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‘दक्षिण भारत ज़्यादा रुपये पैदा करता है, उत्तर भारत ज़्यादा बच्चे’ 

‘इकोनॉमिस्ट’ पत्रिका के 29 अक्तूबर के ताज़ा अंक में भारत के आर्थिक यथार्थ के बारे में आँख खोल देने वाली एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिसका शीर्षक है - भारत का आर्थिक भूगोल : जहां देशांतर ही सब कुछ है ।

इस रिपोर्ट के शुरू में ही कहा गया है कि भारत का दक्षिणी हिस्सा रुपये पैदा करता है और उत्तरी हिस्सा बच्चे । इसके परिणाम विस्फोटक हो सकते हैं । 

रिपोर्ट के शुरू में गोवा का ज़िक्र है। पश्चिमी तट पर अनेक समुद्री किनारों का प्रदेश गोवा, जहां इफ़रात में झींगा मछली और बेहतरीन जीवन स्तर दिखाई देता है । गोवा के औसत आदमी की आमदनी उत्तर के गांगेय क्षेत्र के बिहार के औसत आदमी की आमदनी से दस गुना ज़्यादा है । ‘इकोनॉमिस्ट’ के शब्दों में गोवा और बिहार के लोगों के जीवन स्तर में उतना ही फ़र्क़ है जितना दक्षिणी यूरोप और सब-सहारन अफ्रीकी देशों के लोगों के जीवन-स्तर के बीच में है । 

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‘इकोनॉमिस्ट‘ ने चीन, बांग्लादेश आदि कई देशों का उदाहरण देते हुए कहा है कि दुनिया के दूसरे किसी भी देश में इस प्रकार का क्षेत्रीय वैषम्य देखने को नहीं मिलता है । भारत के दक्षिण और पश्चिम के राज्यों में सबसे अधिक आर्थिक विकास हुआ है और बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल, जिनमें भारत की कुल आबादी का चालीस प्रतिशत, तक़रीबन 60 करोड़ लोग रहते हैं, वे भारी ग़रीबी और पिछड़ेपन में डूबे हुए हैं । 

‘इकोनॉमिस्ट’ बताता है कि 2010 के बाद के एक दशक में बिहार की आबादी में 16.5 प्रतिशत वृद्धि हुई है, यूपी में 14 प्रतिशत, जबकि महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु में 10 प्रतिशत से भी कम वृद्धि हुई है । इसी में यह भी बताया गया है कि भारत में उद्योगों में लगे लोगों की संख्या मात्र 14 प्रतिशत है, जबकि चीन में 27प्रतिशत और बांग्लादेश में 21 प्रतिशत है । 

यूपी में भारत की आबादी के 17 प्रतिशत लोग वास करते हैं, पर उद्योगों में कार्यरत लोगों में यूपी के लोगों की संख्या सिर्फ़ 9 प्रतिशत है । उद्योगों में लगे आधे से ज़्यादा लोग दक्षिण के पाँच राज्यों और पश्चिम के गुजरात के हैं । एपल जैसी कंपनी के उत्पादों को बनाने वाले कुल 11 कारख़ानों में से उत्तर में सिर्फ़ एक है और अकेले तमिलनाडु में उनकी संख्या 6 हैं ।

इसके अलावा ‘इकोनॉमिस्ट’ की इस रिपोर्ट में जिस सबसे बुरी बात का संकेत है, वह यह कि दुनिया में भारत अकेला देश है जहां लोगों के एक राज्य से दूसरे राज्य में बसने, internal-migration का अनुपात सबसे कम है । इसकी वजह से एक ही योग्यता, शिक्षा और जाति के बावजूद एक व्यक्ति एक ही देश में सिर्फ़ अपने वास-स्थान की वजह से दूसरे व्यक्ति से कई गुना कम कमाई करता है । 

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‘इकोनॉमिस्ट’ का यह आकलन सचमुच आँख खोलने वाला है । यह अभी की मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खडे करता हैं।  सरकार अपनी एकाधिकारवादी राजनीति तथा ‘एक भाषा, एक दल, एक राष्ट्र’ की तरह की नीतियों और सांप्रदायिक विभाजनकारी करतूतों के जरिए राज्यों और लोगों के बीच जिस प्रकार के विद्वेष को बढ़ा रही है, उसके चलते आम लोगों की गतिशीलता को भारी धक्का लग रहा है । सामान्य व्यक्ति अपने घर को छोड़ कर कहीं जाने के पहले सौ बार विचार करता है । ऊपर से, परिवहन की सुविधाओं को महँगा बना कर लोगों का आवागमन जिस प्रकार बाधित किया जा रहा है, उससे यह आर्थिक विषमता और भी तेज़ी से बढ़ रही है। 

(अरुण माहेश्वरी के फेसबुक वॉल से)

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अरुण माहेश्वरी
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