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केंद्र सरकार की रिपोर्ट में पहली बार कहा गया है कि कोरोना वैक्सीन से एक व्यक्ति की मौत हुई है। यह रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत आने वाली एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्युनाइज़ेशन यानी एईएफ़आई कमेटी द्वारा दी गई है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि वैक्सीन के ख़तरे से ज़्यादा फ़ायदे हैं। कुछ ऐसी ही बात तब भी यूरोपीय मेडिसीन एजेंसी और डब्ल्यूएचओ ने भी कही थी जब ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून के थक्के जमने के मामले आने पर यूरोप के कुछ देशों में एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को रोक दिया गया था।
यूरोपीय देशों में ख़ून का थक्का जमने के जो मामले आए थे वह भी वैक्सीन के दुष्परिणामों में से एक है। हालाँकि इसके बारे में कहा गया कि लाखों लोगों में से एक में इस तरह के दुष्परिणाम सामने आए हैं। कुछ ऐसा ही भारत में आए दुष्परिणामों के बारे में भी कहा गया है।
एईएफ़आई कमेटी वैक्सीन के बाद होने वाले विपरीत असर की निगरानी करती है। इसने कहा है कि लाखों में से एक में गंभीर दुष्परिणाम के मामले सामने आ रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार 31 गंभीर दुष्परिणाम के मामलों का मूल्यांकन किया गया था। इसमें 28 लोगों की मौत हुई थी। इनमें से एक की मौत कोरोना वैक्सीन के दुष्परिणाम के कारण हुई है। 31 मार्च को एक 68 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई थी, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराकें ली थीं। और बाक़ी लोगों की मौत दूसरे कारणों से हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन लोगों को ऐनफलैक्सिस यानी वैक्सीन लेने के कुछ ही मिनटों में शरीर में हुए गंभीर दुष्परिणाम के लक्षण की शिकायत आई। दो अस्पताल में भर्ती होने के बाद ठीक हो गए जबकि 1 की मौत हो गई। कुल मिलाकर 31 गंभीर दुष्परिणामों में से 18 मामलों का वैक्सीन से कोई संबंध नहीं था। 7 मामले ऐसे थे जिसमें मरीज की स्थिति टीकाकरण के तुरंत बाद बिगड़ गई लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिनसे पता चले कि ऐसा टीके की वजह से हुआ।
मंत्रालय ने इस मामले में अपने बयान में कहा है कि किसी भी मरीज के गंभीर होने या फिर मौत हो जाने का सीधा संबंध टीकाकरण से नहीं निकाला जा सकता है।
बता दें कि भारत में भी कुछ ऐसे मामले आए थे जिसमें कोरोना टीके लगाने के बाद ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून के थक्के जमने की शिकायतें थीं। यह बात सरकारी पैनल ने ही पिछले महीने कही थी और ख़ुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ही इसकी जानकारी दी थी। टीकाकरण के बाद विपरीत प्रभावों पर नज़र रखने वाले पैनल ने कहा कि कोविड वैक्सीन के बाद रक्तस्राव और थक्के जमने के मामले मामूली हैं और ये उपचार किए जाने के अपेक्षा के अनुरूप हैं।
पैनल ने कहा था कि उसने 700 में से 498 'गंभीर मामलों' का अध्ययन किया और पाया कि केवल 26 मामले थ्रोम्बोम्बोलिक मामले के रूप में रिपोर्ट किए गए थे। इसको आम भाषा में कह सकते हैं कि ख़ून के थक्के जमने के इतने घातक मामले आए थे।
इसी साल मार्च में एक समय ऐसा था जब एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन लगाने के बाद ख़ून के थक्के जमने को लेकर यूरोप के कई देशों ने वैक्सीन पर रोक लगा दी थी। स्वास्थ्य संगठन और यूरोपीय मेडिसीन एजेंसी यानी यूएमए द्वारा बार-बार एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को सुरक्षित बताए जाने के बाद भी जर्मनी, इटली, फ्रांस, डेनमार्क, नॉर्वे, आइसलैंड, स्पेन, पुर्तगाल, स्लोवेनिया और लातविया जैसे देशों ने तात्कालिक तौर पर रोक लगाई थी। लेकिन जब उन देशों में कोरोना के मामले बढ़ने लगे तो इसके टीके को अधिकांश देशों ने फिर से लगाना शुरू कर दिया।
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