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प्रतिभा वीरभद्र सिंह और उनका बेटा विक्रमादित्य सिंह

हिमाचलः कांग्रेस के साथ 'खेला' होने में किन महत्वाकांक्षाओं का हाथ?

हिमाचल प्रदेश में पूर्व सीएम स्व. वीरभद्र सिंह की पत्नी और बेटे की महत्वाकांक्षाओं ने कांग्रेस सरकार को संकट में डाल दिया है। इस बार फैसला होकर रहेगा। प्रतिभा वीरभद्र सिंह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं। विक्रमादित्य सिंह कैबिनेट मंत्री थे। दो दिन पहले मां-बेटे सुपरहिट फिल्म शोले में अमिताभ बच्चन के द्विअर्थी संवाद जैसे बयान दे रहे थे। प्रतिभा सिह कह रही थीं कि कोई विधायक नाराज नहीं है, अगर कोई है भी तो मुख्यमंत्री इस चुनाव के बाद एडजस्ट कर लेंगे। कांग्रेस तो सभी को गले लगाती है। अगर कोई विधायक नाराज है तो उसको गले लगा लेंगे। विक्रमादित्य सिंह ने फरमाया था कि पार्टी के राज्यसभा प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी को किसी भी कीमत पर हारने नहीं दिया जाएगा। लेकिन 27 फरवरी को चुनाव हुए तो खेला हो गया। इस खेला की आग को तब और हवा मिली जब विक्रमादित्य सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को हटाने की मांग रख दी। कांग्रेस आलाकमान ने डीके शिवकुमार और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को संकट सुलझाने भेजा था, लेकिन वे विक्रमादित्य के तेवर देखते रह गए।  
हिमाचल की इस कहानी पर आगे बढ़ने से पहले यह जान लीजिए कि ताजा स्थिति क्या है। कांग्रेस के 6 बागी विधायक वापस शिमला लौट आए हैं। ये लोग चार्टर्ड हेलिकॉप्टर से लौटे हैं। दूसरी तरफ राज्य विधानसभा में भाजपा के एक दर्जन से ज्यादा विधायक स्पीकर ने निलंबित करना है। सुक्खू सरकार किसी भी तरह बुधवार 28 फरवरी को फाइनैंस बिल पास कराना चाहती है। बिल पास हो गया तो बुधवार को सरकार बच जाएगी लेकिन देर सवेर उसके अस्तित्व पर कांग्रेस के अंदर और बाहर संकट बना रहेगा। बुधवार का घटनाक्रम महत्वपूर्ण है। खैर, हमारा विषय यह है कि हिमाचल की कांग्रेस सरकार के खिलाफ साजिशें अपनों के यहां से हो रही थीं। 
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26 फरवरी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा वीरभद्र सिंह ने बयान दिया था कि कुछ कांग्रेस विधायक नाराज हैं लेकिन उनकी अंतरात्मा उन्हें ऐसा-वैसा कुछ करने नहीं देगी। इसी बयान में उन्होंने यह भी जोड़ा था कि सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा ने पूर्व सीएम प्रेम सिंह धूमल को हराया था। लेकिन राजेंद्र राणा को मंत्री नहीं बनाया गया। लेकिन उनकी नाराजगी जल्द ही दूर हो जाएगी। प्रतिभा सिंह के इन बयानों का सीधा संबंध नाराज विधायकों की महत्वाकांक्षाओं से था। जिस पर कांग्रेस नेतृत्व का ध्यान नहीं जा रहा था कि ये बाद में बड़ी समस्या हो जाएगी।
राजेंद्र राणा के अलावा कांग्रेस विधायक सुधीर शर्मा, चैतन्य शर्मा, इंदर दत्त लखनपाल, दविंदर कुमार भुट्टो और रवि ठाकुर के अंदर भी मंत्री पद की लालसा जगा दी गई थी।

दो निर्दलीय विधायक केएल ठाकुर और होशियार सिंह पहले भाजपा में थे। लेकिन पिछले चुनाव में टिकट नहीं मिला तो पार्टी से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते भी। इसी तरह से एक और निर्दलीय विधायक आशीष शर्मा नाराज विधायकों की सूची में हैं। इन तीनों निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस सरकार बनने के समय दिसंबर 2022 से बिना मांगे समर्थन दे रखा था। राज्यसभा चुनाव में तीनों निर्दलीय विधायकों से कांग्रेस ने उनकी मंशा नहीं पूछी और यह मान लिया कि जब सरकार को शुरू से समर्थन दे रहे हैं तो अब भी देंगे। लेकिन हकीकत यह थी कि केएल ठाकुर और होशियार सिंह ने अपनी पुरानी पार्टी से वफादारी दिखा दी। आशीष शर्मा भी उन्हीं के साथ हो लिए। ये सारे लोग मंत्री बनना चाहते थे। अगर इसमें कांग्रेस के 6 विधायकों को जोड़ लिया जाए तो 9 लोग मंत्री बनना चाहते थे। सुक्खू इतने लोगों को कहां से मंत्री बनाते।


