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'डिजिटल अरेस्ट स्कैम' क्या है? जानें कैसे हो रहा है साइबर फ्रॉड

पुलिस की गिरफ्तारी तो सुनी होगी? ये 'डिजिटल अरेस्ट' क्या है? आख़िर बड़े पैमाने पर लोग इसके शिकार कैसे हो रहे हैं? रविवार को लोकप्रिय सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर अंकुश बहुगुणा के साथ हुई घटना ने फिर से 'डिजिटल अरेस्ट स्कैम' की भयावहता को सामने ला दिया है।

'डिजिटल अरेस्ट स्कैम' को समझने के लिए पहले सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर अंकुश बहुगुणा की घटना को जान लीजिए। बहुगुणा ने रविवार को एक चौंकाने वाली और दर्दनाक घटना के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें ऑनलाइन स्कैमरों ने 40 घंटे तक बंधक बनाकर रखा था और कैसे उन्हें 'डिजिटल अरेस्ट' के लिए मजबूर किया गया। उन्हें उनके दोस्तों और परिवार से अलग-थलग कर दिया गया। स्कैमरों ने इस दौरान उनके पैसे उड़ा लिए।

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अंकुश बहुगुणा ने अपने साथ हुई इस घटना को साझा किया और कहा कि इसकी शुरुआत एक ऑटोमेटेड फोन कॉल से हुई, जिसमें दावा किया गया कि उन्हें एक पैकेज डिलीवर किया जा रहा है। बहुगुणा ने सहायता के लिए 'शून्य' दबा दिया। फिर क्या था, वह जाल में फँस गए। उस कॉल को तुरंत एक कथित कस्टमर हेल्प रिप्रजेंटेटिव के पास ट्रांसफर कर दिया। उसने बहुगुणा को यह कहते हुए डराया कि चीन के लिए अवैध पदार्थों से भरा एक पैकेज उसके नाम से जुड़ा हुआ है। स्कैमरों ने उन्हें बताया कि उनको पहले ही गिरफ्तारी वारंट जारी किया जा चुका है और उन्हें जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा। बहुगुणा ने जब ऐसे किसी पैकेज के बारे में जानकारी होने से इनकार किया तो फोन पर प्रतिनिधि ने कहा कि उन्हें इस मुद्दे से निपटने के लिए पुलिस से बात करनी होगी। स्कैमरों ने उनको इतना डरा दिया कि पुलिस स्टेशन जाने का समय नहीं है और वे सीधे पुलिस अधिकारी से बात करा रहे हैं।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार बहुगुणा ने बताया कि सरकारी एजेंसियों के नाम पर कुछ लोगों ने वीडियो कॉल के ज़रिए उनसे पूछताछ की। उन्होंने कहा, 'उन्होंने मुझे पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया। मैं किसी से संपर्क नहीं कर सकता था, कॉल नहीं उठा सकता था, या संदेश भी नहीं देख सकता था। उन्होंने दावा किया कि मैं सेल्फ-कस्टडी में था और मैंने जो कुछ भी किया, उसका इस्तेमाल मेरे खिलाफ़ किया जा सकता था।' उन्होंने आगे कहा कि 'मैं पिछले तीन दिनों से सोशल मीडिया और हर जगह से गायब हूं क्योंकि मुझे कुछ स्कैमरों ने बंधक बना लिया था।' 

इतना ही नहीं, स्कैमरों ने बहुगुणा को संदिग्ध बैंक लेनदेन करने, होटल में ठहरने, बैंक शाखा जाने और उनके जानने वालों को कुछ भी नहीं बताने की धमकी दी थी। रिपोर्टों के अनुसार स्कैमरों ने धमकाया था कि उसकी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी, उनके माता-पिता ख़तरे में आ जाएँगे। हालाँकि, बाद में जब बहुगुणा के दोस्तों को इसपर शक हुआ तो उन्होंने स्कैमरों की ऐसी गतिविधियों के बारे में बहुगुणा को बताया और तीन दिन बाद उस 'डिजिटल अरेस्ट' से बाहर निकलने में मदद की।
हाल ही में कई ऐसे स्कैम सामने आए हैं जिसमें व्यक्तियों और व्यवसायों को करोड़ों रुपये का नुक़सान हुआ है। तो सवाल है कि आख़िर कैसे स्कैमर लोगों को जाल में फँसा लेते हैं और डिजिटल अरेस्ट स्कैम में शिकार करते हैं।

डिजिटल अरेस्ट स्कैम 

दरअसल, डिजिटल अरेस्ट स्कैम में धोखेबाज अपने शिकार को धोखा देने के लिए पुलिस, सीबीआई, ईडी जैसी एजेंसियों के अधिकारी के रूप में पेश आते हैं।

डिजिटल अरेस्ट स्कैम एक ऑनलाइन धोखाधड़ी है जो पीड़ितों से उनकी मेहनत की कमाई ठगता है। घोटालेबाज पीड़ितों को डराते हैं और उन पर अवैध गतिविधियों का झूठा आरोप लगाते हैं। बाद में वे पैसे की मांग करते हैं और भुगतान करने के लिए उन पर दबाव डालते हैं।

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स्कैमर कैसे ठगते हैं?

डिजिटल अरेस्ट स्कैम में अपराधी सीबीआई एजेंट, आयकर अधिकारी या सीमा शुल्क एजेंट बनकर फोन कॉल के जरिए पीड़ितों से संपर्क करते हैं। इसके बाद वे पीड़ित को व्हाट्सएप और स्काइप जैसे प्लेटफॉर्म के जरिए वीडियो कॉल से जुड़ने को मजबूर करते हैं। फिर वे पीड़ितों को वित्तीय गड़बड़ियों, कर चोरी या अन्य कानूनी उल्लंघन जैसे विभिन्न कारणों का हवाला देते हुए डिजिटल अरेस्ट वारंट की धमकी देते हैं। कुछ मामलों में ये धोखेबाज पीड़ितों को यह विश्वास दिलाने के लिए पुलिस स्टेशन जैसा सेट-अप बनाते हैं कि कॉल वैध है। 

स्कैमर लोगों को तय बैंक खातों या यूपीआई आईडी में बड़ी रकम स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया जाता है। एक बार जब पीड़ित सहमत हो जाते हैं और भुगतान कर देते हैं, तो स्कैमर गायब हो जाते हैं।

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स्कैम से कैसे बचें?

ऐसी धोखाधड़ी से खुद को बचाने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है जागरूक रहना। आप मुसीबत में होने का दावा करने वाले नकली अधिकारियों के कॉल पर संदेह करें। याद रखें कि असली सरकारी एजेंसी के अधिकारी कभी भी भुगतान या बैंकिंग की डिटेल नहीं मांगेंगे। यदि आपको कॉल के बारे में संदेह है तो सीधे संबंधित एजेंसी से संपर्क करके उनकी पहचान पक्का करें। व्यक्तिगत जानकारी साझा करने से बचें और कभी भी फ़ोन या वीडियो कॉल पर संवेदनशील व्यक्तिगत या वित्तीय जानकारी न दें। सरकारी एजेंसियाँ आधिकारिक सूचना के लिए व्हाट्सएप या स्काइप जैसे प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग नहीं करती हैं। संदेह होने पर स्थानीय पुलिस या साइबर अपराध अधिकारियों को घटना की जानकारी दें।

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क़मर वहीद नक़वी
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