क्या कहा है अदालत ने?
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि इस देश में कोई भी संस्थान सुरक्षित नहीं है, भले ही वह न्यायपालिका ही क्यों न हो। उसने कहा है कि भारत की छवि अपराध और बलात्कार वाले देश की बन गई है, दाभोलकर, पानसरे हत्या मामले की जाँच में ढिलाई से हाईकोर्ट नाराज़ है, देश ऐसी 'दुखद स्थिति' का सामना कर रहा है, जहां कोई भी किसी से बात नहीं कर सकता या उन्मुक्त नहीं घूम सकता है, अधिकारी इस जांच को ज़रूरी नहीं समझ रहे हैं।बेबाक टिप्पणी
इस मामले में जाँच कितनी धीमी गति से हो रही है, इसका अंदाज कोर्ट की उस टिप्पणी से होता है, जिसमें उसने मुंबई बम धमाकों 1993 के अभियुक्त अब्दुल करीम टुंडा के आत्मसमर्पण की ओर इशारा किया। टुंडा के ख़िलाफ़ 41 मामले दर्ज थे, 2013 में वह 70 साल की उम्र में पाकिस्तान से नेपाल के रास्ते भारत आते हुए पुलिस तक पँहुच गया। यह एक तरह की स्वैच्छिक गिरफ़्तारी थी।“
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज देश की छवि ऐसी बन गई है कि विदेश में रहने वाले लोग यही सोचते हैं कि भारत में सिर्फ अपराध और बलात्कार ही होते हैं।
दाभोलकर, पानसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट की टिप्पणी
पक्षपाती सरकार?
अब सवाल यह उठता है की इन मामलों में सरकारों की भूमिका कंहाँ तक संदिग्ध या पक्षपाती है? क्योंकि दाभोलकर-पानसरे मामले में अदालत ने यह भी एहसास दिलाया की किस तरह से कर्नाटक पुलिस इसी प्रकार के गौरी लंकेश हत्याकाण्ड में अभियुक्तों तक पँहुचकर, उन्हें गिरफ़्तार कर पूरी साजिश का पटाक्षेप कर देती है। महाराष्ट्र पुलिस या सम्बंधित जाँच एजेंसियाँ इस बात को लेकर समय बर्बाद कर रही हैं कि दाभोलकर पर जो गोलियाँ दागी गईं, उन्हें जाँच के लिए स्कॉटलैंड यार्ड के पास भेजा जाए या गुजरात। बड़ी बात तो यह है कि कुछ महीनों बाद जाँच एजेंसियाँ न्यायालय को बताती है कि स्कॉटलैंड यार्ड और भारत के बीच इस बात पर कोई क़रार न होने की वजह से गोलियों की जाँच गुजरात में होगी।अदालत ने जाँच एजेंसियों से पूछा कि क्या अधिकारियों के बीच सामंजस्य की कमी है या फिर अधिकारियों ने अपनी जाँच मात्र मोबाइल फ़ोन रिकॉर्ड तक सीमित कर दी है।
क्या हम लोकतंत्र की आड़ में एक ऐसे भीडतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं, जो राजनीतिक दलों द्वारा नियंत्रित होगा और क़ानून व्यवस्था को धता बताएगा? दाभोलकर, पानसरे की हत्याओं को महज हत्याकांड के नज़रिये से यदि हम देखेंगें तो एक बड़ी भूल की तरफ बढेंगें।
कट्टर हिन्दू संगठनों की भूमिका?
अंधश्रद्धा के ख़िलाफ़ अलख जगाने वाले महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक नरेन्द्र दाभोलकर की पुणे में 20 अगस्त 2013 को उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वह सुबह की सैर के लिए निकले थे। संदिग्ध मोटरसाइकिल पर आए थे और गोली मार कर फ़रार हो गए थे। राज्य पुलिस और सीआईडी जांच में लेटलतीफ़ी पाए जाने पर मुंबई उच्च न्यायालय ने मई 2014 में मामला सीबीआई को सौंप दिया था। सीबीआई ने इस संबंध में दो जून 2014 को मामला दर्ज किया। सीबीआई द्वारा दो साल बाद इस मामले में पहली गिरफ़्तारी हुई। सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति से जुडे डॉक्टर वीरेंद्र तावड़े को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। हत्या में इस्तेमाल मोटरसाइकिल, बंदूक का इंतजाम करने का आरोप भी तावड़े पर है। पेशे से इएनटी डॉक्टर वीरेंद्र तावड़े साल 2001 में चिकित्सा का पेशा छोड़कर सनातन संस्था और हिन्दू जन जागृति समिति से जुड़ गए, जो खुलेआम डॉ नरेंद्र दाभोलकर का विरोध करती थी।अभियुक्त का खुलासा
डॉ वीरेंद्र तावड़े डॉ नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड के अलावा कोल्हापुर के गोविंद पानसरे हत्याकांड में भी अभियुक्त हैं। तावड़े की गिरफ़्तारी के बाद भी जाँच आगे बढ़ नही पा रही थी। पर महाराष्ट्र एटीएस को उस समय बड़ी सफलता मिली जब 18 अगस्त 2018 को नालासोपारा और पुणे से गिरफ्तार 3 में से एक अभियुक्त शरद कलस्कर ने नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में शामिल होने की बात क़बूली है। इतना ही नहीं, उससे पूछताछ के आधार पर दाभोलकर हत्याकांड में एक और अभियुक्त का खुलासा हुआ है। एटीएस ने सचिन नाम के उस अभियुक्त को पकड़कर सीबीआई के हवाले कर दिया है। सीबीआई अभी भी इस गुत्थी को सुलझा पाने में पूरी तरह सफल नहीं हुई है। वह तीनों अभियुक्तों के ख़िलाफ़ पूरक आरोप पत्र दायर करने की तैयारी कर रही है। वंही सीपीएम नेता और तर्कवादी पानसरे की 16 फरवरी 2015 को पश्चिमी महाराष्ट्र में कोल्हापुर स्थित उनके आवास के पास गोली मार कर की गयी हत्या का मामला भी उलझा हुआ ही है। 30 अगस्त, 2015 को एम. एम. कलबुर्गी की हत्या कर्नाटक के धारवाड़ में हत्या और 5 सितंबर 2017 को मशहूर पत्रकार और लेखिका गौरी लंकेश की बंगलुरु स्थित उनके आवास पर हत्या ये सभी एक कड़ी से जुडी हैं। इनके पीछे प्रमुख रूप से एक ही संस्था का हाथ होना सामने आया है।डॉक्टर दाभोलकर की हत्या की जाँच हाईकोर्ट की निगरानी में जारी है। इसमें अब तक दो दर्जन बार मुक़दमे की तारीख़ें पड़ चुकी हैं, 150 से ज़्यादा पन्नों का ऑर्डर हो चुका है। लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला है।
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