दिल्ली के बॉर्डर्स सहित कई राज्यों में बड़ा आंदोलन कर मोदी सरकार को कृषि क़ानून वापस लेने पर मज़बूर करने वाले किसान क्या अपनी बाक़ी मांगों को भी मनवा पाएंगे। कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद किसानों ने सोमवार को लखनऊ में हुई महापंचायत में इस बात का दम भरा है कि लंबित छह मांगों के पूरा होने तक उनका आंदोलन जोर-शोर से जारी रहेगा। लेकिन क्या सरकार उनकी इन मांगों के आगे झुकेगी। पहले जानते हैं कि किसानों की ये छह मांगें क्या हैं?
- एमएसपी को लेकर क़ानूनी गारंटी दी जाए।
- बिजली संशोधन विधेयक को वापस लिया जाए।
- पराली जलाने पर जुर्माने के प्रावधानों को ख़त्म किया जाए।
- आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज हुए मुक़दमों को वापस लिया जाए।
- केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाए।
- आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवजा दिया जाए और सिंघु बॉर्डर पर उनकी याद में स्मारक बनाने के लिए ज़मीन दी जाए।
प्रधानमंत्री ने कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने की अपनी घोषणा के दौरान यह भी कहा था कि एमएसपी को और अधिक प्रभावी बनाने सहित खेती-किसानी से जुड़े कई और मसलों पर फ़ैसले लेने के लिए सरकार एक कमेटी का गठन करेगी। किसानों का कहना है कि एमएसपी को लेकर क़ानूनी गारंटी लिए बिना वे पीछे नहीं हटेंगे। इस मुद्दे पर बातचीत कर सरकार किसी समझौते पर पहुंच सकती है।
सियासी नुक़सान का डर
किसानों की बाक़ी मांगों में से केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग भी अहम है। अगर मोदी सरकार ऐसा करती है तो उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इससे पार्टी को कुछ सियासी नुक़सान तो हो ही सकता है, इससे यह भी संदेश जाएगा कि सरकार किसानों के आगे बहुत ज़्यादा झुक गई है।
किसानों ने पूरे एक साल तक जोरदार आंदोलन के जरिये हुक़ूमत को हिलाए रखा। यह सच है कि इस आंदोलन का विधानसभा चुनाव में असर होने की आशंका के कारण ही मोदी सरकार पीछे हटी है।
लेकिन क्या सरकार किसानों की बाक़ी मांगों के आगे और झुकेगी और क्या किसानों का बड़ा हिस्सा अब आंदोलन में पहले जितना सक्रिय नहीं रहेगा, इन सवालों के जवाब भी आने वाले कुछ दिनों में मिल जाएंगे।
अजय मिश्रा टेनी की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी के अलावा बाक़ी मांगें ऐसी हैं, जिन्हें सरकार थोड़ा ना-नुकुर के बाद मान सकती है। देखना होगा कि सरकार क्या रास्ता निकालती है और क्या किसान भी पहले जितने जोर-शोर से इस आंदोलन को जारी रख पाते हैं।
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