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पहले हुए कई किसान मार्चों को रोक दिया गया था। फाइल फोटो

101 किसानों का दिल्ली मार्च 21 जनवरी से फिर, पहुंच पायेंगे राजधानी?

किसानों संगठनों ने अपना दिल्ली मार्च फिर से शुरू करने का फैसला किया है। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि 101 किसानों का जत्था 21 जनवरी को अपना मार्च फिर से शुरू करेगा। उधर, खनौरी बॉर्डर पर 111 किसानों का जत्था डल्लेवाल के समर्थन में अनशन पर बैठ गया है। फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी सहित अपनी मांगों को स्वीकार करने के लिए किसान लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं। वे विभिन्न संगठनों के बैनर तले खनौरी और शंभू बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। 
101 किसानों के “जत्थे” ने इससे पहले शंभू बॉर्डर पर पिछले साल 6 दिसंबर, 8 दिसंबर और 14 दिसंबर को पैदल दिल्ली की ओर जाने की तीन कोशिश की थी। लेकिन घग्गर नदी को दो भागों में बाँटने वाले पुल पर तैनात अर्धसैनिक बलों और हरियाणा पुलिस ने इन तीनों कोशिशों को नाकाम कर दिया।
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पिछली तीन कोशिशों में 50 से अधिक किसान घायल हुए थे। एक किसान, जो जत्थे का हिस्सा नहीं था, ने 14 दिसंबर को तीसरी कोशिश के दौरान जहर खा लिया था। पंधेर, जो किसान मजदूर मोर्चा के नेता हैं, ने पिछले 11 महीनों से शंभू और खनौरी में डेरा डाले हुए किसानों की मांगों को स्वीकार नहीं करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की है।
पंढेर ने कहा, "दोनों मंचों (एसकेएम-अराजनीतिक, केएमएम) ने गुरुवार को फैसला किया कि 101 किसानों का 'जत्था' 21 जनवरी को शंभू सीमा से दिल्ली के लिए अपना मार्च फिर से शुरू करेगा।" उन्होंने कहा- “हमने देखा है और हमें भी लगता है कि सरकार किसी भी बातचीत के लिए तैयार नहीं है। आंदोलन को तेज़ करने का निर्णय दोनों मंचों का है।''

एमएसपी के मुद्दे पर कब तक छले जायेंगे किसान?

दरअसल, केंद्र सरकार किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी पर बहका रही है। 2020-21 के देशव्यापी किसान आंदोलन के आगे जब मोदी सरकार ने घुटने टेके थे तो उस समय कानूनी एमएसपी गारंटी पर विचार करने सहित अन्य वादे किए थे। लेकिन सरकार ने कोई भी वादा पूरा नहीं किया। केंद्र ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दालें, मक्का और कपास खरीदने के लिए पांच साल के अनुबंध का प्रस्ताव किया था। लेकिन किसानों ने उसे खारिज कर दिया, क्योंकि वो सिर्फ वादा था, ताकि आंदोलन खत्म कराया जा सके। उसमें मुख्य फसल गेहूं और धान शामिल नहीं था।अब सरकार रद्द किये जा चुके तीन किसान कानूनों को चोर दरवाजे से लाने के लिए फिर सक्रिय है। उसने इस पर राष्ट्रीय नीति का मसौदा बनाया और किसान संगठनों के बीच इसे स्वीकार करने के लिए जोड़तोड़ किया। किसान संगठन इसे समझ गये, इसीलिए उन्होंने अपना आंदोलन तेज करने का फैसला किया।  
मोदी सरकार ने अब डल्लेवाल की चिन्ता भी छोड़ दी है। उनका आमरण अनशन गुरुवार को 52वें दिन में प्रवेश कर गया। 111 किसानों के जत्थे ने 15 जनवरी से डल्लेवाल के साथ एकजुटता दिखाते हुए आमरण अनशन शुरू किया और कसम खाई है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, वे पीछे नहीं हटेंगे। नया 'जत्था' खनौरी की सीमा पर बैठ गया है। डल्लेवाल पिछले साल 26 नवंबर से पंजाब की ओर खनौरी बॉर्डर पर भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं।
हरियाणा पुलिस ने अपनी सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी है। इसने पहले ही बीएनएस की धारा 163 लगा दी है, जिसमें पांच या अधिक लोगों के जमा होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्रदर्शनकारी किसानों ने डल्लेवाल के "बिगड़ते" स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि लंबे समय तक उपवास के कारण उनके "कई अंगों के खराब होने" का खतरा है।
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एसकेएम (अराजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के बैनर तले किसान पिछले साल 13 फरवरी से पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। इसमें अभी पंजाब के किसानों की भागीदारी है लेकिन बीच-बीच में हरियाणा के तमाम जिलों के किसान जत्थे शंभू और खनौरी पहुंचते रहते हैं।
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क़मर वहीद नक़वी
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