क्या है चुनावी बॉन्ड
मोदी सरकार ने 2017 में देश को बताया कि वो चुनावी डोनेशन के लिए एक योजना ला रही है। यह योजना 2018 में केंद्र सरकार लेकर आई। 2019 के आम चुनाव से एक साल पहले। इसके तहत साल में चार बार चुनावी बॉन्ड खरीदे जा सकेंगे। अप्रैल, जनवरी, जुलाई और अक्टूबर महीने के पहले दस दिनों तक चुनावी बॉन्ड खरीदने का नियम तय हुआ था। इस बॉन्ड को आप या बड़े कॉरपोरेट, उद्योगपति भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की शाखा से खरीद सकते हैं। यह एक तरह का पैसे के रूप में वचन है जो आप किसी राजनीतिक दल को डोनेशन के तौर पर देते हैं। इसमें आपकी पहचान छिपी रहती है। यानी कोई भी उद्योगपति, कॉरपोरेट, आम आदमी चुनावी बॉन्ड खरीदकर अपनी पहचान बताए बिना किसी भी राजनीतिक दल को डोनेशन दे सकता है। पुराने नियम में उद्योगपतियों, कॉरपोरेट के अलावा राजनीतिक दलों को बताना पड़ता था कि उन्हें चंदा या डोनेशन कहां से आया है।क्या बदलाव हुआ
मोदी सरकार ने 7 नवंबर को इसमें जो बदलाव किया है, उसके मुताबिक "केंद्र सरकार द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभा के आम चुनावों के वर्ष में पंद्रह दिनों की अतिरिक्त अवधि में चुनावी बॉन्ड खरीदने की तारीख तय की जाएगी।”इस बदलाव के फौरन बाद सरकार ने घोषणा की कि चुनावी बॉन्ड 9 नवंबर यानी आज से एसबीआई की शाखाओं पर एक हफ्ते के लिए बिक्री को उपलब्ध होंगे। इस घोषणा का अप्रत्यक्ष मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि हिमाचल और गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान अगर कोई किसी राजनीतिक दल को डोनेशन देना चाहता है तो वो चुनावी बॉन्ड के जरिए दे सकता है। फिर से दोहराते चलें कि यह बदलाव केंद्र सरकार ने 7 नवंबर को तब किया जब हिमाचल और गुजरात चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी थी और आचार संहिता लागू थी।
विरोध के स्वर उठे
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एस. कृष्णमूर्ति ने सरकार के इस कदम का विरोध किया। उन्होंने कहा: मैं चुनावी फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड को मंजूरी नहीं देता। हमें एक राष्ट्रीय चुनाव कोष बनाकर चुनावों की सार्वजनिक फंडिंग करना चाहिए, जिसमें डोनेशन पर 100 फीसदी टैक्स छूट हो। ताकि डोनेशन देने वालों और राजनीतिक दलों के बीच कोई गठजोड़ न हो सके।“
मौजूदा मामले में, मुझे लगता है कि वित्त मंत्रालय ने 7-11-2022 को गलत समय पर अधिसूचना जारी की है। यह अनुचित है। सत्तारूढ़ राजनीतिक दल द्वारा खुले तौर पर आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। वो एमसीसी की अनदेखी कर रही है। यह सुप्रीम कोर्ट को नजरन्दाज करना भी है, क्योंकि उसके सामने इससे संबंधित याचिका मौजूद है। ये कदम बाकी राजनीतिक दलों के लिए अवसर कम करेगा। मुझे लगता है कि चुनाव आयोग के लिए यह एक उपयुक्त मामला है कि वह सरकार को तुरंत कारण बताओ नोटिस जारी करे। अधिसूचना को तुरंत रद्द कर दिया जाए। ऐसा न करने पर निर्धारित चुनाव स्थगित कर दिए जाएं। अगर ऐसा नहीं किया गया तो आयोग सत्ताधारी दल (बीजेपी) को संवैधानिक अधिकार का अनुचित लाभ उठाने की अनुमति दे देगा।
ई.ए.एस. सरमा, पूर्व केंद्रीय सचिव, 9 नवंबर
अमीर होते राजनीतिक दलः चुनावी बॉन्ड योजना का सीपीएम के अलावा किसी भी राजनीतिक दल ने विरोध नहीं किया। ऐसा इसलिए हुआ कि चुनावी बॉन्ड से कुछ राजनीतिक दल मालामाल हो रहे हैं। जिसमें बीजेपी नंबर 1 पार्टी है। जितना डोनेशन उसे मिलता है, उसका मुकाबला भारत की कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं कर सकती।
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