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असमः किसके लिए जंगल में तेल-गैस खोजने की अनुमति दी गई

केंद्र सरकार के वन्यजीव पैनल ने असम के जोरहाट जिले में तेल और गैस की खोज करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। पूरी दुनिया में इस जगह को हुल्लोंगापार गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य के रूप में जाना जाता है और पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में इस खोज की अनुमति दी गई है। सरकारी बैठक का जो ब्योरा सामने आया है, उसमें केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव की अध्यक्षता में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) की स्थायी समिति ने 21 दिसंबर को अपनी बैठक के दौरान वेदांत (वेदांता) समूह के केयर्न ऑयल एंड गैस के प्रस्ताव को मंजूरी दी। असम में बीजेपी की सरकार है।

असम के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) और मुख्य वन्यजीव वार्डन ने "राष्ट्रीय हित" का हवाला देते हुए पिछले साल अगस्त में परियोजना के लिए मंजूरी की सिफारिश की थी। यह अजीबोगरीब है कि जिसके जिम्मे वन संरक्षण का काम है, उसी ने इसकी सिफारिश की थी।


केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति ने भी पिछले साल 27 अगस्त को अपनी बैठक के दौरान सैद्धांतिक मंजूरी दे दी थी। यानी वेदांता समूह की फाइल कहीं रुकी नहीं।
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एनबीडब्ल्यूएल बैठक के विवरण के अनुसार, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) और असम वन विभाग के अधिकारियों की एक टीम ने 15 नवंबर को अभयारण्य से लगभग 13 किमी दूर स्थित परियोजना स्थल का निरीक्षण किया ।

केंद्र सरकार की निरीक्षण कमेटी ने पाया कि खोजपूर्ण ड्रिलिंग से कम से कम नुकसाना होगा।


इसके बावजूद अनुमति

हालांकि कमेटी ने नुकसान की बात अपनी रिपोर्ट में लिखी। लेकिन वेदांता समूह ने लिखित आश्वासन दिया है कि साइट पर कोई व्यावसायिक ड्रिलिंग नहीं की जाएगी। इस भरोसे पर अनुमति दे दी गई। व्यावसायिक ड्रिलिंग का दायरा व्यापक होता है। वेदांता समूह उसका दुरुपयोग नहीं करेगा, शायद सरकार ने पहले से ही अनुमान लगा लिया और अनुमति दे दी गई।
हालांकि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जब हाइड्रोकार्बन निकाला जायेगा तो उसके बाद अगला कदम कारोबार के हिसाब से ड्रिलिंग हो सकती है। यानी तेल-गैस खोज की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम कहलाता है।
अधिकारियों ने कहा कि वेदांता समूह ने प्रतिबद्धता जताई है कि साइट पर खोज सिर्फ हाइड्रोकार्बन भंडार की पहचान के लिए होगा। यदि भंडार की खोज की जाती है, तो कोई भी खुदाई ईएसजेड के बाहर से की जायेगा। यह अंडरटेकिंग या प्रतिबद्धता अजीबोगरीब है। तेल-गैस का भंडार मिलने पर उसकी खुदाई ईएसजेड इलाके से बाहर होगी। क्या इससे वहां के गिब्बन वन्य जीवों पर असर नहीं पड़ेगा। 

परियोजना स्थल असम-नागालैंड सीमा पर एक विवादित क्षेत्र में स्थित है। असम के जंगल का यह इलाका नागालैंड के जंगल से जुड़ा हुआ है। इन जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदायों ने इसका विरोध किया है। उनका कहना है कि इससे तमाम पर्यावरणीय खतरे पैदा होंगे। कई दुर्लभ प्रजातियों के गिब्बन गायब हो सकते हैं।


अधिकारियों ने कहा कि स्थानीय समुदायों ने टीम को सूचित किया कि ग्राम परिषद और नागालैंड सरकार की अनुमति के बिना किसी भी ड्रिलिंग कार्य की अनुमति नहीं दी जाएगी।
हुल्लोंगापार गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य 20.98 वर्ग किमी में फैला है, जबकि इसका ईएसजेड 264.92 वर्ग किमी में फैला है। बड़ा ईएसजेड अभयारण्य, डिसोई वैली रिजर्व फॉरेस्ट और नागालैंड के वन क्षेत्रों के बीच कनेक्टिविटी देता है। यह कनेक्टिविटी क्षेत्र में पाए जाने वाले प्राइमेट्स की सात प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण है। यानी जंगल का बड़ा इलाका दोनों राज्यों को जोड़ता है।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने जो चिंता इस इलाके को लेकर जताई है। उनमें से प्रमुख हैंः
  • वन्य जीवों का विनाश: ड्रिलिंग कार्यों के लिए वन भूमि के बड़े हिस्से को साफ़ करने की जरूरत होती है, जिससे वन जीवों का घर छिन्नभिन्न हो सकता है। वन्यजीवों का विस्थापन उनकी मौत का खतरा पैदा करता है।
  • प्रदूषण जोखिम: तेल और गैस निकालने या खुदाई में ऐसे केमिकल का इस्तेमाल शामिल होता है जो आस-पास के कुदरती झीलों को प्रदूषित कर सकता हैं। इससे वन्यजीव और जंगल में रहने वाला आदिवासी समुदाय दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
  • शोर और रोशनी नुकसानदेह: मशीनरी, वाहनों और ड्रिलिंग कार्यों की वजह से गिन और रात में अलग-अलग समय पर निकलने जंगली वन्य जीवों के कुदरती व्यवहार में बाधा डालेंगे। इससे दशकों से चल रहे संरक्षण प्रयासों को यहां धक्का लगेगा।  
अधिकारियों ने स्वीकार किया कि यह इलाका पहले से ही मानवीय गतिविधियों के कारण दबाव में है। अभयारण्य से होकर गुजरने वाली एक रेलवे लाइन का भी विद्युतीकरण किया जाना तय है, यह प्रस्ताव भी सरकार की स्थायी समिति ने मंजूर किया है।
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असम के वन्यजीव अभयारण्य में तेल और गैस खोजपूर्ण ड्रिलिंग की अनुमति देने का निर्णय विकास और संरक्षण के बीच चल रहे संघर्ष को बताता है। यानी विकास जरूरी है या फिर पर्यावरण संक्षण। परियोजना आर्थिक लाभ और ऊर्जा सुरक्षा का वादा करती है। लेकिन यह देश के सबसे क़ीमती ईको सिस्टम में से एक के लिए महत्वपूर्ण जोखिम भी पैदा करती है। लंबे समय में यहां के ईको सिस्टम की सेहत को नुकसान पहुंचेगा।
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क़मर वहीद नक़वी
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