चुनाव परिणाम को लेकर जनता का असल में रुख बताना मुश्किल है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में सर्वे से इतर परिणाम आए थे। छत्तीसगढ़ में कड़ा मुक़ाबला दिखाया जा रहा था, वहां बीजेपी बुरी तरह से हारी। वहीं, गुजरात में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी किसी तरह से शहरी इलाक़ों के दम पर जीतने में कामयाब रही थी और कांग्रेस अच्छा चुनाव लड़कर हारी थी। अब 2019 के लोकसभा चुनाव की ऐतिहासिक हार के बाद कांग्रेस बुरी तरह पस्त है।
कांग्रेस के लचर होने की एक प्रमुख वजह पार्टी की आंतरिक कलह है। लंबी कवायद के बाद भी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपना नेता नहीं चुन पाई। राहुल के इस्तीफ़े के बाद पार्टी में अध्यक्ष पद खाली हो गया। लंबे विचार-विमर्श और मंथन के बाद पार्टी ने सोनिया गाँधी को कार्यकारी अध्यक्ष चुना।
इसी तरह से कांग्रेस में महाराष्ट्र में भी जबरदस्त घमासान मचा हुआ है। अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, प्रतिभा पाटिल, शिवराज पाटिल, सुशील कुमार शिंदे सहित तमाम बड़े नाम वाला दल आज नेपथ्य में है। कांग्रेस के सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक शरद पवार थोड़ा बहुत मोर्चा संभाले हुए हैं। वहीं, शिवसेना से आकर कांग्रेस की राजनीति करने वाले संजय निरूपम नाराज हो गए।
टिकट बंटवारे से नाराज निरूपम ने घोषणा की कि कुछ सीटों को छोड़कर पार्टी की हर जगह जमानत जब्त होगी। उन्होंने पार्टी छोड़ने की धमकी भी दी। विधानसभा में नेता विपक्ष रहे राधा कृष्ण विखे पाटिल समेत कई बड़े नेता बीजेपी में शामिल हो गए।
खुर्शीद, सिंधिया की बयानबाज़ी
कांग्रेस के दो दिग्गज नेता पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार तिहाड़ में हैं। पार्टी ने चिदंबरम का तो साथ दिया है, लेकिन शिवकुमार की पूरी तरह उपेक्षा कर दी है और उन्हें स्थानीय नेता तक ही समेट दिया है।
पूरे विपक्ष की तरह से कांग्रेस के और भी तमाम नेता केंद्र सरकार की विभिन्न जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं। इनमें से कुछ समय-समय पर कांग्रेस के ख़िलाफ़ बयान देते रहते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस अपनी लोकप्रियता के निचले स्तर पर है। राहुल गाँधी जितना कांग्रेस को संभालने की कवायद कर रहे हैं, कांग्रेस का शीराज़ा बिखरता ही चला जा रहा है। हालांकि कांग्रेस अभी सामाजिक न्याय और वंचितों को हक़ दिलाने की लड़ाई लड़ती नज़र आ रही है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने ओबीसी, एससी, एसटी को नौकरियों में ज्यादा हक़ दिलाने की कवायद की। वहीं राजस्थान व छत्तीसगढ़ में पिछड़े वर्ग के नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया।
उत्तर प्रदेश में पार्टी कार्यकारिणी के गठन में न सिर्फ़ उत्तर प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पिछड़े वर्ग से बने हैं, बल्कि जिला अध्यक्षों में भी पिछड़े वर्ग और दलितों को महत्व दिया जा रहा है। पार्टी पूरी कवायद में है कि दलितों व पिछड़ों के जिस तबक़े ने बीजेपी का दामन थाम लिया है, उन्हें कांग्रेस के पाले में लाया जाए।
पार्टी की एकजुटता की कवायद भी बहुत ज़रूरी है। डूबते दल के आगे बढ़ने के लिए यह ज़रूरी है कि पार्टी एकजुटता को लेकर सख़्ती बरते। इस समय पार्टी जिस हाल में है, उसके पास खोने के लिए कुछ खास नहीं है।
जो सर्वे आये हैं, उनकी मानें तो हरियाणा और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस हारने वाली है। ऐसे में हरियाणा या महाराष्ट्र के किसी भी विद्रोही नेता को पार्टी से तत्काल 5 साल के लिये निकाल देना सबसे बेहतर रास्ता है। पार्टी हार ही रही है। ऐसे में विद्रोही रुख अपनाने वाले नेताओं को निकालकर अगर 10-15 सीटें और हार जाती है तो पार्टी की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है।
कांग्रेस को अनुशासन पर खास जोर देने की ज़रूरत है, जिससे नेताओं की बयानबाजियों की वजह से पार्टी में निराशा का माहौल न बने। देश में विपक्ष की उदासी व निराशा ने भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनावी जंग एकतरफा बना दी है। कांग्रेस उन बड़े से बड़े नेताओं को तत्काल निकाले, जो पार्टी के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं। तभी बीजेपी के ख़िलाफ़ कुछ सकारात्मक माहौल बनने की संभावना है।
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