नागरिकता संशोधन क़ानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए अब 106 सेवानिवृत्त अफ़सरों ने खुला पत्र लिखा है। उन्होंने यह पत्र आम लोगों के नाम लिखा है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि एनपीआर यानी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और एनआरआईसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटीज़न ग़ैर ज़रूरी और बेकार की प्रक्रिया है जो लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी करेगी। उन्होंने इस पत्र का शीर्षक ही ‘भारत को सीएए-एनपीआर-एनआरआईसी की ज़रूरत ही नहीं’ दिया है। इन पूर्व अफ़सरों में शामिल दिल्ली के पूर्व लेफ़्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, पूर्व कैबिनेट सचिव के.एम. चंद्रशेखर और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने नागरिकों से आग्रह किया है कि वे नागरिकता अधिनियम, 1955 में राष्ट्रीय पहचान पत्र से जुड़ी धाराओं को निरस्त कराने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाएँ।
नागरिकता क़ानून-एनपीआर के विरोध में 106 सेवानिवृत्त अफ़सरों ने लिखा खुला ख़त
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- 10 Jan, 2020
नागरिकता संशोधन क़ानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए अब 106 सेवानिवृत्त अफ़सरों ने खुला पत्र लिखा है। उन्होंने एनपीआर और एनआरआईसी को ग़ैर ज़रूरी और बेकार बताया।

बता दें कि नागरिकता संशोधन क़ानून पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश के हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता देने की बात करता है। मुसलिमों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसी आधार पर कहा गया है कि यह क़ानून धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है और यह संविधान में उल्लेखित धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है। इस बीच अमित शाह ने पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात की और फिर एनपीआर की बात कही। एनआरसी और एनपीआर में लोगों से अपनी पूरी जानकारी के साथ ही माँ-बाप के जन्म और उनके जन्म स्थान की जानकारी देने की बात कही गई है। माना जा रहा है कि इससे लोगों को काफ़ी दिक्कतें होंगी और वे शायद ये कागजात नहीं दे सकें। इसी को लेकर विरोध हो रहा है।