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हिजाबः हाईकोर्ट ने कर्नाटक सरकार के आदेश को इन तर्कों से सही ठहराया

हिजाब पर कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वो होली की छुट्टियों के बाद इस मामले की सुनवाई कर सकता है। कर्नाटक हाईकोर्ट के  फैसले पर देशभर में बहस शुरू हो गई है। इस फैसले को समझने की बहुत जरूरत है कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में किन तथ्यों को आधार बनाकर मुस्लिम लड़कियों की याचिका खारिज की और सरकार के स्टैंड को सही ठहराया। अगर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई मंजूर की तो वो किन तथ्यों पर गौर करेगा।

चुनौती की वजहें

कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को इन खास वजहों से चुनौती मिल रही है - 1.हिजाब पर बहस को व्यक्तिगत पसंद की बजाय धार्मिक आजादी से जोड़ना।

2. कॉलेजों में हिजाब पहनने से रोकने वाले कर्नाटक सरकार के आदेश में कमियां (जिसे खुद अटॉर्नी जनरल ने सुनवाई के दौरान स्वीकार किया था)।3. अंतरात्मा की आजादी को धार्मिक आजादी से अलग करना।
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हाईकोर्ट के फैसले के तीन आधार

1. संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत क्या हिजाब इस्लाम में अनिवार्य धार्मिक प्रथा है।2. क्या सरकार का स्कूल यूनिफॉर्म का निर्देश किसी के अधिकारों का उल्लंघन है। 3. क्या कर्नाटक सरकार का 5 फरवरी का आदेश अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है। और वो आदेश मनमाना और अस्पष्ट है।129 पेज के फैसले में अदालत ने जरूरी धार्मिक प्रेक्टिस को हिजाब पर बहस के केंद्र में रखा। कोर्ट ने भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी और समानता के अधिकार पर बहस को दरकिनार किया। उसने एक तरह से धार्मिक आजादी के मुकाबले इन्हें कम अधिकार माना।
असल में हाईकोर्ट की बेंच ने याचिकाकर्ताओं की अभिव्यक्ति, खाने, पहनने-ओढ़ने की आजादी की व्याख्या करने के मुकाबले सरकार के मामले को मजबूत करने वाले प्रतिबंधों को महत्व दिया है।
अदालत ने कहा - जिन याचिकाओं पर हमने विचार किया है, उनमें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या गोपनीयता का अधिकार शामिल नहीं है। स्कूल ड्रेस कोड को भी एक तरह का प्रतिबंध बताया गया, उस पर भी विचार किया है। तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ताओं की शिकायत मूल अधिकारों की बजाय जरूरी अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ है। अदालत ने इस तर्क का इस्तेमाल यह दावा करने के लिए किया कि मूल अधिकारों के लिए उपलब्ध सुरक्षा को इस तरह के अधिकारों को कवर करने के लिए भी बहुत आगे तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।इतना ही नहीं। अदालत ने स्कूलों के छात्रों की तुलना जेल में बंदियों की स्थिति से करते हुए कहा कि कैदी पब्लिक स्पेस में अपने व्यक्तिगत मौलिक अधिकारों का दावा नहीं कर सकते। अदालत ने कहा- 

यह शायद ही कहने की जरूरत है कि स्कूल एक योग्य सार्वजनिक स्थान (पब्लिक स्पेस) है जो मुख्य रूप से छात्रों को शैक्षिक निर्देश देने के लिए बने हैं ... ऐसे 'पब्लिक स्पेस' व्यक्तिगत अधिकारों के दावे को पीछे छोड़ते हैं।


-कर्नाटक हाईकोर्ट, अपने फैसले में

कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 के तहत जारी 5 फरवरी के आदेश में तमाम खामियां गिनाते हुए याचिकाकर्ताओं ने मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भेदभाव पर कई अन्य तर्क दिए। जिसमें हिजाब पर बैन के लिए देश की सार्वजनिक व्यवस्था, एकता और अखंडता तक का हवाला दिया गया था। कोर्ट ने ड्रेस कोड को साम्प्रदायिक मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ड्रेस कोड का तय किया जाना स्टूडेंट्स के अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार या उनकी स्वायत्तता का उल्लंघन नहीं करता है। इस तरह के मामलों में, अन्य बातों के साथ-साथ अनुच्छेद 14 और 15 के तहत मनमानी या भेदभाव की शिकायत की कोई गुंजाइश नहीं है। अदालत ने कहा- 

धर्म, भाषा, लिंग की परवाह किए बिना सभी स्टूडेंट्स के लिए ड्रेस कोड समान रूप से लागू होता है। इसमें मौलिक अधिकार कहां आता है।


-कर्नाटक हाईकोर्ट, अपने फैसले में

भेदभाव के तर्क को अदालत ने वर्दी के खिलाफ याचिकाकर्ता के दावे से सरकारी आदेश को अलग कर दिया। सबसे पहले, अदालत ने कहा कि एक वर्दी का निर्धारण अपने आप में भेदभावपूर्ण नहीं है। सरकारी आदेश ने किसी भी वर्दी को निर्धारित नहीं किया है।

सार्वजनिक व्यवस्था उन आधारों में से एक है जिस पर संविधान के तहत धर्म की स्वतंत्रता को कम किया जा सकता है। राज्य सरकार ने अपने आदेश में भाषा की गलती स्वीकार की थी। सरकार के मानने के बावजूद कोर्ट ने सरकारी आदेश की खामियों पर ध्यान नहीं दिया और एक तरह से राज्य सरकार को संदेह का लाभ मिला। हालांकि अदालत ने कहा कि सरकारी आदेश में सार्वजनिक आदेश शब्द का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए था। कोर्ट ने कहा- 

अंतरात्मा की आजादी पर, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हिजाब पहनने के लिए धार्मिक आजादी के अधिकार से अलग एक अधिकार मौजूद है। लेकिन सिर्फ उनके विवेक का हवाला देना पर्याप्त नहीं होगा और याचिकाकर्ताओं को अपने विवेक को साबित करने के लिए सबूत लाने होंगे।


- कर्नाटक हाइकोर्ट अपने फैसले में

बेंच ने कहा, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ताओं ने हिजाब पहनकर अपनी ओर से किसी विचार या आस्था को आगे बढ़ाया और प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति के रूप में अपना हेडस्कार्फ़ (हिजाब) चुना।

क्या कहा याचिकार्ता लड़कियों ने

हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद इस मामले को अदालत तक ले जाने वाली छात्राओं ने निराशाजनक बताया था। याचिका दायर करने वाली 5 छात्राओं ने कहा था - हाईकोर्ट के फैसले से हमें निराशा हुई है। हमें हमारे मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। हिजाब का मुद्दा, स्थानीय स्तर पर हल किया जाना चाहिए था, लेकिन अब वो राजनीतिक और सांप्रदायिक रंग ले चुका है। हिजाबी लड़कियों ने कहा- 

हम हिजाब चाहते हैं। हम हिजाब के बिना कॉलेज नहीं जाएंगे। महिलाओं के लिए स्कार्फ उनके धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा है और कुरान में इसका उल्लेख किया गया है।


-हाईकोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता हिजाबी लड़कियों की प्रतिक्रिया

हाईकोर्ट के आदेश की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, कुरान में उल्लेख है कि एक लड़की को अपने बाल और छाती को ढंकना चाहिए। आलिया के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली एक लड़की ने कहा, अगर कुरान में इसका जिक्र नहीं होता तो हम नहीं पहनते। अगर कुरान में इसका जिक्र नहीं होता तो हम संघर्ष नहीं करते।

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क़मर वहीद नक़वी
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