कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आन्दोलन चला रहे किसानों ने 6 जून को 'संपूर्ण क्रांति दिवस' मनाने का फ़ैसला किया है।
इसके तहत पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों व सांसदों के दफ़्तरों के बाहर किसान धरना- प्रदर्शन करेंगे और कृषि क़ानूनों की प्रतियाँ जलाएंगे। बीते साल इसी तारीख़ को पहली बार कृषि अध्यादेश लागू किया गया था।
किसान आन्दोलन से जुड़े किसान संगठनों की शीर्ष संस्था संयुक्त किसान मोर्चा ने यह जानकारी दी है।
छह महीनों से धरने पर किसान
पिछले साल संसद से पारित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ 27 नवंबर से ही दिल्ली के नज़दीक हरियाण व उत्तर प्रदेश में हज़ारों किसान धरने पर बैठे हैं।
सरकार के साथ कई दौर की बातचीत नाकाम हो चुकी है। किसान संगठन कृषि क़ानूनों को रद्द करने से कम पर राजी नहीं हैं और सरकार किसी कीमत पर इन क़ानूनो को रद्द करने को तैयार नहीं है। जिच बरक़रार है।
दिल्ली के नजदीक छह महीने से आन्दोलन चल रहा है। अभी भी वहाँ हज़ारों किसान मौजूद हैं।
संयुक्त किसान मोर्च ने एक बयान में कहा है कि 5 जून, 1974 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आन्दोलन छेड़ दिया था। इसलिए यह दिन चुना गया है।
बता दें कि इसके पहले तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसानों ने 26 मई को देशव्यापी प्रदर्शन किया था। इस दिन किसानों के प्रदर्शन को 6 महीने पूरे हो गए। इस दिन मोदी सरकार के कार्यकाल के भी 7 साल पूरे हो गए। किसानों ने इस दिन को ‘काला दिन’ के तौर पर मनाया था। उधर, 12 विपक्षी दलों ने एक संयुक्त बयान जारी कर किसानों के देशव्यापी प्रदर्शन को समर्थन दिया था। समर्थन देने वालों में चार राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल थे।
किसानों ने 26 नवंबर से दिल्ली के बॉर्डर्स पर अपना आंदोलन शुरू किया था। इसके बाद किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। 26 जनवरी को किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान लाल किले पर हुई हिंसा के बाद से सरकार और किसानों के बीच बातचीत बंद है।
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