हिमाचल विधानसभा के नतीजे 8 दिसंबर को आए थे और 9 दिसंबर तक यह फैसला नहीं हो पा रहा था कि मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। उसकी वजह प्रतिभा सिंह और उनके बेटे विक्रमादित्य थे। इन दोनों ने आलाकमान के उस समय भेजे गए दूतों भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राजीव शुक्ला के सामने साफ कर दिया था कि उनमें से किसी को सीएम बनाया जाए। वे वीरभद्र सिंह की पार्टी के लिए कुर्बानियों की वजह से यह हक जता रहे थे। जबकि कांग्रेस आलाकमान सुखविंदर सिंह सुक्खू को सीएम बनाने का फैसला ले चुका था। हिमाचल के कांग्रेस विधायकों को साफ कर दिया गया था कि प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी की पसंद सुक्खू हैं। लेकिन उस समय तमाम कांग्रेस विधायकों ने सलाह दी थी कि प्रतिभा सिंह को सीएम बनाना ठीक रहेगा। लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने इस पर गौर नहीं किया।

पहला संकेत कब मिलाः भाजपा की गिद्ध दृष्टि हिमाचल कांग्रेस और सुक्खू सरकार के हालात पर लगातार बनी हुई थी। समय-समय पर भाजपा बयान जारी करती थी कि कांग्रेस सरकार ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है। लेकिन 1 जुलाई 2023 को भाजपा को संकेत मिल गया कि बात बन सकती है।


समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर कांग्रेस की लाइन अलग है। लेकिन यूसीसी पर उत्तराखंड में जब कानून बनाने का ड्राफ्ट लाया जा रहा था तो हिमाचल से उसे समर्थन देने वाले विक्रमादित्य थे। उनका 1 जुलाई 2023 का बयान सार्वजनिक है। न्यूज एजेंसियों समेत हिमाचल की मीडिया ने उसे रिपोर्ट किया था। पीडब्ल्यूडी मंत्री विक्रमादित्य ने यूसीसी का समर्थन करते हुए कहा था- "हमने कहा है कि जब भी समान नागरिक संहिता आएगी, हम इसका समर्थन करेंगे। कांग्रेस पार्टी ने हमेशा एकता और अखंडता को आगे बढ़ाने में योगदान दिया है।" हिमाचल के पूर्व सीएम और भाजपा नेता जयराम ठाकुर ने विक्रमादित्य के बयान का उसी दिन स्वागत करने में देर नहीं लगाई। जयराम ठाकुर ने कहा था- "विक्रमादित्य सिंह ने यह कहा है, तो इसका मतलब है कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और इसे व्यक्त किया। उनके बयान का स्वागत है।''
विक्रमादित्य के इस बयान के बाद उनका भाजपा और पीएम मोदी के खिलाफ आक्रामक रवैया नरम होता गया। विक्रमादित्य भाजपा के सीधे संपर्क में आ गए। बताया जाता है कि बीच में दिल्ली जाने पर विक्रमादित्य की मुलाकात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी कराई गई।
भाजपा को उचित मौके की तलाश थी। यहां यह बताना जरूरी है कि हिमाचल में राज्यसभा चुनाव टाई हो गया था। यानी कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी और भाजपा के हर्ष महाजन को बराबर-बराबर वोट मिले। यानी महाजन को मिले वोटों में 9 वोट बाहर वाले शामिल थे। जैसे ही मामला टाई हुआ, पूरे नौ विधायक हरियाणा निकल चुके थे। इसके बाद पर्ची डाली गई, उसमें हर्ष महाजन का नाम आया। यानी हर्ष महाजन की जीत और कांग्रेस विधायकों की बगावत अलग होते हुए भी आपस में जुड़ी हुई हैं। हर्ष महाजन की जीत सभी को मालूम हुई लेकिन वो टाई होने के बाद जीते, इसका ज्यादा प्रचार नहीं है। ज्यादा प्रचार हिमाचल में कांग्रेस विधायकों की बगावत और सरकार गिरने पर है।      
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क़मर वहीद नक़वी
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