इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर ने कोरोना मरीज़ों के इलाज में लगे स्वास्थ्य कर्मियों की तरह ही कुछ ज़रूरी सेवाओं में लगे लोगों को फ़्रंटलाइन वर्कर के तौर पर पहचान की है। इसमें चेक प्वाइंट पर तैनात पुलिस कर्मी, बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड, बस ड्राइवर व दूसरे स्टाफ़, सब्ज़ी बेचने वाले, फ़ार्मासिस्ट शामिल हैं। आईसीएमआर ने कहा है कि उन स्वास्थ्य कर्मियों और प्रवासी मज़दूरों की तरह ही इन सभी में फ्लू जैसे लक्षण दिखने पर जाँच की जानी चाहिए।
बता दें कि जब से प्रवासी मज़दूरों का घर लौटना शुरू हुआ है तब से उनके गृह राज्यों में संक्रमण के मामले बढ़ गए हैं और इसलिए प्रवासी मज़दूरों में ऐसे लक्षण दिखने पर टेस्ट किए जाने को ज़रूरी किया गया है।
'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, 18 मई को टेस्ट करने की रणनीति में बदलाव किया गया था और कहा गया था कि कोरोना वायरस को नियंत्रित करने में जुटे सभी स्वास्थ्य कर्मियों/फ्रंटलाइन वर्कर्स में फ्लू जैसे लक्षण दिखने पर टेस्ट किया जाना ज़रूरी है। फ्लू जैसे लक्षणों में बुखार, गले में खराश, शरीर में दर्द शामिल हैं। हालाँकि लक्षण दिखने पर स्वास्थ्य कर्मियों की जाँच किए जाने का प्रावधान तो शुरुआत से ही था, लेकिन अब फ़्रंटलाइन वर्कर्स को इसमें जोड़ दिया गया है।
माना जा रहा है कि ताज़ा फ़ैसले से आईसीएमआर परीक्षण क्षमता को 2 लाख प्रति दिन करने की तैयारी में है। ये अधिकतर टेस्ट पूर्वी राज्यों में होने की उम्मीद है जहाँ बुनियादी ढांचा का अभाव है। बिहार और ओडिशा में 17-17 टेस्टिंग लैबोरेट्रीज़ स्थापित की जा रही हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में 27 और पश्चिम बंगाल में 36 प्रयोगशालाएँ स्थापित की जाएँगी।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक दिन पहले ही छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, यूपी और एमपी के साथ बैठक की थी जिसमें राज्यों से मौजूदा स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने को कहा था।
बता दें कि भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या 1,51,767 हो गयी है और अब तक कुल 4,337 लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमित लोगों में से 83,004 एक्टिव केस हैं। अभी तक तो महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली जैसे राज्यों में सबसे ज़्यादा कोरोना संक्रमण का असर है। लेकिन अब प्रवासी मज़दूरों के लौटने के बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में संक्रमण तेज़ी से फैलने लगा है।
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