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16,518 करोड़ भुनाए गए, 94% तो 1 करोड़ वाले इलेक्टोरल बॉन्ड थे

इलेक्टोरल बॉन्ड में जिस तरह के अपारदर्शिता और काले धन के इस्तेमाल की आशंका जताई जा रही थी अब सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद यह सच साबित होता दिख रहा है। इलेक्टोरल बॉन्ड के अब जो आँकड़े आ रहे हैं उसमें चौंकाने वाली जानकारी सामने आ रही है।

राजनीतिक दलों ने 2018 से चुनावी बॉन्ड योजना के 30 चरणों में 16,518 करोड़ रुपये जुटाए हैं। इन चरणों में लगभग 94 प्रतिशत बॉन्ड का फेस वैल्यू मूल्य 1 करोड़ रुपये था। तो सवाल है कि आख़िर एक-एक करोड़ रुपये के फेस वैल्यू के रूप में चंदा देने वाले कौन हो सकते हैं? जो एक करोड़ रुपये से ज़्यादा का चंदा देता है वह क्या कोई आम व्यक्ति हो सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि इसमें से अधिकतर औद्योगिक घरानों से यानी कार्पोरेट चंदा दिया गया? यदि ऐसा हुआ तो सबसे ज़्यादा किस पार्टी को फायदा हुआ और किसने सबसे ज्यादा चंदा दिया?

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इन सवालों का जवाब तो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर अमल में लाए जाने के बाद आसानी से मिल जाएगा क्योंकि अदालत ने उन सभी आँकड़ों को सार्वजनिक करने के लिए कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है और कहा कि इसे रद्द करना होगा। भारत के चीफ जस्टिस ने कहा- कंपनी अधिनियम में संशोधन (कॉर्पोरेट राजनीतिक फंडिंग की अनुमति) असंवैधानिक है। चीफ जस्टिस ने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक चुनावी बांड जारी करना बंद करे। एसबीआई अभी तक की सारी सूचनाएं 6 मार्च तक चुनाव आयोग दे। आयोग उन्हें 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को बॉन्ड का वो पैसा उन्हें देने वालों को वापस करना होगा, जिन बॉन्डों को भुनाया नहीं गया है। 

कंपनीज़ एक्ट की धारा 182 के तहत यह व्यवस्था की गई थी कि कोई कंपनी अपने सालाना मुनाफ़ा के 7.5 प्रतिशत से अधिक का चंदा नहीं दे सकती, लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड को इससे बाहर रखा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में यह भी कहा कि राजनीतिक योगदान के माध्यम से प्रभावित करने की किसी कंपनी की क्षमता किसी व्यक्ति की तुलना में बहुत अधिक है। इसमें कहा गया है, 'किसी कंपनी का राजनीतिक प्रक्रिया पर बहुत अधिक प्रभाव होता है, राजनीतिक दलों को दिए गए धन की मात्रा और इस तरह के योगदान देने के उद्देश्य दोनों के संदर्भ में। चिंता की बात यह है कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय सहायता देने से विशेष रूप से नीतिगत हस्तक्षेपों में बदले की भावना की व्यवस्था हो सकती है।'
इलेक्टोरल बॉन्ड एक वचनपत्र है, बिल्कुल एक बैंकनोट की तरह। इसे आरबीआई जारी करता रहा। इसे किसी भारतीय नागरिक या भारतीय संस्था द्वारा एसबीआई की अधिकृत शाखाओं से ख़रीदा जा सकता था। इस बांड को सिर्फ़ चेक या डिजिटल पैमेंट करके ही ख़रीदा जा सकता था। 
ये बॉन्ड एक तरह के ‘बियरर चेक’ की तरह है, जिन्हें देने वालों का नाम गुप्त रखा जाता था। राजनीतिक दल अपने अधिकृत अकाउंट में इसे सीधे जमा कराकर पैसे ‘कैश’ करा सकते थे।

ये जारी होने की तारीख से 15 दिनों के लिए वैध थे। एसबीआई ने इन्हें 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के फेस वैल्यू पर जारी किया था। इसी 1 करोड़ रुपये के फेस वैल्यू वाला इलेक्टोरल बॉन्ड अब तक के भुनाए गए कुल चुनावी चंदे का 94 फ़ीसदी है।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एसबीआई के मुताबिक, दानदाताओं ने 2018 में 1,056.73 करोड़ रुपये, 2019 में 5,071.99 करोड़ रुपये, 2020 में 363.96 करोड़ रुपये, 2021 में 1,502.29 करोड़ रुपये, 2022 में 3,703 करोड़ रुपये और 2023 में 4,818 करोड़ रुपये दिए।

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रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 से 2022-23 तक कुल मिलाकर 11450 करोड़ रुपये का इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुआ। इसमें से 57 फ़ीसदी बॉन्ड अकेले बीजेपी को मिले। बीजेपी को 6566 करोड़ रुपये, कांग्रेस को 1123 करोड़, टीएमसी को 1093 करोड़, बीजेडी को 774 करोड़, डीएमके को 617 करोड़, आप को 94 करोड़, एनसीपी को 64 करोड़, जेडीयू को 24 करोड़ रुपये और अन्य को 1095 करोड़ रुपये मिले।

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क़मर वहीद नक़वी
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