loader

इलाहाबाद बार: जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर का विरोध, महाभियोग की मांग क्यों?

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले का कड़ा विरोध किया है, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में तबादले की सिफारिश की गई। यह विवाद तब शुरू हुआ जब जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगने के बाद वहाँ से भारी मात्रा में जली हुई नकदी बरामद हुई। बार एसोसिएशन ने तबादले को अस्वीकार्य बताते हुए न केवल तबादले का विरोध किया, बल्कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग और सीबीआई-ईडी जाँच की माँग भी उठाई है। आखिर यह मामला क्या है और बार एसोसिएशन का ऐसा रुख क्यों है?

24 मार्च को प्रयागराज में हुई जनरल हाउस मीटिंग में इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने साफ़ कहा, 'हम जस्टिस यशवंत वर्मा का तबादला यहाँ किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेंगे। न आज, न भविष्य में।' उन्होंने 11 प्रस्ताव पारित किए, जिनमें मुख्य माँग यह थी कि मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना सीबीआई और ईडी को जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने और जाँच शुरू करने की इजाजत दें। तिवारी ने तर्क दिया कि अगर कोई राजनेता या नौकरशाह इस तरह के मामले में शामिल होता, तो तुरंत कार्रवाई होती। उन्होंने कहा, 'यह घटना न्यायिक कार्य का हिस्सा नहीं है, इसलिए सामान्य क़ानूनी प्रक्रिया लागू होनी चाहिए।'

ताज़ा ख़बरें

इसके अलावा तिवारी ने जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की माँग की। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार उनका कहना था, 'सरकार को तुरंत महाभियोग शुरू करना चाहिए ताकि सबूतों को नष्ट करने की कोई कोशिश न हो सके।' उन्होंने यह कहते हुए कॉलेजियम सिस्टम पर भी सवाल उठाए कि यह 'अच्छे संबंधों' वाले लोगों को मौक़े देता है, जो न्यायिक नियुक्तियों में निष्पक्षता की कमी को दिखाता है। पिछले हफ्ते भी बार ने मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखकर कहा था कि 'इलाहाबाद हाई कोर्ट कोई कचरे की पेटी नहीं है।'

सीजेआई संजीव खन्ना और चार वरिष्ठतम जज वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 20 और 24 मार्च की बैठकों में जस्टिस वर्मा के तबादले की सिफ़ारिश की। कॉलेजियम ने इसे प्रशासनिक निर्णय बताया और साफ़ किया कि यह नकदी बरामदगी से जुड़ी इन-हाउस जाँच से अलग है। दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय ने इस मामले की जाँच शुरू की है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि तबादले का प्रस्ताव जाँच के नतीजों पर निर्भर नहीं है। इससे यह संकेत मिलता है कि यह क़दम जस्टिस वर्मा को सजा देने के बजाय स्थिति को संभालने की कोशिश हो सकता है।

जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे उनकी छवि ख़राब करने की साज़िश बताया। दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में उन्होंने कहा, 'न तो मेरे परिवार ने और न ही मैंने उस जगह पर कोई नकदी रखी थी। आग लगने के वक़्त मेरी बेटी और निजी सचिव ने फायर ब्रिगेड को बुलाया था। आग बुझने के बाद जब लोग वापस आए, तो वहाँ कोई नकदी नहीं दिखी।' 
जस्टिस वर्मा का दावा है कि यह सब उन्हें बदनाम करने की कोशिश है, लेकिन अभी तक कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है जो उनके पक्ष को पुख्ता करे।
राज्यसभा स्पीकर जगदीप धनखड़ ने सीजेआई खन्ना की तारीफ़ करते हुए कहा कि यह पहली बार है जब स्वतंत्रता के बाद एक मुख्य न्यायाधीश ने सभी तथ्यों को सार्वजनिक किया। उन्होंने इसे 'सही दिशा में क़दम' बताया और कहा, 'सीजेआई की सतर्कता और समिति का गठन सराहनीय है। न्यायपालिका और विधायिका जैसे संस्थानों का आंतरिक तंत्र जितना कुशल और त्वरित होगा, जनता का भरोसा उतना ही मज़बूत होगा।' लेकिन बार एसोसिएशन का मानना है कि तबादला कोई समाधान नहीं है। उनका कहना है कि यह क़दम न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों की प्रणाली में खामियों को उजागर करता है, जिससे 'क़ानून के शासन में जनता का विश्वास कमजोर' हुआ है।
देश से और ख़बरें

यह घटना कई स्तरों पर सवाल उठाती है। नकदी की बरामदगी सही है तो यह न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का गंभीर संकेत है। यदि यह साज़िश है तो यह न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला है। बार एसोसिएशन का तबादले का विरोध और महाभियोग की माँग इस बात की ओर इशारा करती है कि वे इसे हल्के में नहीं लेना चाहते। उनका तर्क है कि तबादला महज एक 'डंपिंग ग्राउंड' की तरह इलाहाबाद हाई कोर्ट का इस्तेमाल करने जैसा है, जो न तो समस्या का हल है और न ही जवाबदेही सुनिश्चित करता है।

सीबीआई-ईडी जाँच और महाभियोग की बार की मांग यह संकेत देती है कि यह विवाद अभी ख़त्म नहीं हुआ है। अगर जाँच में नकदी की मौजूदगी साबित होती है तो यह सवाल उठेगा कि क्या तबादला ही काफ़ी है या इससे न्यायपालिका की साख को और नुक़सान होगा।

ख़ास ख़बरें

जस्टिस यशवंत वर्मा का तबादला और नकदी विवाद न्यायिक व्यवस्था के लिए एक चुनौती बन गया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का विरोध और उनकी माँगें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि यह केवल एक जज का मामला नहीं, बल्कि कॉलेजियम सिस्टम और न्यायिक पारदर्शिता का सवाल है। यदि जाँच निष्पक्ष और निर्णायक नहीं हुई तो जनता का भरोसा डगमगा सकता है। यह मामला कोर्ट, सरकार और जनता के बीच एक बड़े टकराव की ओर बढ़ सकता है, जिसका असर लंबे समय तक दिखेगा। 

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें