'एक देश-एक टैक्स' के दावे के बावजूद जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) की कई दरें थीं और 28 प्रतिशत की अधिकतम दर में अब तक विकलांगों की वीलचेयर भी थी। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' का नारा और सैनिटेरी नैपकिन पर भी टैक्स। आख़िरकार मामला अदालत पहुँचा तो सरकार ने उसे टैक्समुक्त किया। बहुमत के दम पर बिना तैयारी के उसी जीएसटी को लागू कर दिया गया जिसका विपक्ष में रहकर विरोध करते थे। कोई बातचीत नहीं, कोई सुनवाई नहीं। सिर्फ एकतरफ़ा मन की बात।
सरकार की इतनी ‘रहमदिली’ के बाद भी क्यों चुभ रहा है जीएसटी?
- अर्थतंत्र
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- 24 Dec, 2018
जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) को आम तौर पर छोटे कारोबारों के लिए नुक़सानदेह माना जाता है। इसके कुछ प्रावधान ऐसे हैं जिनसे छोटे कारोबारी को काम मिलना काफ़ी मुश्किल हो जाता है।

चुनाव के बाद आया समझ
सूरत में कई उद्योग बंद हो जाने, निर्यातकों को भारी परेशानी होने और टैक्स रिटर्न दाख़िल करना बेहद मुश्किल होने के बावजूद यह सब चलता रहा। सिस्टम चलता नहीं था, सरकार कहती थी रिटर्न फ़ाइल करना आसान है। गुजरात चुनाव के समय सरकार को समझ में आया कि जीएसटी वाक़ई मुश्किल है। तीन राज्यों में हार जाने के बाद समझ में आया कि रिटर्न फ़ाइल करना भी मुश्किल है। दर तो ज़्यादा है ही। अभी तक दलील दी जाती थी कि पहले इतना था, अब इतना है। लेकिन चुनाव हारने के बाद स्थिति बदली है।
इसलिए भी कि अब जीएसटी काउंसिल में रोडरोलर बहुमत नहीं है। तीन विरोधी दल के प्रतिनिधि एकसाथ बढ़ गए। इसलिए शनिवार को जीएसटी काउंसिल की बैठक होने से पहले मंगलवार को बता दिया गया कि बैठक में क्या करना है। बैठक के बाद लोकलुभावन घोषणा भी हो गई कि 99 प्रतिशत वस्तुओं पर अधिकतम टैक्स दर 18 प्रतिशत होगी। कुछ सामान पर टैक्स दर कम हुई लेकिन सीमेंट और वाहनों के पुर्जों पर से टैक्स कम नहीं किया जा सका।