मोदी सरकार ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने का विरोध किया है। इसने बलात्कार पर मौजूदा उन कानूनों का समर्थन किया है जो पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों को अपवाद बनाते हैं। इसी क़ानून की जगह पर मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर की गई हैं।
इन याचिकाओं का सरकार ने विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट के सामने दायर अपने जवाब में केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा कानूनी से ज़्यादा एक सामाजिक चिंता का विषय है और कोई भी निर्णय लेने से पहले इससे जुड़े लोगों के साथ व्यापक परामर्श की ज़रूरत है। केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद खंड को उसकी संवैधानिक वैधता के आधार पर ख़त्म करने से विवाह संस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
धारा 375 (आईपीसी) के अपवाद 2 के तहत किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, यदि पत्नी नाबालिग न हो, बलात्कार नहीं है। यह आईपीसी के तहत प्रावधान था, जिसे अब निरस्त कर दिया गया है और इसकी जगह पर भारतीय न्याय संहिता आ गई है। न्याय संहिता में भी इस प्रावधान को रखा गया है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, 'विवाह में पति-पत्नी के बीच उचित यौन संबंध बनाने की निरंतर अपेक्षा होती है। इसलिए, विवाह को अन्य स्थितियों से अलग माना जाना चाहिए।' इसके साथ ही इसने यह भी कहा कि विवाह महिलाओं की सहमति की अवधारणा को खत्म नहीं करता है, लेकिन बलात्कार के लिए पति को दंडित करना उचित उपाय नहीं है।
अपने हलफनामे में सरकार ने कहा कि 'वैवाहिक बलात्कार से संबंधित मामलों का देश में बहुत दूरगामी सामाजिक-कानूनी प्रभाव होगा और इसलिए, सख्त कानूनी दृष्टिकोण के बजाय एक व्यापक दृष्टिकोण की ज़रूरत है।'
अन्य कानूनी उपायों का हवाला देते हुए केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को खत्म करना न्यायपालिका का काम नहीं है।
केंद्र ने तर्क दिया कि वैवाहिक दुर्व्यवहार के पीड़ितों के लिए मौजूदा क़ानूनों के तहत पहले से ही पर्याप्त कानूनी उपाय मौजूद हैं, और अपवाद को खत्म करने से विवाह संस्था अस्थिर हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट फ़िलहाल भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता पर दिल्ली उच्च न्यायालय के विभाजित फ़ैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा है। यह अपवाद पतियों को विवाह में बलात्कार के आरोप से छूट देता है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक विभाजित फैसला सुनाया था, जिसमें न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने प्रावधान को असंवैधानिक घोषित किया था, जबकि न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने इसे बरकरार रखा था।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें अपनी पत्नी पर यौन हमला करने और उसे सेक्स स्लेव के तौर पर रखने के आरोपी एक व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था। कार्यकर्ता रूथ मनोरमा सहित याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि वैवाहिक बलात्कार अपवाद महिलाओं की सहमति, शारीरिक स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन करता है, इसलिए इसे हटाने की मांग की गई है।
बता दें कि शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी, 2023 को आईपीसी के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पत्नी के वयस्क होने पर पति को जबरन यौन संबंध बनाने पर अभियोजन से सुरक्षा देता है।
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