भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को आयात करने के प्रस्ताव को ब्राज़ील में हरी झंडी दे दी गई है, लेकिन कुछ शर्तें भी लगा दी गई हैं। यह अहम इसलिए है कि पहले ब्राज़ील ने कोवैक्सीन के आयात को मंजूरी देने से इसलिए इनकार कर दिया था कि जिस भारतीय प्लांट में इस वैक्सीन को बनाया जाना था इसको लेकर आपत्ति थी कि वह गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी) यानी निर्माण प्रक्रिया की गुणवत्ता को पूरा नहीं करता है।
बता दें कि कोवैक्सीन को अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी अपनी ओर से मंजूरी नहीं दी है। इसी कारण कई देशों में अभी तक इस टीके लेने वाले को यात्रा की स्वीकृति नहीं दी जा रही है। अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने तो कह दिया है कि कोवैक्सीन या स्पुतनिक वी के टीके लगाए छात्रों को फिर से डब्ल्यूएचओ द्वारा मंजूर किसी टीके को लगाने के बाद ही अनुमति दी जाएगी।
इस बीच दुनिया में भारत के बाद सबसे ज़्यादा कोरोना प्रभावित देश ब्राज़ील ने अब कोवैक्सीन को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही उसने रूस की स्पुतनिक वी वैक्सीन को भी मंजूरी दी है।
ब्राजील की राष्ट्रीय स्वास्थ्य निगरानी एजेंसी- एनविसा ने जो मंजूरी दी है उसके अनुसार शुरुआत में कोवैक्सीन की 4 लाख खुराक ब्राज़ील में आयात की जाएगी। 'पीटीआई' की रिपोर्ट के अनुसार, वैक्सीन की इस तय खुराक के बाद ब्राज़ील की वह एजेंसी आँकड़ों का विश्लेषण करेगी। इसके बाद यदि नतीजे अनुकूल रहे तो आगे की खुराकों के लिए ऑर्डर दिया जाएगा।
एनविसा के सामने पेश की गई ताज़ा रिपोर्ट के आधार पर शुक्रवार को कोवैक्सीन को मंजूरी देने का यह फ़ैसला लिया गया। लेकिन साथ ही यह शर्त लगाई गई कि नियंत्रित तरीक़े से ही इसका इस्तेमाल किया जाएगा।
अनविसा ने कहा कि भारत बायोटेक ने एक पर्याप्त कार्य योजना प्रस्तुत की और जीएमपी अनुरोध के प्रमाणीकरण से संबंधित सभी लंबित मसलों को पूरा किया।
मंजूरी देने के साथ यह शर्त लगाई गई है कि ब्राज़ील के लिए तैयार की जाने वाली भारत बायोटेक की वैक्सीन गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस को ध्यान में रखते हुए तैयार की जानी जाहिए।
फ़रवरी में भारत बायोटेक ने घोषणा की थी कि उसने ब्राज़ील सरकार के साथ 2 करोड़ कोवैक्सीन के टीके के लिए क़रार किया है। यह वह समय था जब कोवैक्सीन को भारत में भी 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में मंजूरी मिली थी। मार्च महीने के मध्य में भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन कोवैक्सीन 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में नहीं रही थी।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई ने तब क्लिनिकल ट्रायल मोड का वह ठप्पा हटा दिया। यानी इसके साथ ही कोवैक्सीन को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की कोविशील्ड की तरह ही सामान्य रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा। 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' टैग हटाने का मतलब था कि उस वैक्सीन को लगवाने से पहले लोगों को सहमति वाले एक फ़ॉर्म पर दस्तख़त करने की ज़रूरत नहीं रही।
'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में सहमति वाले दस्तख़त की ज़रूरत इसलिए थी कि भारत बायोटेक की इस कोवैक्सीन को तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े के बिना ही आपात मंजूरी दी गई थी और इसलिए कहा गया था कि इसे क्लिनिकल ट्रायल मोड में ही आपात इस्तेमाल किया जा सकता है। तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े के बिना ही मंजूरी दिए जाने पर काफ़ी विवाद भी हुआ था।
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