भारत का अडानी समूह कथित गंभीर वित्तीय घोटाले में एक बार फिर फंसता हुआ नजर आ रहा है। द गार्जियन अखबार ने अपनी एक रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि उसने विदेश में कुछ ऐसे वित्तीय रेकॉर्ड के दस्तावेज देखें हैं, जिसमें इस अरबपति भारतीय परिवार ने गुप्त रूप से खुद की कंपनियों के शेयर खरीदकर भारतीय शेयर बाजार में सैकड़ों मिलियन डॉलर का निवेश किया। अडानी समूह भारत के पीएम मोदी के सबसे नजदीकी होने के कारण भारत का सबसे पावरफुल समूह है।
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संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग परियोजना (OCCRP) द्वारा सामने लाए गए और गार्जियन द्वारा देखे गए दस्वाजों के अनुसार, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 2014 की शुरुआत में ही अडानी समूह की कथित संदिग्ध शेयर बाजार हेराफेरी के सबूत भारत सरकार को सौंपे थे। लेकिन कुछ महीनों बाद नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में आ गए और सेबी की दिलचस्पी अडानी समूह के शेयर बाजार हेराफेरी की जांच में खत्म हो गई। 2015 से अडानी समूह की संपत्ति बढ़ती चली गई।
2022 में अडानी समूह के संस्थापक, गौतम अडानी भारत के सबसे अमीर और दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स बन गए थे, जिनकी संपत्ति $120 बिलियन से अधिक थी। लेकिन जनवरी 2023 में न्यूयॉर्क की फाइनेंस रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर "कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ी धोखाधड़ी" करने का आरोप लगाया गया था।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट में भी आरोप लगाया गया कि अडानी समूह ने खुद के शेयरों को खरीदने के लिए ऑफशोर कंपनियों का इस्तेमाल किया था। इससे समूह का बाजार मूल्यांकन 2022 में 288 बिलियन डॉलर के टॉप पर पहुंच गया। हालांकि अडानी समूह ने हिंडनबर्ग के दावों का खंडन किया। लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का असर यह हुआ कि अडानी समूह का बाजार मूल्य 100 बिलियन डॉलर तक गिर गया। गौतम अडानी का नाम दुनिया के टॉप 10 अमीरों की सूची से हट गया। अडानी समूह ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को भारत की संप्रभुता पर खतरा बताया था।
गार्जियन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ओसीसीआरपी को इस संबंध में कुछ दस्तावेज मिले, जिन्हें गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स के साथ साझा किया गया। जो नए दस्तावेज़ मिले हैं, उनसे पहली बार मॉरीशस में एक अज्ञात और जटिल ऑफशोर ऑपरेशन विवरण का पता चलता है। यह ऑफशोर ऑपरेशन अडानी के सहयोगियों द्वारा नियंत्रित लगता है। इससे पता चलता है कि कथित तौर पर इसका इस्तेमाल 2013 से 2018 तक अपने समूह की कंपनियों के शेयर की कीमतों का समर्थन करने के लिए किया गया था। अभी तक, अडानी समूह का यह ऑफशोर नेटवर्क अभेद्य बना हुआ था।
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इस खुलासे का पीएम नरेंद्र मोदी पर महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव हो सकता है, जिनका गौतम अडानी के साथ 20 साल पुराना संबंध है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद से ही मोदी से गौतम अडानी के संबंधों और कथित साझेदारी को लेकर कड़े सवाल पूछे जा रहे हैं। मोदी का पीछा इन सवालों से नहीं छूट रहा है।
अडानी का बयान
नए दस्तावेज़ों से संबंधित मामले में अडानी समूह ने कहा: “नए सबूत/प्रमाण के दावे के विपरीत, ये कुछ भी नहीं, बल्कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए निराधार आरोपों का दोहराव है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर हमारी प्रतिक्रिया हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध है। यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अडानी समूह और उसके प्रमोटरों के खिलाफ उक्त आरोपों में न तो कोई सच्चाई है और न ही कोई आधार है और हम उन सभी को स्पष्ट रूप से खारिज करते हैं।ऑफशोर धंधे का सिलसिला देखिएः गार्जियन के मुताबिक ऑफशोर दस्तावेज बताते हैं कि 2010 में अडानी परिवार के दो सहयोगियों, चांग चुंग-लिंग और नासिर अली शाबान अहली ने मॉरीशस, ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह और संयुक्त अरब अमीरात में ऑफशोर शेल कंपनियां स्थापित करना शुरू किया। वित्तीय रिकॉर्ड से पता चलता है कि चांग और अहली द्वारा स्थापित चार ऑफशोर कंपनियों - जो दोनों अडानी से जुड़ी कंपनियों के निदेशक रहे हैं - ने बरमूडा में ग्लोबल अपॉर्चुनिटीज फंड (जीओएफ) नामक एक बड़े निवेश कोष में करोड़ों डॉलर भेजे। उन पैसों से 2013 के बाद से भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश किया गया।
आरोप है कि ऐसा लगता है कि इन फंडों ने अडानी की चार सूचीबद्ध कंपनियों में शेयर हासिल करने में कई साल लगाए हैं: अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन, अडानी पावर और बाद में अडानी ट्रांसमिशन। ये रिकॉर्ड इस बात पर रोशनी डालते हैं कि कैसे अपारदर्शी ऑफशोर फर्मों में पैसा गुप्त रूप से भारत में सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों में आ सकता है। आरोपों में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि इन दोनों फंडों के निवेश निर्णय दुबई स्थित विनोद अडानी के एक ज्ञात कर्मचारी और सहयोगी द्वारा नियंत्रित एक निवेश सलाहकार कंपनी के मार्गदर्शन में किए गए थे।
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