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कोरोना कहर का दूसरा दौर: किसने ढिलाई की?

कोरोना कहर का दूसरा दौर शुरू हो चुका है। कोरोना को मार भगाने वाली वैक्सीन ले आने के दावों के बीच यह दूसरा दौर आया है। जनता दवाई पर पूरा विश्वास करती रही है चाहे वह वैक्सीन हो या फिर दवा के नाम पर रामदेव का दावा। तभी तो 16 जनवरी से 17 मार्च के बीच 3 करोड़ से ज्यादा लोग वैक्सीन ले चुके हैं मगर, आरोप जनता पर ही है कि वह ढिलाई कर रही है। 

पीएम मोदी ने कोरोना के दूसरे कहर से निपटने के लिए ‘दवाई भी, कड़ाई भी’ का जो मंत्र दिया है उसमें दवा देने का श्रेय सरकार के लिए है तो ढिलाई की तोहमत जनता पर। प्रश्न यह है कि ढिलाई किसने की?

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वैक्सीन के बाद आया है दूसरा कहर!

जनवरी 2021 में कोरोना की वैक्सीन जब आई तो संक्रमण के मामले काफी कम हो चुके थे। नये साल 2021 के पहले महीने में महज 4.72 लाख कोरोना के मरीज मिले थे। फरवरी में यह संख्या और भी कम हो गयी- महज 3.53 लाख। मगर, मार्च के पहले 17 दिन में ही 3.62 लाख नये कोरोना मरीज आ चुके हैं। मतलब यह कि फरवरी के मुकाबले नये मरीजों की संख्या दुगुनी होने वाली है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्या आम लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं?

वैक्सीन आने के बाद नये मरीजों की संख्या घटनी चाहिए थी, लेकिन यह बढ़ रही है! क्या इसकी वजह यह है कि आम लोगों में कोरोना का खौफ कम हो गया है कि वे निश्चिंत हो गये हैं कि अब वैक्सीन आ चुकी है या यह कि मास्क लगाने से लेकर सोशल डिस्टेंसिंग मानने को लेकर लोग लापरवाह हो गये हैं?

इस विषय पर देखिए वीडियो- 

अगर बात मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग की ही है तो मोटेरा स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम करने से जुड़ा समारोह हो या फिर स्टेडियम में चल रहे क्रिकेट के मैच, पांच राज्यों में जारी चुनाव के दौरान हो रही रैलियां हों या फिर हरिद्वार में हो रहा महाकुंभ- किन जगहों पर मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है? 

आम लोग गुनहगार जरूर हैं लेकिन गुनाह करा कौन रहा है? जिन राज्यों में संक्रमण तेजी से बढ़े हैं उनमें महाराष्ट्र और गुजरात के अलावा वे राज्य हैं जहां विधानसभा चुनाव हो रहे हैं।

टेस्टिंग-ट्रेसिंग-ट्रीटमेंट का मंत्र क्यों भूले?

प्रधानमंत्री ने टेस्टिंग-ट्रेसिंग-ट्रीटमेंट के मंत्र को दोहराया है। इस मंत्र को भूला कौन? भारत में कोविड-19 के सामुदायिक संक्रमण की बात से एक बार फिर आईसीएमआर के डीजी बलराम भार्गव ने इनकार किया है। जबकि अक्टूबर में ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन मान चुके थे कि भारत कम्युनिटी ट्रांसमिशन के दौर में प्रवेश कर चुका है। अगर कम्युनिटी ट्रांसमिशन देश में नहीं है तब तो चुनौती कहीं आसान है कि कोविड के मरीज के चेन को पकड़कर टेस्टिंग-ट्रेसिंग-ट्रीटमेंट की राह पर बढ़ा जाए।

‘मरकज से कोरोना विस्फोट’ वाले दिनों में इस मंत्र का जितना हल्ला था, वह बाद में नहीं दिखा। ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट तो छोड़ दीजिए टेस्टिंग ही लगातार घटा दी गयी। इसे कहते हैं ढिलाई, जो जनता की तरफ़ से कतई नहीं हुई है।

एक महीने में 1 करोड़ से ज्यादा की टेस्टिंग की ऊंचाई हमने जुलाई में पा ली थी और यह सितंबर से दिसंबर तक प्रतिमाह 3 करोड़ से ज्यादा की टेस्टिंग के स्तर पर बना रहा। मगर, ढिलाई देखिए कि नया साल आते ही टेस्टिंग गिरकर जनवरी में 2 करोड़ 39 लाख रह गयी। फरवरी में यह 2 करोड़ से भी कम हो गयी। 17 मार्च तक का आंकड़ा 1 करोड़ 34 लाख टेस्टिंग का है। 

अगर फरवरी के मुकाबले मार्च में दुगुना होते कोरोना मरीजों की संख्या पर गौर करें, जिसका जिक्र कोरोना का दूसरा कहर दर्शाते हुए ऊपर किया गया है तो इसकी वजह भी टेस्टिंग में आयी यही कमी है। क्या यह जनता की ओर से की गयी ढिलाई है?

जनता ने हर बात मानी

आम जनता ने दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन झेला है। नौकरियां गंवाई हैं, तकलीफें सही हैं। जिन महीनों में लॉकडाउन सख्त था, टेस्टिंग तेज थी तब नये कोरोना मरीजों का आंकड़ा भी अधिकतम था। महीने के हिसाब से सबसे बुरा सितंबर 2020 रहा था, जब एक माह में अधिकतम 26.2 लाख नये कोरोना मरीज मिले थे। फिर अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में क्रमश: 18.73 लाख, 12.79 लाख और 8.23 लाख नये मरीज मिले। 

बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव के दौरान कोविड नियमों की धज्जियां उड़ीं। ये तसवीरें देशभर में आम लोगों को कोविड नियमों से दूर करने और लापरवाही के लिए प्रेरित करने वाली थीं। जिम्मेदार कौन?

‘कोरोनिल’ को लेकर ग़लत बयानी

कोरोना की दवा को लेकर भी सरेआम झूठ को प्रश्रय दिया गया। ‘कोरोनिल’ को कोरोना भगाने के लिए रामबाण बता रहे रामदेव ने ट्रायल से संबंधित दावे किए। बाद में इसे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा करार दिया गया। अब तक रामदेव दो बार दवा बेचने के लिए बाजार में गोता लगा चुके हैं। 

पहली बार सरकार ने रामदेव के दावों को परखा भी था लेकिन दूसरी बार खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी रामदेव के साथ दवा के लांचिंग समारोह में दिखे। डब्ल्यूएचओ से प्रमाण मिलने का दावा किया गया। 

जब जनता को ‘कोरोना भगाने वाला रामबाण’ मिल जाएगा तब क्यों वह डरे? प्रश्न यह है कि जब रामदेव की अचूक कोरोना निवारक दवाएं मौजूद हैं तो कोरोना भाग क्यों नहीं रहा है? अगर जनता पतंजलि की दवा खरीद नहीं पा रही है तो सरकार सब्सिडी देकर इन दवाओं को फ्री मे क्यों नहीं बंटवा देती? ‘जान है तो जहान है’- यही नारा पीएम मोदी ने दिया था। मगर, यह सब व्यर्थ है क्योंकि वास्तव में अगर ये राम बाण दवाएं होतीं तो कोरोना का दूसरा कहर आता ही क्यों?

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वैक्सीन के रहते क्यों बढ़ा कोरोना?

कोविशील्ड और कोवैक्सीन के रूप में दो किस्म की देसी कोरोना वैक्सीन भी देश में मौजूद हैं। जनवरी में 16 दिन में 31.27 लाख से ज्यादा लोगों ने, फरवरी में 1 करोड़ से ज्यादा लोगों ने और मार्च में 2 करोड़ से ज्यादा लोगों ने वैक्सीन ली है। अब तक 3.37 करोड़ से ज्यादा लोग वैक्सीन ले चुके हैं। 

भारत की 140 करोड़ की आबादी का यह महज 2.4 प्रतिशत है। लेकिन प्रश्न यह है कि कितने लोगों के वैक्सीन ले चुकने के बाद यह सुनिश्चित हो सकेगा कि अब कोरोना के संक्रमण का खतरा नहीं है? इस बाबत सरकार कोई जवाब लेकर सामने नहीं आयी है।

‘दवाई भी, कड़ाई भी’

ढिलाई सरकार की ओर से है। तब से है जब से गुजरात के अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ का आयोजन हुआ और अब तक है जब उसी मैदान का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम किया गया है। दवा के नाम पर जब-जब जो परोसा गया, जनता ने उसे स्वीकार किया है। ताली-थाली भी बजाई है, वैक्सीन भी लगवाई है। ऐसे में अपनी कमियां छिपाने के लिए कड़ाई की बात और अपनी सफलता जताने के लिए दवाई की बात ही नरेंद्र मोदी के ताजा मंत्र में है- ‘दवाई भी, कड़ाई भी’।

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प्रेम कुमार
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