दिल्ली के बाहर सिंघु बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन स्थल के मुख्य मंच के पास ही शुक्रवार सुबह एक शव मिला। उसकी बायीं कलाई कटी हुई थी। शव पुलिस बैरिकेड्स से बंधा हुआ था। शव को देखने से लगता है कि उस शख्स की बेरहमी से हत्या की गई है। पुलिस ने अज्ञात व्यक्ति के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है।
घटना को लेकर कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं, लेकिन पुलिस ने कहा है कि वह उन वीडियो की जाँच करेगी। पुलिस ने अफवाहों को लेकर भी आगाह किया है। साफ़ है कि जब तक पुलिस की जाँच सामने नहीं आ जाती है तब तक उस घटना को लेकर अफवाहें फैलने और इसके आधार पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाने की आशंका पुलिस को भी है।
पुलिस उपाधीक्षक हंसराज ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा है, 'आज सुबह क़रीब पाँच बजे किसानों के विरोध प्रदर्शन वाली जगह (कुंडली, सोनीपत में) पर एक शव लटकाया हुआ मिला जिसके हाथ, पैर काटे गए थे। इसका पता नहीं है कि कौन दोषी है। वायरल वीडियो जाँच का विषय है... अफवाहें आती रहेंगी।'
उस घटना से जुड़े हुए कई वीडियो सोशल मीडिया पर आए हैं। इन वीडियो को लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं। एक वीडियो में कुछ लोग दिखते हैं और वे शख्स से उसका नाम और पैतृक गांव पूछते नज़र आते हैं। एक वीडियो में पुलिस के बैरिकेड्स से शव लटका हुआ दिखता है। इन वीडियो की पुष्टि नहीं की जा सकी है कि ये कितने सही हैं या ग़लत। पुलिस ने भी अभी कहा है कि वह इन वीडियो की जाँच करेगी।
सोनीपत पुलिस ने शव को सिविल अस्पताल पहुँचाया है। पुलिस के अनुसार युवक की पहचान तरनतारन ज़िले के निवासी लखबीर सिंह के रूप में की गई है। वह हरनाम सिंह का दत्तक पुत्र है। 35-36 वर्षीय लखबीर पेशे से मज़दूर था। उसके परिवार में एक बहन, एक पत्नी और तीन बेटियाँ हैं।
बता दें कि सिंघु बॉर्डर पर जहाँ यह शव मिला है वह जगह किसानों के प्रदर्शन स्थल के पास है। इस शव मिलने के बाद सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने किसान आंदोलन को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। इसी के मद्देनज़र किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले किसान संघों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा इस पर बयान जारी करेगा। 'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त किसान मोर्चा इस घटना पर चर्चा करने और एक बयान जारी करने के लिए दोपहर में बैठक करेगा।
केंद्र के नए कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए किसान क़रीब एक साल से सिंघु बॉर्डर पर इकट्ठे हैं। उनका प्रदर्शन आम तौर पर शांतिपूर्ण रहा है। वे प्रशासन की सख़्ती के बावजूद अपने आंदोलन के प्रति डटे रहे हैं।
शुरुआत में जब किसान पंजाब-हरियाणा से दिल्ली की ओर आ रहे थे तो उन पर पानी की बौछारें की गई थीं, रास्ते खोद डाले गए थे। कई बार लाठाचार्ज का सामना करना पड़ा था। जब वे दिल्ली बॉर्डर पर भी पहुँचे तो उन्हें कई बार वहाँ से हटाने के लिए प्रशासन ने बेहद सख़्ती की। इसने सड़कों पर लोहे की कीलें तक ठोकवा दीं, पक्की दीवारें खड़ी करवा दी थीं।
अगस्त में तब तनाव बढ़ गया था जब करनाल के एक शीर्ष अधिकारी पुलिस को "उनके (किसानों के) सिर फोड़ने" का आदेश देते हुए कैमरे में कैद हो गए थे। उसी बीच लाठीचार्ज के दौरान 10 किसान घायल हो गए थे। इसके बाद उस अधिकारी आयुष सिन्हा को उनके पद से हटा दिया गया, उन्हें छुट्टी पर भेज दिया गया और मामले की जांच के आदेश दिए गए।
फ़िलहाल, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में भी किसानों के प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई है। लेकिन इस मामले में भी रिपोर्टें आ रही हैं कि वे शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे और इसी बीच किसानों पर गाड़ियाँ चढ़ा दी गईं। इसमें 4 किसानों की मौत हो गई और कई किसान घायल हो गए। इसके बाद ही हिंसा भड़की और फिर उस घटना में कुल मिलाकर 8 लोगों की मौत हुई। इसमें से एक पत्रकार भी शामिल थे। पत्रकार के परिवार के लोगों का कहना है कि उनको भी गाड़ी से ही रौंदा गया था।
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