कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
पीछे
कल्पना सोरेन
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गीता कोड़ा
बीजेपी - जगन्नाथपुर
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हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपने बागी नेताओं से परेशान है। कई सीटों पर पार्टी के नेता टिकट न मिलने की वजह से पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसा ही हाल बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के गृह जिले बिलासपुर में भी है। बिलासपुर जिले में विधानसभा की 4 सीटें हैं और इसमें से 2 सीटों पर बीजेपी के बागी नेता चुनाव मैदान में हैं।
बिलासपुर जिले में 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 3 सीटों पर जीत मिली थी जबकि एक सीट पर कांग्रेस जीती थी। लेकिन बगावती नेताओं की वजह से बीजेपी के लिए इस प्रदर्शन को सुधारना तो दूर दोहराना ही मुश्किल हो सकता है।
जेपी नड्डा के करीबी माने जाने वाले सुभाष शर्मा बगावत कर बिलासपुर सदर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट से बीजेपी ने त्रिलोक जमवाल को टिकट दिया है जो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के राजनीतिक सलाहकार हैं। यहां से पिछली बार बीजेपी के टिकट पर सुभाष ठाकुर जीते थे लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया।
हिमाचल में इस बार बीजेपी के नेताओं ने बगावत करते हुए 16 सीटों पर ताल ठोक दी थी और पार्टी के नेता तमाम कोशिशों के बाद भी कई सीटों पर बगावती नेताओं को नहीं मना पाए थे।
बिलासपुर जिले की झंडुता (एससी) विधानसभा सीट पर बीजेपी के पूर्व विधायक रिखी राम कौंडल के बेटे राजकुमार कौंडल चुनाव लड़ रहे हैं। यहां से बीजेपी ने वर्तमान विधायक जीतराम कटवाल को टिकट दिया है।
बिलासपुर जिले की एक और सीट श्री नैना देवी जी में भी बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ नाराजगी देखने को मिल रही है। यहां से पार्टी ने रणधीर शर्मा को उम्मीदवार बनाया है।
नड्डा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे बड़े पद पर हैं और ऐसे में निश्चित रूप से उनके गृह राज्य में पार्टी को इतनी बड़ी बगावत का सामना नहीं करना चाहिए था। जबकि हिमाचल प्रदेश से कहीं ज्यादा बड़े राज्य गुजरात में बीजेपी बीते साल मुख्यमंत्री को बदल चुकी है, कैबिनेट के सभी मंत्रियों को बदल चुकी है लेकिन बावजूद इसके वहां पर किसी तरह की बगावत देखने को नहीं मिली।
नड्डा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और हिमाचल प्रदेश उनका गृह राज्य है, ऐसे में टिकट वितरण में उनकी अहम भूमिका रही है। यह बात सही है कि टिकट वितरण में सभी को संतुष्ट नहीं किया जा सकता लेकिन जितने बड़े पैमाने पर बीजेपी में बगावत हुई है, उससे साफ लगता है कि नेताओं ने पार्टी के अनुशासन की धज्जियां उड़ा दी हैं और नड्डा भी यहां अनुशासन का डंडा नहीं चला पाए।
बीजेपी को इस बात का डर है कि कई सीटों पर चुनाव मैदान में उतरे बागी उम्मीदवार उसके अधिकृत उम्मीदवारों को हार का स्वाद ना चखा दें। बीजेपी चुनाव के मैदान में उतरे पार्टी नेताओं को निष्कासित भी कर रही है अब तक पांच नेताओं को निष्कासित कर दिया गया है और कुछ और नेताओं पर कार्रवाई की जाने की तैयारी है।
हालांकि पार्टी अभी भी अपने नेताओं को मनाने की कोशिश कर रही है। बीजेपी इस बात से परेशान है कि कांग्रेस से ज्यादा बगावत उसकी पार्टी में है और यह बगावत उसके लिए हार की वजह बन सकती है।
बगावती नेताओं को मनाने के लिए जेपी नड्डा ने कुछ दिन पहले बड़ी संख्या में पार्टी के नेताओं को लंच पर बुलाया था। निश्चित रूप से जेपी नड्डा यह नहीं चाहेंगे कि उनके गृह राज्य और गृह जिले में बीजेपी को हार का सामना करना पड़े। इसलिए उन्होंने उनके विधानसभा क्षेत्र में आने वाली चारों सीटों पर पार्टी नेताओं को मनाने की कोशिश की थी और बिलासपुर सदर सीट पर टिकट न मिलने से नाराज कुछ नेताओं को मनाने में वह कामयाब भी रहे थे।
हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे। निश्चित रूप से मतदान में कुछ ही दिन का वक्त और बचा है और बीजेपी और कांग्रेस अभी भी बगावत पर उतरे नेताओं को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जेपी नड्डा की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे बड़े पद पर होने की वजह से उन्हें पार्टी को चुनाव में जीत दिलानी ही होगी। आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ ही जेपी नड्डा भी धुआंधार चुनावी रैलियां करेंगे और देखना होगा कि इन चुनावी रैलियों के जरिए क्या बीजेपी बगावत से होने वाले सियासी नुकसान का डैमेज कंट्रोल कर पाएगी।
बीजेपी में मंडी, बिलासपुर सदर, कांगड़ा, धर्मशाला, झंडुता, चंबा, देहरा, कुल्लू, हमीरपुर, नालागढ़, फतेहपुर, किन्नौर, आनी, सुंदरनगर, नाचन और इंदौरा सीट पर बागी चुनाव मैदान में हैं जबकि कांग्रेस में पछड़, आनी, ठियोग, सुलह, चौपाल, आनी, हमीरपुर और अर्की सीटों पर नेता ताल ठोक रहे हैं। साफ है कि बीजेपी में बगावत ज्यादा है।
सवाल यह है कि हिमाचल प्रदेश में इतने बड़े पैमाने पर बगावत से क्या बीजेपी के सत्ता में वापसी करने की संभावनाओं पर असर नहीं पड़ेगा। देखना होगा कि हिमाचल प्रदेश सहित बिलासपुर के जिले में क्या बगावती नेताओं के कारण बीजेपी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ेगा?
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