक था। यह सरकार द्वारा स्वदेशीकरण पर जोर देने के बीच आया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, घरेलू खरीद की ओर निरंतर बदलाव हथियारों के विकास और उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के भारत के लक्ष्य को दर्शाता है।
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