मीडिया की आज़ादी पर हमले का मामला फिर उठा है। पूर्व जजों, पूर्व सेना के अफ़सरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित क़रीब 3500 हस्तियों ने बयान जारी कर कहा है कि कोरोना महामारी की आड़ में मीडिया की आज़ादी को नहीं कुचला जाए। उन्होंने यह बयान न्यूज़ पोर्टल 'द वायर' और इसके संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई के ख़िलाफ़ जारी किया है। उन्होंने कहा है कि यह मीडिया की आज़ादी पर हमला है। कोरोना वायरस और धार्मिक संगठन पर रिपोर्टिंग के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने यह कहते हुए रिपोर्ट दर्ज की है कि न्यूज़ पोर्टल ने ग़लत तथ्यों के साथ मुख्यमंत्री की ग़लत छवि पेश की है।
उत्तर प्रदेश सरकार के ख़िलाफ़ बयान जारी करने वालों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर, मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस के चंद्रू, पटना हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अंजना प्रकाश, दो पूर्व नेवी प्रमुख एडमिरल रामदास व एडमिरल विष्णु भागवत, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा शामिल हैं। इनके अलावा बयान जारी करने वालों में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह, लेखक विक्रम सेठ, नयनतारा सहगल व अरुंधती रॉय, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, नंदिता दास और फरहान अख़्तर भी शामिल हैं।
उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से माँग की है कि वरदराजन के ख़िलाफ़ चलाई जा रहीं सभी आपराधिक कार्यवाहियाँ बंद की जाएँ और एफ़आईआर वापस ली जाए। उन्होंने यह भी कहा है कि मेडिकल इमरजेंसी के नाम पर राजनीतिक इमरजेंसी नहीं लगाई जानी चाहिए। बयान जारी करने वालों ने मीडिया से यह भी अपील की है कि वे कोरोना महामारी को सांप्रदायिक रूप नहीं दें।
एडिटर्स गिल्ड ने एफ़आईआर दर्ज होने के बाद कहा था कि ऐसे समय में यह मामला दर्ज करना मीडिया को डराने की कोशिश करना है।
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