समलैंगिक विवाह (सेक्स सेक्स मैरिज) मामले की सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच शुरू होगी। केंद्र की मोदी सरकार इसका विरोध कर चुकी है लेकिन इस बीच टाइम्स ऑफ इंडिया में एक सर्वे प्रकाशित हुआ जो कुछ और ही कहानी बता रहा है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित सर्वे में कहा गया है अगर समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिलती है तो इससे एलजीबीटी समुदाय के युवाओं में बेचैनी, डिप्रेशन और खुदकुशी की प्रवृत्ति रोकने में मदद मिलेगी। यानी अगर होमो सेक्सुअल, लेसबियन या ट्रांसजेंडर के अन्य समूहों को उनकी मनमर्जी से शादी की छूट मिल जाए तो उनका चैन-सुकून लौट आएगा।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सर्वे को इसी महीने की शुरुआत में कुछ मनोवैज्ञानिकों, रिसर्चरों और एकेडेमिक्स ने मिलकर किया था। यह समूह इस बात का पता लगाना चाहता था कि समलैंगिक विवाह का ऐसे युवाओं की सामाजिक सोच और दिमागी सेहत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
इस समूह की शुरुआत रिपोर्ट रविवार को जारी की गई थी। इसमें कहा गया था ज्यादातर समलैंगिक विवाह की कानूनी अनुमति का स्वागत करने को बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उन युवाओं का मानना है कि यह एलजीबीटीक्यू समूह के लिए पॉजिटिव होगा। उन्हें कानूनी अधिकार मिल जाएगा और इससे उनकी दिमागी सेहत में सुधार आएगा। अगर आसान भाषा में इसे कह सकते हैं कि ऐसे जोड़ों को सामाजिक मान्यता तभी मिलेगी, जब समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलेगी। क्योंकि तब उन्हें ताने देने वाले या रोकटोक करने वाले सामने नहीं होंगे।
इस सर्वें में इस बात को रेखांकित किया गया है कि समलैंगिक विवाह के मामले में एक स्पष्ट रिश्ता यह है कि उसके एक तरफ कानून और सरकारी नीति है तो दूसरी तरफ दिमागी, सामाजिक सरोकार, संवेदनशीलता और समाज है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक यह सर्वे ऑनलाइन किया गया था, जिसमें 5825 लोगों ने भाग लिया था। सभी सवाल अंग्रेजी में थे। यह सर्वे देश के 27 राज्यों में किया गया, जिसमें 18 साल से लेकर 60 साल के बुजुर्ग भी शामिल थे। इनमें से करीब 37 फीसदी ने खुद को एलजीबीटीक्यू समुदाय के रूप में खुद की पहचान कराई। शुरुआती रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 95 फीसदी लोगों ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा मिलने का वो स्वागत करेंगे। इससे इस समुदाय के लोगों को कानूनी सुरक्षा, कानूनी अधिकार और दिमागी रूप से सेहमतमंद होने का रास्ता खुलेगा।
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टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक सर्वे में सिर्फ 3 फीसदी लोगों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने का विरोध किया। उन्होंने इसे प्रकृति, संस्कृति और धर्म के खिलाफ बताया। कुछ का कहना था कि यह पूरी तरह से पाश्चात्य अवधारणा है। यानी पश्चिमी देशों की संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन भारत का हिस्सा नहीं हो सकता।
सर्वे के मुताबिक 87 फीसदी ने यह बात मानी कि 2018 में जब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 खत्म की तो इस समुदाय को काफी दिमागी सुकून मिला था। इससे उनकी मेंटल हेल्थ में काफी सुधार आया था। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की इस पहल से सेक्सुअल अल्पसंख्यकों पर लगा धब्बा खत्म हुआ। उनके प्रति समाज में समर्थन बढ़ा, उन्हें स्वीकार किया जाने लगा और वो भी समाज से जुड़ा हुआ महसूस करने लगे। ऐसे लोगों ने सर्वे के दौरान कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा मिलने पर ऐसे परिवारों के मेंटल हेल्थ में सुधार होगा। इसके नतीजे सकारात्मक निकलेंगे।
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