मुंबई हाई कोर्ट ने युक्तिवादी नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्या की जाँच में देरी होने पर जाँच एजेन्सियों को जिस तरह फटकार लगाई है, वह एक साथ कई सवालों को जन्म देती है। सवाल यह है कि ये एजेन्सियाँ क्यों इन गंभीर हत्या मामलों की जाँच में कोताही बरत रही हैं। क्या वे जान बूझ कर देर कर रही हैं या जाँच करना उनके बूते की बात नहीं है। ये दोनों ही मामले इन जाँच एजेन्सियों के ख़िलाफ़ तो जाती ही है, यह भी साफ़ करती है कि देश किस दिशा में जा रहा है। अदालत ने समय समय पर जो बातें कहीं हैं, वे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के टूटने की ओर संकेत करती हैं। दाभोलकर और पानसरे मामले में जांच एजेंसियों के रुख को देखते हुए उनके परिजनों व सहयोगियों ने अदालत की शरण ली और माँग रखी की जांच कोर्ट की निगरानी में की जाय।