पश्चिम बंगाल के विश्व भारती विश्वविद्यालय ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को नोटिस क्यों जारी कर दिया? इस सवाल का जवाब अमर्त्य सेन की प्रतिक्रिया से भी कुछ हद तक मिल सकता है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार सेन ने विश्वभारती पर निशाना साधते हुए बुधवार को कहा कि उन्हें समझ नहीं आता कि केंद्रीय विश्वविद्यालय अचानक से इतना सक्रिय क्यों हो गया है। उन्होंने कहा कि उन्हें वहाँ (शांति निकेतन) से भगाने की कोशिश की जा रही है।
उनकी यह प्रतिक्रिया इसलिए आई है क्योंकि विश्व भारती ने मंगलवार को अमर्त्य सेन को नोटिस जारी कर शांति निकेतन में करीब 7.6 कट्ठा जमीन वापस करने को कहा। विश्वविद्यालय का दावा है कि यह उनके परिवार के स्वामित्व वाली संपत्ति का हिस्सा नहीं है।
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार अमर्त्य सेन केंद्रीय विश्वविद्यालय के इस तर्क का खंडन करते हैं कि ये 7.6 कट्ठे 75 कट्ठों के अतिरिक्त हैं, जिन्हें विश्वभारती ने 1943 में उनके दिवंगत पिता आशुतोष सेन को पट्टे पर दिया था। इस संपत्ति को 2006 में सेन के नाम से म्यूटेशन किया गया। म्यूटेशन तब हुआ जब नोबेल पुरस्कार विजेता ने तत्कालीन विश्वभारती के कुलपति को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि 99 साल के लीजहोल्ड को उनके नाम पर स्थानांतरित कर दिया जाए। विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
लेकिन विश्वभारती एस्टेट कार्यालय के प्रभारी संयुक्त रजिस्ट्रार द्वारा जारी ताज़ा नोटिस में कहा गया है कि सेन को कथित रूप से अवैध रूप से कब्जा की गई "अतिरिक्त 13 डिसमिल" ज़मीन जल्द से जल्द सौंपने चाहिए।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने जोर देकर कहा कि शांति निकेतन में उनके पास जो जमीन है, उनमें से अधिकांश को उनके पिता ने 1940 के दशक में बाजार से खरीदा था, जबकि कुछ अन्य भूखंडों को पट्टे पर लिया था।
रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'यह मेरा आवास है जो 1940 के दशक में विश्वभारती से पट्टे पर ली गई जमीन पर बनाया गया था। जमीन हमें 100 साल के लिए पट्टे पर दी गई थी। कुछ जमीन मेरे पिता ने सभी नियमों और विनियमों का पालन करते हुए बाजार से खरीदी थी।' बता दें कि विश्व भारती एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है।
वैसे, अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन अपनी खुली राय रखने के लिए लगातार सुर्खियों में रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि 2024 का चुनाव बीजेपी के पक्ष में एकतरफा नहीं होने जा रहा है। इस चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों की खास भूमिका होगी।
अमर्त्य सेन ने पिछले साल एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि इस समय भारत के सामने सबसे बड़ा संकट 'राष्ट्र के पतन' का है। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि वह देश में असाधारण विभाजन देख रहे हैं। उन्होंने गिरफ़्तारियों के तौर-तरीक़ों पर सवाल उठाए। इसके साथ ही नफ़रत के माहौल को लेकर चिंता जताई थी।
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