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हिमाचल: दलबदल करने वाले विधायकों को पेंशन नहीं मिलेगी, विधेयक पास

हिमाचल में दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित होने वाले विधायकों के लिए बुरी ख़बर है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने बुधवार को दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित किए गए सदस्यों की पेंशन रोकने के लिए संशोधित विधेयक पारित किया है। इसे एक अप्रत्याशित क़दम बताया जा रहा है।

हिमाचल की कांग्रेस सरकार यह संशोधन विधेयक तब लेकर आई है जब वह विधायकों के दलबदल की भुक्तभोगी रही है। कांग्रेस के छह विधायकों- सुधीर शर्मा, रवि ठाकुर, राजिंदर राणा, इंदर दत्त लखनपाल, चेतन्य शर्मा और देविंदर कुमार - को इस साल फरवरी में दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया था। ऐसा इसलिए कि उन्होंने 2024-25 के बजट को पारित करने और कट मोशन पर चर्चा के दौरान सदन से दूर रहकर पार्टी व्हिप का उल्लंघन किया था।

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इन छह विधायकों ने कांग्रेस से बग़ावत कर दी थी। इन नेताओं ने राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग की थी। इसके बाद बजट सत्र के दौरान सदन से गैरमौजूद रहे थे। इस मामले में स्पीकर ने कांग्रेस की याचिका पर सभी छह विधायकों को अयोग्य करार दिया था। इसके बाद से ही इन नेताओं के बीजेपी में जाने की अटकलें लगाई जाने लगी थीं। वे कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए थे। 

बहरहाल, अब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दलबदलुओं पर शिकंजा कसने का प्रयास किया है। उन्होंने मंगलवार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा (सदस्यों के भत्ते और पेंशन) संशोधन विधेयक, 2024 पेश किया। इसका उद्देश्य विधायकों की पेंशन बंद करके उन्हें दलबदल करने से रोकना और हतोत्साहित करना है। 

विधेयक के अनुसार, 'यदि कोई व्यक्ति संविधान की दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत किसी भी समय अयोग्य घोषित किया गया है तो वह अधिनियम के तहत पेंशन का हकदार नहीं होगा।' विधेयक में इस संशोधन के तहत अयोग्य घोषित किए गए विधायकों द्वारा ली जा रही पेंशन की वसूली का प्रावधान भी शामिल है।
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अधिनियम की धारा 6बी के तहत पांच साल तक की अवधि तक सेवा करने वाले प्रत्येक विधायक को 36,000 रुपये प्रति माह पेंशन का हकदार माना जाता है। धारा 6(ई) में आगे कहा गया है कि प्रत्येक विधायक को पहले कार्यकाल की अवधि से अधिक हर साल 1,000 रुपये प्रति माह की अतिरिक्त पेंशन दी जाएगी।

संविधान की दसवीं अनुसूची को लोकप्रिय रूप से 'दलबदल विरोधी कानून' के रूप में जाना जाता है। इसको राजनीतिक दलबदल को रोकने के लिए बनाया गया है। दलबदल विरोधी कानून 1985 में संसद द्वारा पारित किया गया था।

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क़मर वहीद नक़वी
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